Chhattisgarh:अपने ही बम से मारे गए नक्सली की मूर्ति लगी, पुलिस ने कहा-हिंसा के खिलाफ देगी संदेश
Chhattisgarh:अपने ही बम से मारे गए नक्सली की मूर्ति लगी, पुलिस ने कहा-हिंसा के खिलाफ देगी संदेश
नक्सली कमांडर की मूर्ति का अनावरण हुआ.
Statue of naxalite: नक्सली कमांडर सोमजी इसी साल फरवरी में तब मारा गया था, जब वह सुरक्षा बलों की जान लेने के लिए आईईडी ब्लास्ट के लिए बम प्लांट कर रहा था. इस दौरान ब्लास्ट में सोमजी खुद अपनी ही साजिश का शिकार हो गया और उसके चीथड़े उड़ गए.
कांकेर. नक्सलियों के गढ़ में एक नक्सली कमांडर की मूर्ति चर्चा में आ गई ,है क्योंकि पुलिस का कहना है कि इस मूर्ति को हटाया नहीं जाएगा, बल्कि नक्सलवाद (Naxalism)के खिलाफ सबक देने की मिसाल के तौर पर इसका प्रचार होगा. वास्तव में, 18 फरवरी 2021 को आमाबेड़ा क्षेत्रांतर्गत सीपीआई माओवादी कार्यकर्ता DVCM सोमजी आईईडी लगा रहा था, तभी खुद आईईडी विस्फोट की चपेट में आकर मारा गया था.
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (IG) सुन्दरराज पी. के मुताबिक ग्राम आलदण्ड में स्थापित की गई सोमजी की मूर्ति को ध्वस्त नहीं किया जाएगा. इस स्थान को हिंसात्मक विचारों के विरुद्ध सीख लेने की पाठशाला के रूप में प्रचारित किया जाएगा. इस मूर्ति और इसके पीछे की कहानी आपको बताते हैं.
कैसे हुई थी सोमजी की मौत?
जिला कांकेर के आमाबेड़ा थाना क्षेत्र के अंतर्गत चुकलापाल के पास सुरक्षाबलों को क्षति पहुंचाने की एक साज़िश रची जा रही थी. सीपीआई माओवादी के उत्तर बस्तर डिवीजन (CPI Maoist Buster Division) के कमेटी सदस्य सोमजी उर्फ सहदेव वेदड़ा ने सुरक्षाबलों को उड़ा देने की नीयत से आईईडी लगा रहा था, लेकिन उसी दौरान विस्फोट हो गया और इसकी चपेट में आकर खुद माओवादी कैडर सोमजी के चीथड़े उड़ गए.
कौन था सोमजी?
ग्रामीणों की मानें तो सोमजी का घर का नाम मनीराम था. उसका बचपन गांव के अन्य बच्चों जैसे खेलते-कूदते एवं पढ़ते बीता. इस दौरान वर्ष 2004 में उत्तर बस्तर डिवीजन के सीपीआई माओवादी कैडर सुजाता, ललिता और रामधेर द्वारा 14 साल की उम्र में जबरन उसको माओवादी संगठन में भर्ती करवाकर हाथ में बंदूक थमा दी गई. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं महाराष्ट्र की बाहरी माओवादी कैडर की साजिश में फंसकर मनीराम वेदड़ा ने सोमजी की पहचान हासिल की.
पूर्व नक्सली कमांडर सोमजी की प्रतिमा.
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं महाराष्ट्र की बाहरी माओवादी कैडर की साजिश में फंसकर मनीराम वेदड़ा ने सोमजी की पहचान हासिल की. 17 सालों तक कई ग्रामीणों की हत्या, आगजनी, तोड़फोड़ और अन्य विनाशकारी गतिविधियों में शामिल रहा. सोमजी के परिजनों और ग्रामीणों ने उससे कई बार हिंसा का रास्ता छोड़कर लौटने की गुहार लगाई थी, लेकिन वह लौटा नहीं. अंतत: इसी साल 18 फरवरी को अपनी ही साज़िश का शिकार हो गया.
क्यों लगाई गई है मूर्ति?
ग्राम आलदण्ड में परिजनों और ग्रामीणों सोमजी की मूर्ति स्थापित की है. उनका मानना है कि क्षेत्र की जनता को यह मूर्ति हमेशा याद दिलाएगी कि हिंसात्मक विचारों का अंजाम दर्दनाक ही होता है. साथ ही, यह मूर्ति यादगार भी बनेगी कि कैसे आदिवासी युवाओं को माओवादी साज़िशन हिंसा के रास्ते पर धकेलते हैं.
आईजी सुन्दरराज ने भी कहा कि आलदण्ड में स्थापित सोमजी की मूर्ति को ध्वस्त नहीं किया जाएगा. गौरतलब है कि सोमजी उर्फ सहदेव वेदड़ा के गृह ग्राम आलदण्ड में मूर्ति लगाने के लिए ग्रामीणों ने परिजनों और पुलिस के बीच संपर्क और सामंजस्य बनाकर ही मूर्ति लगाने का कदम उठाया था.