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काजू, बादाम और पिस्ता से भी महंगी बिक रही राख, ऑनलाइन भाव 1,200 रुपये किलो, Discription में लिखा...

1200 प्रति किलो मिल रही है चूल्हे की राख. (shutterstock)

1200 प्रति किलो मिल रही है चूल्हे की राख. (shutterstock)

Wood Ash : कहते हैं अच्छा बिजनेसमैन वही होता है जो राख बेचकर भी पैसा बना ले. इन दिनों अमेजन पर 1,200 रुपये प्रतिकिलो के ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

गोबर के उपलों और लकड़ी से लगाई जाती थी चूल्हों में आग.
इस राख का इस्तेमाल बर्तन धोने और भस्क के रूप में होता है.
शहरीकरण के चलते ये राख से बर्तन मांजने का तरीका खत्म हो गया था.

नई दिल्ली. पता नहीं आप जानते हैं या नहीं, लेकिन कुछ साल पहले तक घरों में बर्तन मांजने के लिए राख (Wood Ash) का इस्तेमाल किया जाता था. चूल्हे में लड़की या गोबर के उपले जलाने के बाद जो राख निकलती थी, उसे डिश-वाशर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. आज भी भारत में बहुत घरों में राख से बर्तन मांजने की परम्परा बची होगी. गांवों में इसे आम तौर पर देखा जा सकता है. शहरों में जब राख ही नहीं मिलती तो राख से बर्तन साफ करने का तो सवाल ही नहीं. हमारे और आपके लिए राख की कीमत बेशक कुछ नहीं हो, लेकिन बिजनेस करने वाले तो राख बेचकर भी पैसा कमा रहे हैं. जी हां, ऑनलाइन राख बिक रही है और वो भी लगभग 1,200 रुपये किलो के भाव से.

पूरा-पूरा रेट बताएं तो अमेजन पर राख 1,200 रुपये प्रति किलो मिल रही है. पहले जो राख घरों में आमतौर पर मिल जाती थी अब उसे शहरों में हजारों रुपये में बेचा जा रहा है. जाहिर है कि मांग होने के कारण इन्हें महंगे दामों पर बेचा जा रहा है. अमेजन पर एक कंपनी द्वारा बेचे जा रही राख के बारे में लिखा है कि यह बर्तन मांजने के लिए एकदम सही प्रोडक्ट है. बता दें कि राख को खुले में नहीं बल्कि एक बेहतरीन पैकेजिंग के साथ बेचा जा रहा है.

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ऐसे कई प्रोडक्ट आ चुके ऑनलाइन
ऐसे नहीं है कि ये कोई पहला उत्पाद जो हमारे पूर्वज इस्तेमाल करते और फिर अब उसे ऑनलाइन बेचा जाने लगा. इससे पहले दातून, पत्तों से बने बर्तन, पूजा के लिए लकड़ी और यहां तक की गाय के गोबर से बने उपले भी कई सौ रुपये में बिकते हुए दिखे. जो सामान हमें आमतौर पर घरों में फ्री में मिलता था उसके लिए अब पैसे चुकाने पड़ रहे हैं.

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चूल्हे की राख. (अमेजन)

क्या थी राख के साथ परेशानी
राख घरों में इसलिए खत्म होना शुरू हो गई, क्योंकि चूल्हे पर खाना पकाना बंद कर दिया गया. दरअसल, लकड़ी या उपले के जलने से जो धुंआ होता था उसे पर्यावरण के लिए हानिकारक बताया गया. साथ ही कई बार इन्हें जलाने के लिए चूल्हे में कोयला भी डाला जाता था जो एक सीमित जीवाश्म ईंधन तो है ही पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है. इन्हीं तर्कों के साथ जो चीजें बंद कर दी गईं एक बार फिर घूमकर हमारे सामने आ रही हैं.

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