'अंकों को अहम न बनाएं, रिजल्ट एक लर्निंग लेसन है...सफलता की गारेंटी नहीं'

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सफलता रिजल्ट से तय नहीं होती है. बल्कि सफलता 20 से 25 फिसदी इंटेलिजेंस कोशेंट (IQ) और 75 से 80 फिसदी इमोशनल कोशेंट (EQ) पर निर्भर करती है.
- News18Hindi
- Last Updated: May 10, 2019, 10:42 AM IST
डॉ. अंबा सेठी
स्कूल हो या कॉलेज स्टूडेंट के लिए तनाव का सबसे बड़ा दौर रिजल्ट आने से पहले और बाद का होता है. परीक्षार्थी हों या उनके पालक सभी तनाव में होते हैं. रिजल्ट से पहले तनाव इस बात का होता है कि क्या होगा... अच्छे नंबर आ गए तो आगे क्या करना है. कम आ गए तो क्यों आए और आगे क्या होगा..? जैसे सवाल तनाव का कारण बनते हैं. लेकिन सवाल है कि तनाव पैदा करने वाले इस रिजल्ट को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है.
रिजल्ट जीवन का एक हिस्सा है, पूरा जीवन नहीं. उसी तरह जैसे रिश्ते-नाते, हेल्थ, खेल, दोस्त. रिजल्ट आने के बाद सबसे ज्यादा पालकों को सावधानी बरतने की जरूरत होती है. पालकों को समझना चाहिए कि यदि कम नंबर आने पर बच्चों को डांट फटकार लगाएंगे या उनसे ठीक बर्ताव नहीं करेंगे, दूसरे बच्चों से तूलना करेंगे तो बच्चों को आई एम नॉट गुड की फीलिंग आएगी. धीरे धीरे वो डिप्रेशन में चले जाएंगे, जो उनके लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है. कई बार ऐसे उदाहरण सामने आ चुके हैं.
रिजल्ट के बाद पालकों का बच्चों के साथ व्यवहार ही उनका आगे का भविष्य तय करता है. पालकों को ये समझने की जरूरत है कि सफलता रिजल्ट से तय नहीं होती है. बल्कि सफलता 20 से 25 फिसदी इंटेलिजेंस कोशेंट (IQ) और 75 से 80 फिसदी इमोशनल कोशेंट (EQ) पर निर्भर करती है. कई रिसर्च में इस बात का प्रमाण मिलता है. इसलिए जरूरी नहीं है कि खराब रिजल्ट वाला विद्यार्थी सफल नहीं होगा और बहुत अच्छा रिजल्ट वाला विद्यार्थी सफल ही होगा. बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार कॅरियर बनाने की छूट पालकों को देनी चाहिए. हर फिल्ड में अच्छे लोगों की जरूरत है. ऐसे में पालकों को ये ध्यान देने की जरूरत है कि उनका बच्चा जो भी करना चाहता है, उसमें इमानदारी से मेहनत करे.

पालक हो या विद्यार्थी हम सभी को ये समझने की जरूरत है कि आखिर सफलता क्या है और सफल कौन है? जीवन में हम अलग अलग तरीकों से खुशियां तलाश करने की कोशिश करते हैं. जो जितना खुश है वो उतना ही सफल है. तनावग्रस्त व्यक्ति कभी भी सफल नहीं हो सकता.
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बच्चों को ये समझने की जरूरत है कि उनके पालक उनसे नि:शर्त प्यार करते हैं. ऐसा नहीं है कि कम नंबर आने पर कम और ज्यादा आने पर ज्यादा प्यार करेंगे. हां कुछ देर के लिए वे गुस्सा जरूर हो सकते हैं. उनके गुस्से या डांट को उनका फैसला न समझें. उन्हें समझाने की कोशिश करें. रिजल्ट एक लर्निंग लेसन है. इससे हमें पता चलता है कि हमने क्या अच्छा किया और कहां कमी है, जिसे दूर किया जाए. कहां कम और कहां ज्यादा मेहनत करनी है. एक बार फिर यही समझने की जरूरत है कि रिजल्ट से सफलता तय नहीं होती है.
(लेखिका छत्तीसगढ़ जानी-मानी मनोविज्ञानी और काउंसलर हैं)
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स्कूल हो या कॉलेज स्टूडेंट के लिए तनाव का सबसे बड़ा दौर रिजल्ट आने से पहले और बाद का होता है. परीक्षार्थी हों या उनके पालक सभी तनाव में होते हैं. रिजल्ट से पहले तनाव इस बात का होता है कि क्या होगा... अच्छे नंबर आ गए तो आगे क्या करना है. कम आ गए तो क्यों आए और आगे क्या होगा..? जैसे सवाल तनाव का कारण बनते हैं. लेकिन सवाल है कि तनाव पैदा करने वाले इस रिजल्ट को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है.
रिजल्ट जीवन का एक हिस्सा है, पूरा जीवन नहीं. उसी तरह जैसे रिश्ते-नाते, हेल्थ, खेल, दोस्त. रिजल्ट आने के बाद सबसे ज्यादा पालकों को सावधानी बरतने की जरूरत होती है. पालकों को समझना चाहिए कि यदि कम नंबर आने पर बच्चों को डांट फटकार लगाएंगे या उनसे ठीक बर्ताव नहीं करेंगे, दूसरे बच्चों से तूलना करेंगे तो बच्चों को आई एम नॉट गुड की फीलिंग आएगी. धीरे धीरे वो डिप्रेशन में चले जाएंगे, जो उनके लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है. कई बार ऐसे उदाहरण सामने आ चुके हैं.

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पालक हो या विद्यार्थी हम सभी को ये समझने की जरूरत है कि आखिर सफलता क्या है और सफल कौन है? जीवन में हम अलग अलग तरीकों से खुशियां तलाश करने की कोशिश करते हैं. जो जितना खुश है वो उतना ही सफल है. तनावग्रस्त व्यक्ति कभी भी सफल नहीं हो सकता.
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बच्चों को ये समझने की जरूरत है कि उनके पालक उनसे नि:शर्त प्यार करते हैं. ऐसा नहीं है कि कम नंबर आने पर कम और ज्यादा आने पर ज्यादा प्यार करेंगे. हां कुछ देर के लिए वे गुस्सा जरूर हो सकते हैं. उनके गुस्से या डांट को उनका फैसला न समझें. उन्हें समझाने की कोशिश करें. रिजल्ट एक लर्निंग लेसन है. इससे हमें पता चलता है कि हमने क्या अच्छा किया और कहां कमी है, जिसे दूर किया जाए. कहां कम और कहां ज्यादा मेहनत करनी है. एक बार फिर यही समझने की जरूरत है कि रिजल्ट से सफलता तय नहीं होती है.
(लेखिका छत्तीसगढ़ जानी-मानी मनोविज्ञानी और काउंसलर हैं)
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