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न मंदिर की चाह, न मूर्ति की पूजा: एक ऐसा संप्रदाय जो पूरे शरीर पर लिखवाता है राम नाम, आधुनिक युग में अब पहचान पर संकट

इस संप्रदाय से जुड़े लोग अपने पूरे शरीर पर राम-राम का गुदना अर्थात स्थाई टैटू बनवाते हैं, राम-राम लिखे कपड़े धारण करते ...अधिक पढ़ें

लखेश्वर यादव
छत्तीसगढ़
के जांजगीर-चांपा जिले में एक ऐसा संप्रदाय है जिसके रोम-रोम में राम बसते है. जब इस संप्रदाय के लोगों को जातीय भेदभाव और छुआछूत की भावना से मंदिर जाने से रोका गया तो इन्होंने अपने तन को ही मंदिर बना लिया . इस संप्रदाय से जुड़े लोग अपने पूरे शरीर पर राम-राम का गुदना अर्थात स्थाई टैटू बनवाते हैं, राम-राम लिखे कपड़े धारण करते हैं, घरों की दीवारों पर राम-राम लिखवाते हैं, आपस में एक दूसरे का अभिवादन राम-राम कह कर करते हैं, यहां तक कि एक-दूसरे को राम-राम के नाम से ही पुकारते भी हैं. हम बात कर रहे है रामनामी संप्रदाय की .

शरीर के हर हिस्से पर राम का नाम, बदन पर रामनामी चादर, सिर पर मोर पंख की पगड़ी और पैर में घुंघरू रामनामी लोगों की पहचान मानी जाती है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की भक्ति और गुणगान ही इनकी जिंदगी का एकमात्र मकसद है. रामनामी संप्रदाय के पांच प्रमुख प्रतीक हैं. भजन खांब या जैतखांब, शरीर पर राम-राम का नाम गोदवाना, सफेद कपड़ा ओढऩा, जिस पर काले रंग से राम-राम लिखा हो, घुंघरू बजाते हुए भजन करना और मोरपंखों से बना मुकट पहनना है.

राम-राम और राम का नाम है संस्कृति का हिस्सा :
जांजगीर-चांपा जिले के एक छोटे से गांव चारपारा में इस संप्रदाय की स्थापना हुई थी. 1890 में एक सतनामी युवक परशुराम ने इसकी नींव रखी. छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के लिए राम का नाम उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. एक ऐसी संस्कृति, जिसमें राम नाम को कण-कण में बसाने की परंपरा है. छत्तीसगढ़ में रामनामी समंप्रदाय के बारे में कहा जाता है कि राम-राम और राम का नाम उनकी संस्कृति, उनकी परंपरा और आदत का हिस्सा है। इस संप्रदाय के कण-कण में राम बसे हैं। राम का नाम इनके जीवन में हर समय गुंजायमान है।

मंदिर में नहीं मिला प्रवेश तो त्याग दिया मंदिर और मूर्ति :
रामनामी संप्रदाय के लोग कहते हैं कि हमारा तन ही मंदिर है. कहा जाता है कि भारत में भक्ति आंदोलन जब चरम पर था, तब सभी धर्म के लोग अपने अराध्य देवी-देवताओं की रजिस्ट्री करवा रहे थे. उस समय दलित समाज के हिस्से में न तो मूर्ति आया और न ही मंदिर. उनसे मंदिर के बाहर खड़ा होने तक का हक छीन लिया गया था. एक सदी पहले रामनामी समाज के लोगों को भी छोटी जाति का बताकर उन्हें मंदिर में नहीं घुसने दिया गया था. इसी घटना के बाद रामनामी संप्रदाय के लोगों ने मंदिर और मूर्ति दोनों को त्याग दिया।

मांस मदिरा से दूर रहते है सम्प्रदाय के लोग:
संप्रदाय सिर्फ राम का नाम ही शरीर पर नहीं गुदवाता बल्कि अहिंसा के रास्ते पर भी चलता है. इस सम्प्रदाय के लोग न तो झूठ बोलते हैं, न ही मांस खाते हैं. इस समुदाय की विचित्रता को देखना है तो एक बार छत्तीसगढ़ के कुछ गांवों में होने वाले भजन मेले में जरूर शामिल होना चाहिए.

रामनामी संप्रदाय पर अब पहचान का संकट :
शरीर के विभिन्न हिस्सों में राम नाम लिखवाने के कारण इस संप्रदाय से जुड़े लोग अलग से ही पहचान में आ जाते हैं. लेकिन सिर से लेकर पैर तक, यहां तक की जीभ व तलवे में भी स्थाई रुप से राम नाम गुदवाने वाले रामनामियों के सामने अब अपनी पहचान का संकट खड़ा हो गया है.कारण है रामनामियों की नयी पीढ़ी का राम नाम गुदवाने की अपनी परम्परा से दूर होते चले जाना. रामनामी संप्रदाय की नयी पीढ़ी मात्र ललाट या हाथ पर एक या दो बार राम-राम गुदवा कर किसी तरह अपनी परम्परा का निर्वाह कर लेना चाह रही है.

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