जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata)
Jamsetji Tata Story : देश-दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो अपनी मेहनत के दम पर आसमां की बुलंदियों तक पहुंच चुके हैं. बचपन से ही संघर्ष कर ये लोग दुनिया के सबसे अमीर शख्स की लिस्ट में शामिल हो गए. इसके अलावा दुनिया में कई ऐसे लोग भी मौजूद हैं, जिन्होंने अपने दम पर कड़ी मेहनत कर अरबों की दौलत हासिल की और फिर उसका ज्यादातर हिस्सा दान करते हुए दुनिया के सबसे बड़े दानवीर बन गए. दानवीरों की लिस्ट में सबसे ऊपर भारत की एक ऐसी शख्सियत का नाम आता है, जिसे देश ही नहीं दुनिया के बड़े से लेकर छोटा बच्चा तक जानता है. शायद आप समझ ही गए होंगे… हम किसकी बात कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) की.
टाटा ग्रुप का नाम आज पूरी दुनिया में है. हवाई जहाज से लेकर आटोमोबाइल और रसोई में इस्तेमाल होने वाले नमक तक टाटा (Tata Group) की धमक है. भारत के दिग्गज उद्योगपति और टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े परोपकारी हैं. इस मामले में वह बिल एवं मेलिंडा गेट्स से भी आगे हैं. 100 साल में दान करने के मामले में उनके जैसा कोई परोपकारी दुनिया में नहीं हुआ है. लेकिन क्या आप जानते हैं जमशेदजी टाटा को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा था.
14 साल की उम्र से ही बटाया पिता का हाथ
जमशेदजी का जन्म 3 मार्च 1839 को गुजरात के छोटे से कस्बे नवसारी में हुआ था. उनके पिता का नाम नौशेरवांजी एवं उनकी माता का नाम जीवनबाई टाटा था. जमशेदजी 14 साल की नाजुक उम्र में ही पिता का साथ देने लगे. जमशेदजी ने एल्फिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया और अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने हीरा बाई डाबू के साथ विवाह बंधन में बंध गए. वह 1858 में स्नातक हुए और अपने पिता के व्यवसाय से पूरी तरह जुड़ गये. जमशेदजी 29 साल की उम्र तक वह पूरी मेहनत के साथ पिता का कारोबार में हाथ बंटाते रहे.
कर्ज उतारने के लिए बेच डाला मकान, जमीन
जमशेदजी को कारोबारी जीवन की शुरुआत में एक गंभीर आर्थिक झटका लगा था. इस समय कारोबारी साझेदारी का कर्ज उतारने के लिए उन्हें अपना मकान और जमीन जायजा बेचनी पड़ी थी. लेकिन जमशेदजी ने हिम्मत नहीं हारी और सभी संकटों से उबर गए. बता दें कि वर्ष 1868 में उन्होंने 21 हजार रुपयों से अपना खुद का बिजनस शुरू किया था. जमशेदजी ने सबसे पहले एक दिवालिया तेल कारखाना ख़रीदा और उसे एक रुई के कारखाने में तब्दील कर दिया. बाद में इसे बेचकर नागपुर में 1874 में एक रुई का कारखाना लगाया था. जिसका नाम बाद में बदल कर इम्प्रेस्स मिल (Empress Mill) कर दिया.
जमशेदजी टाटा ने 1892 से ही शुरू कर दिया था दान
जमशेदजी टाटा ने 1892 से ही दान देना शुरू कर दिया था. उन्होंने कहा कि जमशेदजी ने अपनी दो तिहाई संपत्ति ट्रस्ट को दे दी, जो शिक्षा और स्वास्थ्य समेत कई क्षेत्रों में काम कर रहा है. 2021 में जारी एडेलगिव हुरुन की रिपोर्ट के अनुसार, जमशेदजी टाटा ने पिछले 100 सालों में 75 खरब 66 अरब 81 करोड़ 90 लाख रुपये (102.4 बिलियन डॉलर) 7.57 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का दान किया है.
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