देवपांडुम गांव के शासकीय स्कूल में पदस्थ शिक्षक बालमुकुंद
बालोद. छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक ऐसे शिक्षक मौजूद हैं जिनको स्वयं तो रास्ते पर चलने के लिए किसी के सहारे की तलाश होती है. लेकिन, वे बीते 12 सालों से नौनिहालों को भविष्य गढ़ने की राह बता रहे हैं. शिक्षक बालमुकुंद कोरेटी बचपन से ही दोनों आंखों से दिव्यांग हैं. बचपन में एक बीमारी के चलते अपनी दोनों आंखों की रोशनी गंवा दी थी, तब से उन्हें आंखों से दिखाई नहीं देता. फिर भी इन्होंने कभी जिंदगी से हार नहीं मानी और हमेशा कुछ करने की चाह रखी.
बालोद जिले के जंगल और पहाड़ों के बीच बसा एक छोटा सा गांव देवपांडुम है. यहां के प्राइमरी स्कूल में सहायक शिक्षक के पद पर पदस्थ दिव्यांग शिक्षक बालमुकुंद कोरेटी प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में दृष्टि बाधित स्कूलों में पढ़ाई की और शिक्षक बने. वर्ष 2008 में उन्होंने देवपांडुम गांव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया.
छात्र समीर कुमार कोमरे ने बताया कि, बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्हें ब्रेल लिपि वाली पुस्तक की आवश्यकता पड़ती है, जिसे प्रशासन उपलब्ध करवाता है. बालमुकुंद की आंखों में भले ही रौशनी नहीं है बावजूद इसके वे अपना सारा काम बखूबी कर लेते हैं. वहीं, बालमुकुंद बच्चों को केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि इसके अतिरिक्त जेनरल नॉलेज, कविता, चुटकुले सुनाकर उनका मनोरंजन भी करते हैं. साथ ही पढ़ाते समय बीच-बीच में बच्चों से सवाल भी पूछते हैं.
शिक्षक बालमुकुंद के हौसले ने उनकी उम्मीदों को एक नई पंख तो दी है. वहीं शिक्षक की कार्यशैली को देख हर कोई उनकी प्रशंसा कर रहा है. लेकिन, आज तक इनकी कार्यशैली शासन प्रशासन की नज़रों से ओझल है. जब शिक्षक बालमुकुंद अपने स्कूली जीवन मे थे और अपना भविष्य गढ़ रहे थे तब संसाधनों की भी कमी थी. लेकिन उनके हौसले के सामने यह कमी फीकी पड़ गई और आज आंख में रौशनी नहीं होने के बावजूद अपने अंदाज से लोगों के लिए एक प्रेरणाश्रोत बन चुके हैं.
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