Walmart-Flipkart डील: सरकार के सहयोगी संगठनों ने भी खोला मोर्चा, जा सकते हैं कोर्ट

अब सरकार के सहयोगी संगठनों ने भी वाल्मार्ट-फ्लिपकार्ट डील के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. आरएसएस की आर्थिक इकाई स्वदेशी जागरण मंच के साथ ही कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने भी इस डील को वर्तमान रिटेल नियमों के खिलाफ बताते हुए कोर्ट जाने की धमकी दी है.
अब सरकार के सहयोगी संगठनों ने भी वाल्मार्ट-फ्लिपकार्ट डील के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. आरएसएस की आर्थिक इकाई स्वदेशी जागरण मंच के साथ ही कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने भी इस डील को वर्तमान रिटेल नियमों के खिलाफ बताते हुए कोर्ट जाने की धमकी दी है.
- News18Hindi
- Last Updated: May 11, 2018, 7:31 AM IST
अब सरकार के सहयोगी संगठनों ने भी वाल्मार्ट-फ्लिपकार्ट डील के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की आर्थिक इकाई स्वदेशी जागरण मंच ने कहा है कि ई-कॉमर्स रूट का यूज करते हुए वाल्मार्ट ने उन वर्तमान रिटेल नियमों को धता बताने की कोशिश की है, जिनके तहत मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी कंपनियों के प्रवेश की मनाही है. मंच ने इसे ‘बैक डोर एंट्री’ कहा है, जो राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है. सरकार का एक अन्य समर्थक संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने भी इस डील को वर्तमान रिटेल नियमों के खिलाफ बताते हुए कोर्ट जाने तक की धमकी दी है.
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मंच ने उनसे उन लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए कहा है, जो बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों और गांवों में छोटी-छोटी दुकानें चलाते हैं. मंच ने कहा है कि इससे छोटे और मध्यम आकार के रिटेल और अन्य बिजनेस और जल्दी खत्म हो जाएंगे. इससे बड़ी संख्या में जॉब पैदा करने की सरकार की कोशिश को बड़ा धक्का लगेगा.
मंच के अनुसार, देश में छोटे-छोटे उद्यमी और बिजनेसमैन पहले से अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वालमार्ट की एंट्री से उनकी समस्या और गंभीर हो जाएगी. मंच के संयोजक अश्वनी महाजन ने अपने पत्र में इस डील को अमलीजामा देने की प्रक्रिया में कई कानूनों के उल्लंघन का आरोप भी लगाया है. वाल्मार्ट ने फ्लिपकार्ट में 77 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली है. यह सौदा 1.07 लाख करोड़ रुपए (1600 करोड़ डॉलर) में हुआ है.
माना जा रहा है कि इस डील से देश के 3 करोड़ आम दुकानदारों को सीधे तौर पर नुकसान हो सकता है. इससे देश में 6 लाख नौकरियां भी खतरे में पड़ सकती हैं. इसे देखते हुए सरकार का समर्थक माना जाने वाला ट्रेडर्स संगठन- ‘कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स’ ने भी इस डील को रोकने के लिए सरकार से भी अपील की थी. उसने कॉमर्स मिनिस्ट्री से दखल देने के लिए कहा था. देश में फिलहाल 7 करोड़ दुकानदार हैं.कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के सेक्रेटरी जनरल प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि वाल्मार्ट जैसी कंपनियां दुनिया में से कहीं से भी सामान लाएंगी और भारत में डंप करेंगी. देश के आम दुकानदार ऐसे में पिछड़ सकते हैं, जिनमें से लगभग 3 करोड़ छोटे रिटेलर्स को इस डील से सीधे तौर पर नुकसान होने वाला है.
खंडेलवाल के अनुसार, विदेशी कंपनियां एफडीआई के जरिए देश में इन्वेस्ट करें, लेकिन ई-कॉमर्स का सहारा लेना गलत है. इस मामले में ट्रेडर्स आंदोलन करेंगे और कोर्ट भी जा सकते हैं.
CAIT के मुताबिक, FDI की 2016 की पॉलिसी के मुताबिक, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म केवल बायर-सेलर प्लेटफॉर्म होना चाहिए. वे खुद के प्रोडक्ट नहीं बेच सकते हैं. लेकिन ये प्लेटफॉर्म नियमों के खिलाफ जाकर अपनी शेल कंपनियों के जरिए खुद के प्रोडक्ट भी अपने प्लेटफॉर्म पर बेचने लगे हैं. यहां तक कि माल रखने के लिए उनके वेयरहाउस भी हैं. दूसरा वे कीमतों के मामले में भी ग्राहकों को लुभाते हैं, जो पॉलिसी का उल्लंघन है. इसकी वजह है कि देश में ई-कॉमर्स सेगमेंट के लिए कोई ठोस नियम-कानून नहीं हैं.
फ्लिपकार्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के समक्ष यह स्वीकार कर चुकी है कि वह होलसेल में काफी ज्यादा डिस्काउंट की पेशकश कर रही है और यह उसकी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी का हिस्सा है. लेकिन सरकार इस पहलू पर गौर नहीं कर पा रही है.
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प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मंच ने उनसे उन लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए कहा है, जो बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों और गांवों में छोटी-छोटी दुकानें चलाते हैं. मंच ने कहा है कि इससे छोटे और मध्यम आकार के रिटेल और अन्य बिजनेस और जल्दी खत्म हो जाएंगे. इससे बड़ी संख्या में जॉब पैदा करने की सरकार की कोशिश को बड़ा धक्का लगेगा.
मंच के अनुसार, देश में छोटे-छोटे उद्यमी और बिजनेसमैन पहले से अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वालमार्ट की एंट्री से उनकी समस्या और गंभीर हो जाएगी. मंच के संयोजक अश्वनी महाजन ने अपने पत्र में इस डील को अमलीजामा देने की प्रक्रिया में कई कानूनों के उल्लंघन का आरोप भी लगाया है. वाल्मार्ट ने फ्लिपकार्ट में 77 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली है. यह सौदा 1.07 लाख करोड़ रुपए (1600 करोड़ डॉलर) में हुआ है.
माना जा रहा है कि इस डील से देश के 3 करोड़ आम दुकानदारों को सीधे तौर पर नुकसान हो सकता है. इससे देश में 6 लाख नौकरियां भी खतरे में पड़ सकती हैं. इसे देखते हुए सरकार का समर्थक माना जाने वाला ट्रेडर्स संगठन- ‘कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स’ ने भी इस डील को रोकने के लिए सरकार से भी अपील की थी. उसने कॉमर्स मिनिस्ट्री से दखल देने के लिए कहा था. देश में फिलहाल 7 करोड़ दुकानदार हैं.कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के सेक्रेटरी जनरल प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि वाल्मार्ट जैसी कंपनियां दुनिया में से कहीं से भी सामान लाएंगी और भारत में डंप करेंगी. देश के आम दुकानदार ऐसे में पिछड़ सकते हैं, जिनमें से लगभग 3 करोड़ छोटे रिटेलर्स को इस डील से सीधे तौर पर नुकसान होने वाला है.
खंडेलवाल के अनुसार, विदेशी कंपनियां एफडीआई के जरिए देश में इन्वेस्ट करें, लेकिन ई-कॉमर्स का सहारा लेना गलत है. इस मामले में ट्रेडर्स आंदोलन करेंगे और कोर्ट भी जा सकते हैं.
CAIT के मुताबिक, FDI की 2016 की पॉलिसी के मुताबिक, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म केवल बायर-सेलर प्लेटफॉर्म होना चाहिए. वे खुद के प्रोडक्ट नहीं बेच सकते हैं. लेकिन ये प्लेटफॉर्म नियमों के खिलाफ जाकर अपनी शेल कंपनियों के जरिए खुद के प्रोडक्ट भी अपने प्लेटफॉर्म पर बेचने लगे हैं. यहां तक कि माल रखने के लिए उनके वेयरहाउस भी हैं. दूसरा वे कीमतों के मामले में भी ग्राहकों को लुभाते हैं, जो पॉलिसी का उल्लंघन है. इसकी वजह है कि देश में ई-कॉमर्स सेगमेंट के लिए कोई ठोस नियम-कानून नहीं हैं.
फ्लिपकार्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के समक्ष यह स्वीकार कर चुकी है कि वह होलसेल में काफी ज्यादा डिस्काउंट की पेशकश कर रही है और यह उसकी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी का हिस्सा है. लेकिन सरकार इस पहलू पर गौर नहीं कर पा रही है.
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