उषा वर्मा पैरा आर्टिस्ट
रिपोर्ट- लखेश्वर यादव
जांजगीर-चांपा. पंजाब, हरियाणा और यूपी जैसे राज्यों में पराली जलाने की समस्या से हर साल व्यापक पैमाने पर प्रदूषण फैलता है. वहीं छत्तीसगढ़ में इस वेस्ट पराली को जलाने की बजाय इसका उपयोग इनोवेशन और क्रिएशन में किया जा रहा है. जांजगीर-चांपा जिले में एक घरेलू महिला ने धान की पराली का उपयोग अपने आर्ट को निखारने में किया है. उषा वर्मा ने वेस्ट पराली का उपयोग करके कई तरह की पेटिंग और सजावटी सामान बनाने का काम शुरू किया है. जिसकी हर तरफ प्रशंसा हो रही है. साथ ही विदेशों में रहने वाले लोग भी पैरा आर्ट से बनी कलाकृतियों की डिमांड कर रहे हैं.
धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की एक खास कला है पैरा आर्ट, जिसमें धान के आवरण यानी खोल से पेंटिंग बनाई जाती है. उस खोल को पैरा (पराली) कहते हैं. जांजगीर चाम्पा जिले के अफरीद गांव की रहने वाली उषा वर्मा इस कला को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं. उन्होंने इस धान के पैरा (पराली) से एक माह की मेहनत के बाद दर्जनों महापुरुषों और भगवान के कई तस्वीरें बनाई है,. जिसे लोगों ने काफी पसंद किया है.
प्रदेश में चर्चा
उषा अब इस कला को आगे बढ़ाना चाहती हैं. इसलिए इस कला को नि:शुल्क सिखाने पर विचार कर रही हैं. इसकी शुरुआत स्कूलों से ही करेंगी. उषा वर्मा गृहणी है. घर के साथ-साथ पैरा आर्ट के प्रति लगाव देखकर परिवार वाले उनका हौसला अफजाई करते हैं. उषा ने महज एक साल पहले ही पैरा आर्ट पर काम शुरू किया. आज उनकी चर्चा प्रदेश के कोने-कोने में हो रही है.
रायगढ़ से ली ट्रेनिंग
उषा ने बताया कि पैरा आर्ट की ट्रेनिंग रायगढ़ से ली थी. पति और बच्चे भी इस कला में हाथ बंटाते हैं. वे बताती हैं कि पैरा आर्ट को बनाने में कार्डबोर्ड, काला कपड़ा, बटर पेपर, ब्लेड की सहायता से सीधा और प्रेस किया हुआ पैरा और ग्लू का उपयोग किया जाता है. रायगढ़ और जांजगीर जिले में कई अवसरों पर एग्जिबिशन के रूप में इस आर्ट को लोगों तक पहुंचाया है. पैरा आर्ट से बनाए कलाकृतियों की कीमत 500 से लेकर 1000 रुपये तक है. जिससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है.
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Tags: Art and Culture