रिपोर्ट: सौरभ तिवारी
बिलासपुर: देवी-देवताओं को लेकर आस्था और वहां चढ़ने वाला चढ़ावा कई प्रकार का होता है. कहीं मंदिर में सोना-चांदी चढ़ता है तो कहीं फूल माला और कई मंदिरों में तो शराब भी चढ़ाई जाती है. लेकिन, आज जिस मंदिर की बात कर रहे वहां का चढ़ावा सबसे अलग है.
यह चढ़ावा कोई गरीब भी ला सकता है और अमीर भी. बिलासपुर के सरकंडा मुरूम खदान में स्थित बगदाई माता का मंदिर विशेष है. यहां भक्त आते-जाते माता रानी को पत्थर चढ़ाते हैं. जी हां, यह परंपरा वैसे तो सदियों पुरानी है और आज तक हुबहू चली आ रही है.
इस दैवीय स्थान पर लोगों की श्रद्धा 100 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि बगदाई माता स्वयंभू स्थापित हैं. मंदिर के पूर्व पुजारी कृष्णपुरी गोस्वामी बताते हैं की लगभग 100 सालों से लोग यहां आ रहे हैं, लेकिन किसी को यह नहीं मालूम कि देवी की प्रतिमा कौन लाया या यहां कैसे पहुंची. पहली बार पेड़ के नीचे ही लोगों को देवी की प्रतिमा दिखी थी.
जमींदार को आया स्वप्न
बताया कि शुरुआती दौर में तो कोई ऐसे ही प्रतिमा होने की सोच देवी की ओर ध्यान नहीं देता था. बाद में एक जमींदार को देवी ने स्वप्न देकर खुद के होने की जानकारी दी. धीरे-धीरे लोगों को देवी की चमत्कार की जानकारी लगने लगी और छोटे से मंदिर के रूप में निर्माण कराकर देवी को स्थापित कर दिया गया.
ऐसा शुरू हुआ प्रचलन
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब यहां जंगल हुआ करता था और जंगली जानवर घूमा करते थे तब यहां से गुजरने वाले राहगीर अपने घर या गंतव्य तक सकुशल पहुंचने के लिए पांच पत्थर रखकर मनोकामना मांगते हुए आगे बढ़ जाते थे. सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंचने के बाद लोगों को बताते थे कि उन्होंने एक देवी के पास कुछ ऐसा किया. धीरे-धीरे लोगों को बगदाई वनदेवी के विषय में जानकारी हुई और लोग यहां आने लगे.
खास तरह के पत्थरों की मान्यता
श्रद्धालु इस मंदिर में फूल-माला या पूजन सामग्री लेकर नहीं, बल्कि पांच पत्थर लेकर आते हैं. यहां कोई आम पत्थर चढ़ावे के रूप में नहीं चढ़ाया जाता है, बल्कि खेतों में मिलने वाला गोटा पत्थर (चमरगोटा) ही बस चढ़ाने की परंपरा है.
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