रिपोर्ट: लखेश्वर यादव
जांजगीर-चांपा: चांपा शहर में जमींदार परिवार द्वारा स्थापित मां सम्लेश्वरी की महिमा बड़ी निराली है. नवदाम्पत्य जीवन में प्रवेश करने से पहले यहां हर जोड़ा आकर नतमस्तक होता है. मां समलेश्वरी से आशीर्वाद लेने के बाद ही नवदंपती अपने नई गृहस्थी की शुरुआत करते हैं.
यहां मां सम्लेश्वरी को नवरात्रि पर्व में तिथि अनुसार भोग लगाया जाता है. जिसका अपना विशेष फल भी है. प्रतिपदा को घी का भोग लगाया जाता है, इससे रोग की मुक्ति होती है. द्वितीया को यहां शक्कर का भोग लगता है, इससे दीर्घायु की प्राप्ति होती है. तृतीया को दूध का भोग लगाने से सभी प्रकार के दुख दूर होते हैं. चतुर्थी को मालपुआ के भोग से विघ्न क्लेश पास नहीं आते है.
वहीं पंचमी को केले का भोग लगाने से बुद्धि कौशल में वृद्धि होती है. षष्ठी को मधु के भोग से शांति प्राप्ति होती है. सप्तमी को गुड़ के भोग से शोक दूर होता है. अष्टमी को नारियल का भोग लगाने से ताप शांति मिलती है और नवमी को मां को लाई का भोग लगाने से लोक-परलोक में सुख मिलता है. यहां महाअष्टमी की रात नींबू माला समर्पित की जाती है.
वर्ष 1760 में बना था मंदिर
सम्लेश्वरी व्यवस्थापक समिति के संरक्षक राजमहल चांपा कुमार साहब रुद्रेश्वर शरण सिंह तथा अध्यक्ष कुंवर भिवेन्द्र बहादुर सिंह हैं. चाम्पा में सम्लेश्वरी देवी की प्राण प्रतिष्ठा और स्थापना का इतिहास काफी रोचक है. समलेश्वरी मंदिर के स्थापना के इतिहास में बताया जाता है कि वर्ष 1760 में मंदिर निर्माण एवं प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा तत्कालीन जमींदार विश्वनाथ सिंह ने कराई. पूर्व में हसदेव नदी का पूर्वी भू-भाग ओडिशा संबलपुर रियासत के अंतर्गत था. पश्चिमी भूभाग रतनपुर रियासत का क्षेत्र था. किसी बात को लेकर उस समय एकाएक संबलपुर रियासत द्वारा रतनपुर पर चढ़ाई कर दी गई. ऐसी विकट परिस्थिति में रतनपुर नरेश के सामने एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई. जिसमें चाम्पा जमींदार विश्वनाथ सिंह के पूर्वजों ने रतनपुर का साथ दिया. दोनों रियासतों में घमासान युद्ध के बाद अंतत: विजयश्री रतनपुर को मिली.
यहीं से शुरू हुई चांपा जमींदारी
युद्ध में चांपा जमींदार के पूर्वजों का महत्वपूर्ण योगदान रहा. विजय के पश्चात जीता हुआ भाग विश्वनाथ सिंह के पूर्वजों को प्राप्त हुआ. यहीं से चाम्पा जमींदारी की स्थापना हुई. इसे मदनपुर 84 के नाम से जाना जाता है. जमींदार परिवार का मुख्य निवास ग्राम पहरिया था. जमींदार परिवार द्वारा मदनपुर हसदेव नदी के पश्चिम भाग में महामाया मंदिर का निर्माण कराया गया. चांपा को राजधानी बनाई गई. नदी के पूर्व भाग में स्थित चांपा चूंकि ओडिशा संबलपुर से जीता हुआ भू-भाग था, जो चांपा जमींदार के अधीन था. वहां की आस्था न टूटे इस कारण संबलपुर रियासत के सम्लेश्वरी देवी मंदिर का जमींदार परिवार ने चाम्पा में निर्माण कराया. साथ ही उन्हें कुलदेवी माना गया.
चांपा की हैं कुलदेवी
हर साल चैत्र व क्वांर नवरात्रि में यहां मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित होती है. यहां जवारा का अनूठे तरीके से विसर्जन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त लोट मारते हैं. मां समलेश्वरी को चांपा की कुलदेवी भी कहा जाता है. मां सम्लेश्वरी देवी की दरबार में आने वाले सभी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.
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