Success Story : प्रिया झिंगन साल 1993 में भारतीय सेना में ऑफिसर बनी थीं.
Success Story : भारत 26 जनवरी 1950 को एक गणतंत्र बना तो संविधान के जरिए महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिले. आरती शाहा ने 1959 में इंग्लिश चैनल तैरकर पार करने का कारनामा किया. 1966 में इंदिरा गांधी भारत की पहली पीएम बनीं. फिर 1984 में बछेंद्री पाल ने माउंट एवरेस्ट फतेह करने का कारनामा किया. कहने का मतलब ये कि महिलाएं तमाम क्षेत्रों में झंडे गाड़ रही थीं. लेकिन भारतीय सेना में सिर्फ नर्स और डॉक्टर बन सकती थीं. यह सिलसिला टूटा 1989 में लिखी गई एक चिट्ठी से. इस कहानी की नायक हैं भारतीय सेना की पहली महिला ऑफिसर मेजर प्रिया झिंगन. आइए जानते हैं कि किस तरह प्रिया झिंगन की एक चिट्ठी ने भारतीय सेना को बदल दिया और कैसे उनकी सेना में एंट्री हुई.
बचपन में ही देख लिया था सेना में जाने का ख्वाब
प्रिया झिंगन का जन्म हिमाच प्रदेश के शिमला में हुआ था. प्रिया झिंगन की शुरुआती पढ़ाई लिखाई लोरेटो कॉन्वेंट तारा कोल स्कूल से हुई. पिता पुलिस ऑफिसर थे, जिसकी वजह से घर में काफी अनुशासन था. लेकिन प्रिया अपनी शतैनी की वजह से पूरे स्कूल में मशहूर थीं. वह लड़कों जैसे कपड़े पहनती थीं. प्रिया की हसरत बचपन से ही ऑलिव ग्रीन वर्दी पहनने की थी. अपने एक इंटरव्यू में उन्होंन बताया था कि एक बार उनके स्कूल में राज्यपाल आए. राज्यपाल के साथ में भारतीय सेना का एक ऑफिसर यानी उनका Aide-De-Camp (ADC) था. आर्मी ऑफिसर को देखकर उनकी सहेलियां कहने लगीं कि वह एक आर्मी ऑफिसर से शादी करेंगी. इस पर प्रिया झिंगन ने कहा कि मैं खुद आर्मी ऑफिसर बनूंगी.
चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ को लिखी चिट्ठी
स्कूलिंग के बाद प्रिया ने शिमला के ही St Bede’s College लॉ में एडमिशन लिया. साल 1989 में एक दिन उन्होंने सेना का एक भर्ती विज्ञापन देखा. जिसमें सिर्फ पुरुषों से ही आवेदन मांगे गए थे. यह बात 21 वर्षीय प्रिया के मन में खटक गई. बस फिर क्या था, उठाया कागज-पेन और लिख दी भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ सुनित फ्रांसिस रोड्रिग्स को चिट्ठी. यह चिट्ठी सेना प्रमुख तक पहुंच भी गई. भारतीय सेना में महिलाओं की भर्ती की बात जनरल रोड्रिग्स को जम गई. उन्होंने प्रिया को जवाब में लिखा- एक भारतीय महिला भारतीय सेना के जुड़ना चाहती है, ये जानकर मैं बहुत खुश हूं और ये जल्द ही होगा.
1992 में सेना ने बदले भर्ती के नियम
दो साल इंतजार के बाद साल 1992 में प्रिया झिगन ने भारतीय सेना का वह भर्ती विज्ञापन देखा, जिसका उन्हें कई साल से इंतजार था. भारतीय सेना ने ऑफिसर्स भर्ती के लिए एक फुल पेज विज्ञापन निकाला. जिसमें महिलाओं से भी आवेदन मांगे गए थे.
प्रिया झिंगन बनीं कैडेट 001
ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी, चेन्नई में लॉ ग्रेजुएट के लिए सीट रिजर्व रखी गई थी. प्रिया झिंगन ने टेस्ट दिया और वह सेलेक्ट होकर ओटीए में बन गईं कैडेट 001. उनके साथ 24 अन्य महिलाओं की भी सेना में ऑफिसर्स के रूप में एंट्री हुई. ये भारतीय सेना में एंट्री पाने वाली पहली महिलाएं थी. जिनके लिए रास्ता बनाया प्रिया झिंगन ने. प्रिया झिंगन को ओटीए में सिल्वर मेडल मिला था.
इन्फैंट्री डिवीजन में जाना चाहती थीं प्रिया
प्रिया झिंगन का सपना भारतीय सेना की इन्फैंट्री डिवीजन में जाने का था. लेकिन वह लॉ ग्रेजुएट थीं. इसलिए उन्हें जज एडवोकेट जनरल की पोस्ट मिली. जज एडवाकेट जनरल प्रिया ने कई कोर्ट मार्शल किए. वे सेना की लीगल सेल की ऑफिसर इंचार्ज रहीं. इसके अलावा सिविल कोर्ट में भी सेना के अफसरों के मुकदमे लड़े.
सेना में सिर्फ एक बार हुआ भेदभाव
मेजर प्रिया झिंगन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके साथ सेना में सिर्फ एक बार भेदभाव हुआ था. यह बात लखनऊ सेंट्रल कमांड हेडक्वॉर्टर में उनकी पोस्टिंग के समय की है. वहां के जवान उन्हें सैल्यूट नहीं करते थे. प्रिया ने एक प्लान बनाया. वह खुद जवानों को सैल्यूट करने लगीं. कुछ दिनों बाद वो लोग भी उन्हें सैल्यूट करने लगे.
5 साल बाद ही कर दिया रिजाइन
भारतीय सेना में जज एडवाकेट जनरल बनने के बाद प्रिया झिंगन ने 5 साल बाद ही 1998 में पद नौकरी से रिजाइन कर दिया. फिलाहल वे माउंटेनियरिंग करती हैं. मोटिवेशनल स्पीकर हैं.
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