छत्तीसगढ़ के इस अनोखे गांव की दो अनसुनी कहानी, जहां बाराती बन गए पत्थर,
रामकुमार नायक
महासमुंद. छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में एक ऐसा गांव है जहां श्राप की वजह से 150 बाराती पत्थर में तब्दील हो गए. इस घटना के बाद गांव का नाम बरतियाभांठा पड़ गया. राजधानी रायपुर से लगभग 150 किलोमीटर दूर बसना ब्लॉक के इस गांव के नामकरण का कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, मगर आज भी ग्रामीणों के द्वारा इसको लेकर कई कहानियां सुनाई जाती हैं.
बरतियाभांठा दो शब्दों के संयोग से बना है, पहला- बरतिया जिसका अर्थ होता है स्त्री-पुरुष का मिलन या विवाह, और दूसरा भांठा- गांव या स्थान. बारातियों के समान आकृति वाले पत्थरों के कारण इस गांव का यह नाम पड़ा है. लगभग एक हज़ार की आबादी वाले इस गांव के बारे मे कई रोचक और रहस्यमयी कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि प्राचीनकाल में यहां ऋषियों का आश्रम हुआ करता था. एक बार आश्रम के पास एक बारात रात्रि भोज और विश्राम के लिए रुकी थी. ऋषियों के द्वारा बारातियों से भोजन का आग्रह किए जाने पर बारातियों ने उनका अपमान किया. इससे क्रोधित होकर ऋषियों ने सभी बरातियों को पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया.
वहीं, एक दूसरी कहानी के अनुसार लोग बताते हैं कि ठाकुरों की बारात वापसी के समय यहां विश्राम करने के लिए रुकी थी. किसी गलती के परिणामस्वरूप देवयोग से सभी लोग और वस्तुएं पत्थर की मूर्तियों में तब्दील हो गये. इसके कारण इस स्थान का नाम बाराती पत्थरों का स्थान या बरतियाभांठा पड़. गांव के ही रहने वाले राजकुमार दास और जानकार बुजुर्ग आज भी इन पत्थरों के अद्भुत कारनामों को बड़े उत्साह से सुनाते हैं. वो कहते हैं कि पहले इन पत्थरों से दर्द से कराहने की आवाज आती थी. साथ ही, सुबह-शाम इनसे रहस्यमयी सुगंध आया करती थी. इसके स्रोत का आज तक किसी को पता नहीं चला. इसके प्रतीकात्मक रूप में आज भी ग्रामवासी अपने ग्राम-देवता ठाकुरदेव की पूजा करते हैं.
प्राकृतिक आपदाओं से करते हैं रक्षा
मान्यता है कि यह अपने ग्रामवासियों की प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों से रक्षा करते हैं. कहते हैं कि अगर कोई इन पत्थरों को उठाने या घर ले जाने की कोशिश करता तो उसे इसका खामियाजा किसी बीमारी, पागलपन, मौत के रूप में भुगतना पड़ता है.
कभी अपने अद्भुत पत्थरों के कारण पुरातात्विक दृष्टि से प्रसिद्ध यह गांव अब अपने ही लोगों के द्वारा उपेक्षित है. जिन पत्थरों ने यहां के लोगों को पहचान दिलाई, उन्होंने ही अतिक्रमण कर के इनकी छाती पर भवन बना डाले. अतिक्रमणकारियों की सक्रियता और शासन की ढिलाई के कारण बरतियाभांठा की धरोहर को नष्ट किए जा रहा है.
कैसे पहुंचें यहां
बरतीयाभांठा पहुंचने के लिए रायपुर, रायगढ़ व महासमुंद शहर से रोजाना बसें चलती हैं. रायपुर से नेशनल हाइवे पर 150 किलोमीटर के बाद बसना से यह 16 किलोमीटर की दूरी पर है.
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