इस गांव में 150 साल से नहीं खेली गई होली, लोगों को है 'अनहोनी' का डर

लोग मानते हैं कि होली खेलने से गांव में अनहोनी हो सकती है. (Demo Pic)
छत्तीसगढ़ के इस गांव के ग्रामीणों का कहना है कि अनहोनी के डर से गांव में होली (Holi) नहीं खेली जाती. उनका मानना है कि अगर कोई ऐसा करता भी है तो उसके साथ बुरा होने की आशंका रहती है.
- News18 Chhattisgarh
- Last Updated: March 9, 2020, 11:26 AM IST
कोरबा. होली (Holi) का नाम लेते ही जेहन में रंग-गुलाल और उमंग का ख्याल हिलोरे मारने लगता है. लेकिन, छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां के ग्रामीण ने पिछले तकरीबन डेढ़ सौ साल से होली नहीं खेली. होली में रंग-गुलाल न उड़े यह सुनने में अटपटा जरूर लगता है, लेकिन यह सच है कि कोरबा जिले के ग्राम पंचायत पुरेना के आश्रित ग्राम खरहरी (Kharhari) के लोगों ने पिछले 150 वर्षों से होली नहीं खेली है.
खरहरी के ग्रामीणों की मानें तो कई साल पहले जब उनके पूर्वज गांव में होलिका दहन कर रहे थे, ठीक उसी समय उनके घर भी अचानके से जलने लगे. पुरेना गांव के रहने वाले चंद्रिका और मेहतर का कहना है कि
इस घटना के बाद से किसी अनहोनी के डर से गांव में होली नहीं खेली जाती है. माना जाता है कि अगर कोई ऐसा करता भी है तो उसके साथ कुछ बुरा होने की आशंका रहती है.
होली के दिन रहता है सन्नाटापुरेना के पूर्व सरपंच कन्हैया लाल की मानें तो ग्रामीण घरों में लगी आग को किसी दैवीय प्रकोप का नतीजा मान बैठे है. यही कारण है कि तब से आज तक पूरे गांव में होली के दिन सन्नाटा पसर जाता है. वहीं, कुछ ग्रामीण यह भी बताते हैं कि होली के दिन गांव का ही एक ग्रामीण होली खेलकर पड़ोसी गांव से अपने गांव खरहरी पहुंचा तो उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और उसकी मृत्यु हो गई. इस हादसे के बाद ये ग्रामीण दहशत में आ गए और कभी होली न खेलने का प्रण ले लिया.

ग्रामीण मानते हैं ये वजह
ग्राम खरहरी के ग्रामीण होली न खेलने के पीछे एक दैवीय कारण भी बताते है. ग्रामीणों की मानें तो गांव के करीब में आदिशक्ति मां मड़वारानी का मंदिर स्थित है. ग्रामीण के अनुसार, देवी ने उसे स्वप्न दिया कि उनके गांव के लोग होली न मनाए. इसी को भविष्यवाणी मानकर पीढ़ी दर पीढ़ी होली का पर्व न मनाने का यहां के ग्रामीणों ने फैसला कर लिया.

समाज में होली पर्व पर चली आ रही परंपरा का पालन करने में ग्रामीण बच्चे भी पीछे नहीं हैं. बच्चे भी अपने बुजुर्गों की बताई बातों का पालन कर रहे हैं. वहीं, दूसरे गांव से खरहरी गांव शादी हो कर पहुंची नई बहुएं भी गांव की परंपरा का पालन करती हैं.

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खरहरी के ग्रामीणों की मानें तो कई साल पहले जब उनके पूर्वज गांव में होलिका दहन कर रहे थे, ठीक उसी समय उनके घर भी अचानके से जलने लगे. पुरेना गांव के रहने वाले चंद्रिका और मेहतर का कहना है कि
इस घटना के बाद से किसी अनहोनी के डर से गांव में होली नहीं खेली जाती है. माना जाता है कि अगर कोई ऐसा करता भी है तो उसके साथ कुछ बुरा होने की आशंका रहती है.
होली के दिन रहता है सन्नाटापुरेना के पूर्व सरपंच कन्हैया लाल की मानें तो ग्रामीण घरों में लगी आग को किसी दैवीय प्रकोप का नतीजा मान बैठे है. यही कारण है कि तब से आज तक पूरे गांव में होली के दिन सन्नाटा पसर जाता है. वहीं, कुछ ग्रामीण यह भी बताते हैं कि होली के दिन गांव का ही एक ग्रामीण होली खेलकर पड़ोसी गांव से अपने गांव खरहरी पहुंचा तो उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और उसकी मृत्यु हो गई. इस हादसे के बाद ये ग्रामीण दहशत में आ गए और कभी होली न खेलने का प्रण ले लिया.

खरहरी के ग्रामीणों की मानें तो होली खेलने से गांव में अनहोनी हो सकती है.
ग्रामीण मानते हैं ये वजह
ग्राम खरहरी के ग्रामीण होली न खेलने के पीछे एक दैवीय कारण भी बताते है. ग्रामीणों की मानें तो गांव के करीब में आदिशक्ति मां मड़वारानी का मंदिर स्थित है. ग्रामीण के अनुसार, देवी ने उसे स्वप्न दिया कि उनके गांव के लोग होली न मनाए. इसी को भविष्यवाणी मानकर पीढ़ी दर पीढ़ी होली का पर्व न मनाने का यहां के ग्रामीणों ने फैसला कर लिया.

ग्राम खरहरी के ग्रामीण होली न खेलने के पीछे एक दैवीक कारण को भी बताते है.
समाज में होली पर्व पर चली आ रही परंपरा का पालन करने में ग्रामीण बच्चे भी पीछे नहीं हैं. बच्चे भी अपने बुजुर्गों की बताई बातों का पालन कर रहे हैं. वहीं, दूसरे गांव से खरहरी गांव शादी हो कर पहुंची नई बहुएं भी गांव की परंपरा का पालन करती हैं.
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