UPSC Story : एम्स में जूनियर रेजिडेंट की जॉब सिर्फ 6 महीने में छोड़ दी थी.
UPSC Story : कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर. कई लोग ऑफिसर की कुर्सी तक पहुंचना चाहते हैं. लेकिन कुछ लोगों के लिए यह सब महज एक पड़ाव होता है. ऐसे ही एक युवा का नाम है रोमन सैनी. रोमन सैनी एक डॉक्टर हैं. पूर्व आईएएस हैं. और अब एक सफल एंटरप्रेन्योर हैं. रोमन सैनी ने महज 16 साल की उम्र में सबसे मुश्किल एम्स परीक्षा पास कर ली. इसके बाद उन्होंने 22 साल की उम्र में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा क्रैक करके आईएएस ऑफिसर बन गए. लेकिन आईएएस बनना तो महज एक पड़ाव ही था. जल्द ही आईएएस के पद से इस्तीफा देकर अनएकेडमी नाम की कंपनी खड़ी की. जिसका नेटवर्थ इस वक्त 15000 करोड़ से ज्यादा है.
मां गृहणी और पिता हैं इंजीनियर
अनएकेडमी के सह संस्थापक रोमन सैनी राजस्थान के रहने वाले हैं. उनके पिता इंजीनियर और मां गृहणी हैं. रोमन ने एमबीबीएस की पढ़ाई करके एम्स के NDDTC में बतौर जूनियर रेजिडेंट काम किया. यह किसी भी युवा के लिए सपने से कम नहीं है. लेकिन रोमन कहां यहां टिकने वाले थे. महज 6 महीने में ही यह नौकरी छोड़ दी और यूपीएससी में झंड़े गाड़ने निकल पड़े. वह महज 22 साल की उम्र में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा क्रैक करके आईएएस अधिकारी बन गए. उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में पूरे देश में 18वीं रैंक हासिल की. उन्हें मध्य प्रदेश में एक कलेक्टर के तौर पर तैनात किया गया.
कैसे आया डॉक्टर से IAS बनने का ख्याल
रोमन सैनी अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि जब मैं साल 2011 में एक डॉक्टर के रूप में कुछ मेडिकल कैंप्स में गया तो महसूस हुआ कि गरीबी बहुत खतरनाक चीज है. लोगों में उनकी सेहत, साफ-सफाई और पानी की समस्याओं को लेकर जागरूकता का अभाव था. इनका निदान आवश्यक था. लेकिन मैं बतौर डॉक्टर इन समस्याओं को दूर करने में असमर्थ था. उसी वक्त तय कर लिया कि सिविल सेवा में जाना जरूरी है.
दोस्तों के साथ मिलकर खड़ी की कंपनी
रोमन सैनी को आईएएस की कुर्सी भी ज्यादा दिन तक रास नहीं आई. उन्होंने जल्द ही पद से इस्तीफा देकर अपने दोस्तों के साा मिलकर अनएकेडमी नाम का एक स्टार्टअप शुरू किया. इसका मुख्यालय बेंगलुरु में है. अब तो इस कंपनी सालाना टर्न ओवर 15000 करोड़ को पार कर गया है. ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म अनएकेडमी युवाओं के बीच बेहद पापुलर है. इस स्टार्टप के शुरू करने का मकसद था यूपीएससी कोचिंग के लिए छात्रों को एक मंच देना. जिसके लिए उन्हें लाखों रुपये खर्च करने की जरूरत न पड़े.
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