ये हैं रायगढ़ के हठयोगी, अपनी इस खास 'खूबी' से दे रहे विज्ञान को चुनौती

अपनी खास खूबी की वजह से ये बाबा काफी फेमस हैं.
लोगों का मानना है कि हर मौसम में बाबा सत्यनारायण इसी तरह जप में लीन रहते है. लोग बाबा को शिव भक्त मानते हैं. बाबा को मानने वालों की फेहरिस्त भी काफी लंबी है.
- News18 Chhattisgarh
- Last Updated: February 22, 2020, 12:42 PM IST
रायगढ़. भारत देश संतो और महात्माओं का देश माना जाता है. कहा जाता है कि संत साधना भक्ती से मोक्ष प्राप्ती की कोशिश करते हैं. मगर ऐसे बहुत कम योगी होते हैं जो सभी भौतिक सुख सुविधाओं को त्याग कर तप में लीन हो जाते हैं. रायगढ़ (Raigarh) के हठयोगी भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं. न सिर्फ ये लोगों के आस्था का केंद्र है बल्कि विज्ञान को भी चुनौती दे रहा हैं. दरअसल, रायगढ़ शहर से मजह 6 किलोमीटर दूर स्थित कोसमनारा गांव छत्तीसगढ़ में नहीं बल्कि पूरे देश में इन हठयोगी की वजह से प्रसिद्ध हैं. इनकी कठीन तपस्या को देखने दूर दराज से लोग आते हैं. लोगों का मानना है कि हर मौसम में बाबा सत्यनारायण इसी तरह जप में लीन रहते है. लोग बाबा को शिव भक्त मानते हैं. बाबा को मानने वालों की फेहरिस्त भी काफी लंबी है.
कैसे बने सत्यनारायण से बाबा
लोगों का कहना है कि सत्यनारायण बाबा देवरी डूमरपाली गांव के रहने वाले हैं. वे कृषक मध्यमवर्गी परिवार में 12 जुलाई 1984 को पैदा हुए थे. पिता का दयानिधी और माता का नाम हंसमती था. दोनों ने उनका नाम प्यार से हलधर रखा था लेकिन पिता उन्हें सत्यनारायण कह कर पुकारते थे. लोगों का मानन है कि सत्यनारायण बचपन से ही शिव के भक्त थे. वे गांव के शिव मंदिर में 7 दिनों तक तपस्या करते रहे. 16 फरवरी 1998 को सत्यनारायण घर से स्कूल जाने निकले और अपने गांव से 18 किलोमीटर दूर कोसमनारा गांव में तप करने बैठ गए. तब से लेकर आज तक बाबा उसी स्थान पर बैठकर तप करते हैं. कहा जाता है कि उस स्थान पर तब से अखंड धूनी भी जल रहा है. पहले बाबा जमीन पर बैठ कर तप किया करते थे, मगर भक्तों के आग्रह पर चबुतरा बना गया. अब उसी उसी में बैठ कर तप करते है.
विज्ञान को चुनौती- डॉ शुक्लाआर्थो सर्जन डॉ. सुरेन्द्र शुक्ला का कहना है कि एक ही स्थान पर एक ही मुद्रा में इस तरह बैठना काफी खतरनाक हो सकता है. इसमें कई तरह के कॉम्पलिकेशन आ सकता है. लोग इन्हें हठयोग भी कहते हैं मगर जानकारों की मानें तो यह विज्ञान के लिए भी चुनौती है, क्योकि एक ही स्थान पर बैठे रहना, कुछ समय उठन, फिर वापस बैठे रहना, संयमित भोजना और हर मौसम में चंद कपड़ों में रहना विज्ञान को चुनौती देने जैसा है.

बाबा से जुड़ी मान्यता
लोगों की मान्यता है कि बाबा किसी से बात नहीं करते, जरूरत के मुताबिक इशारों से ही समझाते हैं. हर मौसम में बाबा खुले आसमान के नीचे बैठे रहते हैं. स्थानिय निवासी मुकेश शर्मा का कहन है कि लोग सत्यनारायण बाबा को अवतारी भी मानते हैं. यहां हर साल लाखों लोग बाबा के दर्शन करने आते हैं. सावन हो या शिवरात्रि यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.

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कैसे बने सत्यनारायण से बाबा
लोगों का कहना है कि सत्यनारायण बाबा देवरी डूमरपाली गांव के रहने वाले हैं. वे कृषक मध्यमवर्गी परिवार में 12 जुलाई 1984 को पैदा हुए थे. पिता का दयानिधी और माता का नाम हंसमती था. दोनों ने उनका नाम प्यार से हलधर रखा था लेकिन पिता उन्हें सत्यनारायण कह कर पुकारते थे. लोगों का मानन है कि सत्यनारायण बचपन से ही शिव के भक्त थे. वे गांव के शिव मंदिर में 7 दिनों तक तपस्या करते रहे. 16 फरवरी 1998 को सत्यनारायण घर से स्कूल जाने निकले और अपने गांव से 18 किलोमीटर दूर कोसमनारा गांव में तप करने बैठ गए. तब से लेकर आज तक बाबा उसी स्थान पर बैठकर तप करते हैं. कहा जाता है कि उस स्थान पर तब से अखंड धूनी भी जल रहा है. पहले बाबा जमीन पर बैठ कर तप किया करते थे, मगर भक्तों के आग्रह पर चबुतरा बना गया. अब उसी उसी में बैठ कर तप करते है.

सत्यनारायण बाबा
बाबा से जुड़ी मान्यता
लोगों की मान्यता है कि बाबा किसी से बात नहीं करते, जरूरत के मुताबिक इशारों से ही समझाते हैं. हर मौसम में बाबा खुले आसमान के नीचे बैठे रहते हैं. स्थानिय निवासी मुकेश शर्मा का कहन है कि लोग सत्यनारायण बाबा को अवतारी भी मानते हैं. यहां हर साल लाखों लोग बाबा के दर्शन करने आते हैं. सावन हो या शिवरात्रि यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.
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