होम /न्यूज /छत्तीसगढ़ /Navratri 2023: यहां तप में लीन हैं कोसगाई देवी...16वीं शताब्दी के इस मंदिर में नहीं है छत, जानें महिमा

Navratri 2023: यहां तप में लीन हैं कोसगाई देवी...16वीं शताब्दी के इस मंदिर में नहीं है छत, जानें महिमा

X
कोसगई

कोसगई देवी माता

Korba News: कोरबा में कोसगाई देवी का प्राचीन मंदिर है. यहां मां की प्रतिमा खुले आसमान के नीचे है. मान्यता है कि मां यहा ...अधिक पढ़ें

रिपोर्ट: अनूप पासवान

कोरबा. जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर कोसगाई पहाड़ पर स्थित देवी मंदिर अपनी प्रचीन पुरातात्विक धरोहर के लिए के लिए विख्यात है. प्रकृति की गोद में कोसगाई गढ़ अपनी प्राचीन कथाओं को समेटे जिले की प्राचीन वैभवशाली इतिहास को दर्शाता है. पुरातात्विक दृष्टि से देवी मंदिर 16वीं शताब्दी का बताया जाता है.

छत्तीसगढ़ में छुरीगढ़ से जुड़े इस अद्वितीय मंदिर में आज भी राजघराने के लोग पूजा अनुष्ठान करने आते हैं. इस पहाड़ पर चढ़ना जितना कठिन लगता है, ऊपर चढ़ने के बाद उससे कई गुना ज्यादा सुकून मिलता है. मान्यता है कि यहां मनोकामना लेकर आने वाले हर भक्त की मुरादें देवी मां पूरी करती हैं. यही कारण है कि दिन प्रतिदिन मंदिर में भक्तों की भीड़ बढ़ती जा रही है.

यहां फहरता है सफेद ध्वज
आमतौर पर देवी मंदिरों में लाल ध्वज फहराया जाता है, लेकिन कोसगाई देवी मंदिर ऐसा है, जहां सफेद ध्वज चढ़ाया जाता है. सफेद ध्वज को शांति का प्रतीक माना जाता है. पहाड़ के ऊपर विराजमान मां कोसगाई देवी कुंवारी स्वरूप में विराजमान हैं. इसलिए भी माता को सफेद ध्वज चढ़ाया जाता है. इस मंदिर में पहुंचने वाले भक्तों को माता सुख और शांति प्रदान करती है.

प्रयास के बावजूद नहीं बन पाई छत
माता खुले आसमान के नीचे पहाड़ की चोटी पर विराजमान हैं. माता का दरबार खुले आसमान के नीचे है. प्रचलित कथा के अनुसार, राजघराने के पूर्वजों ने एक बार छत बनाने का प्रयास किया था, लेकिन माता ने स्वप्न में आकर उन्हें मना कर दिया. मंदिर में सेवा कार्य में जुटे मेहत्तर सिंह बताते हैं कि वे अपने परिवार की चौथी पीढ़ी हैं, जो यहां सेवा कर रहे हैं. माता के मंदिर में छत नहीं है, क्योंकि माता तपस्या में बैठी हैं. मान्यता यह है कि देवी मां जग कल्याण के लिए तप में लीन हैं और इसी कारण से 4 महीने की सर्द ठंडी, 4 महीने की बरसात, 4 महीने गर्मी की धूप के ताप को सह रही हैं.

रतनपुर के राजा ने छुपाया था खजाना!
16वीं शताब्दी में हैहयवंशी राजा बहारेन्द्र साय ने मां कोसगई मंदिर की स्थापना की थी. इन्हें ही कलचुरी राजा भी कहा जाता है. वह रतनपुर से खजाना लेकर आए थे. इस खजाने को कोसगई में रखा गया था. इस कारण इस जगह का नाम कोसगई पड़ा. मान्यता है कि खजाने की रक्षा और क्षेत्र में शांति की स्थापना के लिए कोसगई के मंदिर को स्थापित किया गया.

(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. NEWS18 LOCAL किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)

Tags: Chaitra Navratri, Chhattisgarh news, Korba news

टॉप स्टोरीज
अधिक पढ़ें