छत्तीसगढ़ के जांजगीर चंपा जिले में पहरिया पाठ जंगल है, जहां की लकड़ी को ग्रामीण अशुभ मानते हैं.
रिपोर्ट: लखेश्वर यादव
जांजगीर-चांपा: छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में एक ऐसा जंगल है, जहां न पेड़ काटा जाता है और न ही यहां की सूखी लकड़ियों को उठाकर घर लाया जाता है. लोगों का ऐसा मानना है कि गलती से भी अगर इस जंगल की एक लकड़ी भी घर पहुंच जाए तो अनिष्ट हो जाता है. परिवार पर ऐसी आफत बरसती है कि तोड़ निकालना मुश्किल हो जाता है. हम बात कर रहे हैं पहरिया पाठ जंगल की. जहां एक ओर मां अन्नधरी विराजमान हैं तो वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों की अपनी मान्यताएं भी हैं. जंगल की लकड़ी उपयोग नहीं करने की यह परंपरा इस क्षेत्र में बरसों से चली आ रही है.
पहरिया पाठ जंगल में चारों तरफ भरपूर हरियाली के साथ ही सूखे पेड़ों के ठूंठ भी खूब मिल जाएंगे. यहां भरपूर मात्रा में सूखे पेड़ और लकड़ियां होने के बाद भी ग्रामीण इनका जलाऊ लकड़ी के रूप में प्रयोग नहीं करते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि उनके पूर्वजों के समय से ये परंपरा चली आ रही है. अगर कोई गलती से जंगल से लकड़ी उठा भी लाया तो कुछ दिनों में ही उसके घर में अनहोनी हो गई. मां अन्नधरी दाई भी यहां विराजमान हैं. इन्हीं का प्रताप है कि लोग जंगल को पवित्र मानते हुए यहां पेड़ों की कटाई नहीं करते.
देवी करतीं हैं हमारी रक्षा
पहरिया पाठ पहाड़ के देवी मां मंदिर के संदर्भ में कोई लिखित प्रमाण तो नहीं है, फिर भी बुजुर्गों के अनुसार प्राचीन समय से यहां देवी विराजमान हैं. उन्होंने बताया कि सैकड़ों वर्षों पहले पहरिया रतनपुर राज्य के अंतर्गत आने वाला पहाड़ी गांव था. ग्राम पहरिया चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ है. ग्रामीणों के ऐसा मानना है कि देवी उनकी रक्षा करती हैं. पहरिया पाठ पहाड़ में विराजित मां अन्नधरी दाई के मंदिर में साल में दो बार मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलन किया जाता है. नवरात्र में माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का यहां तांता लगा रहता है.
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Tags: Chhattisgarh news, Chhattisgarh tradition, Forest
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