बस्तर में अपने ही साथियों को क्यों मार रहे हैं नक्सल मोर्चे पर तैनात सुरक्षाबलों के जवान?
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) में नक्सल (Naxal) मोर्चे पर तैनात सुरक्षा बल (Security Forces) के जवानों ने पिछले तीन साल में अपने ही 12 साथी जवानों को मार डाला.
- News18 Chhattisgarh
- Last Updated: December 4, 2019, 2:20 PM IST
रायपुर. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) में नक्सल हिंसा (Naxal violence) पर लगाम लगाने के लिए तैनात जवान किस मानसिक हालात में हैं, इसका अंदाजा लगाना सरकारी तंत्र के लिए चुनौती बनता जा रहा है. बस्तर संभाग घोर नक्सल प्रभावित नारायणपुर (Narayanpur) के कडेनार स्थित आईटीबीपी (इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस) कैंप में बुधवार को एक जवान ने अपने साथियों पर अंधाधुंध गोली चला दी. इसमें गोली चलाने वाले जवान समेत छह जवानों की मौत हो गई. दो घायल जवानों को इलाज के लिए रायपुर लाया गया है. घटना के कारणों पर फिलहाल पर्दा नहीं उठा है, लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब बस्तर में नक्सलियों (Naxalite) से मोर्चा लेने के लिए तैनात अपने ही साथियों पर हमला कर दिए हों.
बस्तर (Bastar) में सुरक्षा बल (Security Forces) के जवानों का अपने ही साथियों पर हमला के कारणों को जानने की कोशिश करेंगे. इससे पहले ये जानते हैं कि बस्तर में कौन-कौन सी ऐसी घटनाएं हुईं, जिनमें जवानों ने अपने साथियों की ही जान ले ली.

वो मामले, जिनमें जवानों ने अपने साथियों को ही मारा छत्तीसगढ़ के बीजापुर में इसी साल 19 जून को नैमेड थाना क्षेत्र में छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स (सीएएफ) के कैंप में एक आरक्षक ने अपने ही दो साथियों को गोली मार दी है. इससे दोनों ही आरक्षकों की मौके पर ही मौत हो गई. बीजापुर जिले में ही 10 दिसंबर 2017 को बासागुड़ा कैंप में सीआरपीएफ की 168वीं बटालियन जी-कंपनी में जवानों के बीच विवाद हुआ. शाम करीब पांच बजे उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के मूल निवासी जवान संत कुमार को इतना गुस्सा आ गया कि उसने इंसास राइफल उठाई और अपने साथियों पर गोलियां बरसाने लगा. इसमें चार जवानों की मौके पर ही मौत हो गई. एक बुरी तरह घायल हो गया.
इससे पहले भी 12 मई 2013 को जगदलपुर संभाग मुख्यालय से करीब 13 किमी दूर बड़े मारेंगा के दूरदर्शन केंद्र में तैनात सीएएफ के जवानों के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें तीन जवानों की मौत हो गई थी. इसके अलावा 25 दिसंबर 2012 को दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर में तैनात सीआरपीएफ बटालियन के जवान दीप कुमार तिवारी ने राइफल से फायरिंग कर अपने चार साथियों की हत्या कर दी थी. गिरफ्तारी के बाद उसने जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी.
बड़ी संख्या में आत्महत्या
ऐसा नहीं है कि बस्तर में तैनात सुरक्षा बल के जवान अपने साथियों पर ही हमला कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में ऐसी भी कई घटनाएं हुईं जिनमें जवानों ने अपनी सर्विस रायफल या पिस्टल का इस्तेमाल दुश्मनों पर करने की बजाय खुद को खत्म करने में किया है. राज्य के पुलिस विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2018 में राज्य में 36 जवानों ने आत्महत्या की. इससे पहले वर्ष 2007 से अक्टूबर वर्ष 2017 तक की स्थिति में सुरक्षा बलों के 115 जवानों ने आत्महत्या की है. इनमें राज्य पुलिस के 76 तथा अर्धसैनिक बलों के 39 जवान शामिल हैं.

क्यों अपनी और अपनों के जान के दुश्मन बने जवान?
छत्तीसगढ़ की नामी मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अंबा सेठी कहती हैं- 'जंगलों में तैनात जवान लंबे समय से घर से दूर रहते हैं. सुविधाओं के आभाव में रहते हैं. इसलिए उनमें लो फ्रस्टेशन टॉलरेंस लंबे समय से रहता है. फ्रस्टेशन धीरे-धीरे अग्रेशन में बदल जाता है. इसके बाद थोड़े से ही विवाद के बाद वे आक्रामक रूप धारण कर लेते हैं. इसके चलते ही कई बार वे अपने साथियों या खुद को ही अपना दुश्मन मानने लगते हैं और हमला कर लेते हैं.'
रायपुर के मनोचिकित्सक डॉ. अशफाक हुसैन कहते हैं- 'इन घटनाओं को रोकने के लिए विभागीय तौर पर भी पहल करनी होगी. अधिकारियों की जवाबदारी है कि वह अपने मातहत कर्मचारियों के साथ बेहतर तालमेल बनाएं और उनकी परेशानी पूछें. इसके बाद परेशानी को दूर करने का भी पूरा प्रयास करें. इससे घटनाओं को रोकने में काफी हद तक सफलता मिल सकती है.'

सीएम ने कहा होगी जांच, एचएम बोले- नो फ्रस्टेशन
नारायणपुर के आईटीबीपी कैंप में हुई घटना के बाद सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि मामले की जांच करवाई जाएगी. इसके लिए विंदु तय किए जाएंगे. इधर मामले में राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू का कहना है कि घटना की विस्तृत जानकारी मंगाई जा रही है. जब उनसे पूछा गया कि क्या जवान छुट्टी नहीं मिलने या किसी दूसरे कारण से फ्रस्टेशन में रहते हैं तो गृहमंत्री साहू ने कहा- 'जवानों की छुट्टी तय रहती है. उन्हें छुट्टी के लिए रोका नहीं जाता है. इसलिए छुट्टी की वजह से घटना नहीं हुई होगी. फ्रस्टेशन की कोई बात नहीं है. आपसी विवाद हुआ होगा. जांच में कारण सामने आ जाएगा.'
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बस्तर (Bastar) में सुरक्षा बल (Security Forces) के जवानों का अपने ही साथियों पर हमला के कारणों को जानने की कोशिश करेंगे. इससे पहले ये जानते हैं कि बस्तर में कौन-कौन सी ऐसी घटनाएं हुईं, जिनमें जवानों ने अपने साथियों की ही जान ले ली.

छत्तीसगढ़ में सुरक्षा के लिए 10 हजार से अधिक जवान तैनात हैं (प्रतीकात्मक फोटो)
वो मामले, जिनमें जवानों ने अपने साथियों को ही मारा छत्तीसगढ़ के बीजापुर में इसी साल 19 जून को नैमेड थाना क्षेत्र में छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स (सीएएफ) के कैंप में एक आरक्षक ने अपने ही दो साथियों को गोली मार दी है. इससे दोनों ही आरक्षकों की मौके पर ही मौत हो गई. बीजापुर जिले में ही 10 दिसंबर 2017 को बासागुड़ा कैंप में सीआरपीएफ की 168वीं बटालियन जी-कंपनी में जवानों के बीच विवाद हुआ. शाम करीब पांच बजे उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के मूल निवासी जवान संत कुमार को इतना गुस्सा आ गया कि उसने इंसास राइफल उठाई और अपने साथियों पर गोलियां बरसाने लगा. इसमें चार जवानों की मौके पर ही मौत हो गई. एक बुरी तरह घायल हो गया.
इससे पहले भी 12 मई 2013 को जगदलपुर संभाग मुख्यालय से करीब 13 किमी दूर बड़े मारेंगा के दूरदर्शन केंद्र में तैनात सीएएफ के जवानों के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें तीन जवानों की मौत हो गई थी. इसके अलावा 25 दिसंबर 2012 को दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर में तैनात सीआरपीएफ बटालियन के जवान दीप कुमार तिवारी ने राइफल से फायरिंग कर अपने चार साथियों की हत्या कर दी थी. गिरफ्तारी के बाद उसने जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी.

अति नक्सल प्रभावित बीजापुर के पामेड़ में सड़क निर्माण में तैनात जवान (फाइल फोटो)
ऐसा नहीं है कि बस्तर में तैनात सुरक्षा बल के जवान अपने साथियों पर ही हमला कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में ऐसी भी कई घटनाएं हुईं जिनमें जवानों ने अपनी सर्विस रायफल या पिस्टल का इस्तेमाल दुश्मनों पर करने की बजाय खुद को खत्म करने में किया है. राज्य के पुलिस विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2018 में राज्य में 36 जवानों ने आत्महत्या की. इससे पहले वर्ष 2007 से अक्टूबर वर्ष 2017 तक की स्थिति में सुरक्षा बलों के 115 जवानों ने आत्महत्या की है. इनमें राज्य पुलिस के 76 तथा अर्धसैनिक बलों के 39 जवान शामिल हैं.

बस्तर में तैनात बड़ी संख्या में जवान आत्महत्या भी करते हैं (फाइल फोटो)
क्यों अपनी और अपनों के जान के दुश्मन बने जवान?
छत्तीसगढ़ की नामी मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अंबा सेठी कहती हैं- 'जंगलों में तैनात जवान लंबे समय से घर से दूर रहते हैं. सुविधाओं के आभाव में रहते हैं. इसलिए उनमें लो फ्रस्टेशन टॉलरेंस लंबे समय से रहता है. फ्रस्टेशन धीरे-धीरे अग्रेशन में बदल जाता है. इसके बाद थोड़े से ही विवाद के बाद वे आक्रामक रूप धारण कर लेते हैं. इसके चलते ही कई बार वे अपने साथियों या खुद को ही अपना दुश्मन मानने लगते हैं और हमला कर लेते हैं.'
रायपुर के मनोचिकित्सक डॉ. अशफाक हुसैन कहते हैं- 'इन घटनाओं को रोकने के लिए विभागीय तौर पर भी पहल करनी होगी. अधिकारियों की जवाबदारी है कि वह अपने मातहत कर्मचारियों के साथ बेहतर तालमेल बनाएं और उनकी परेशानी पूछें. इसके बाद परेशानी को दूर करने का भी पूरा प्रयास करें. इससे घटनाओं को रोकने में काफी हद तक सफलता मिल सकती है.'

मीडिया से चर्चा करते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल
सीएम ने कहा होगी जांच, एचएम बोले- नो फ्रस्टेशन
नारायणपुर के आईटीबीपी कैंप में हुई घटना के बाद सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि मामले की जांच करवाई जाएगी. इसके लिए विंदु तय किए जाएंगे. इधर मामले में राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू का कहना है कि घटना की विस्तृत जानकारी मंगाई जा रही है. जब उनसे पूछा गया कि क्या जवान छुट्टी नहीं मिलने या किसी दूसरे कारण से फ्रस्टेशन में रहते हैं तो गृहमंत्री साहू ने कहा- 'जवानों की छुट्टी तय रहती है. उन्हें छुट्टी के लिए रोका नहीं जाता है. इसलिए छुट्टी की वजह से घटना नहीं हुई होगी. फ्रस्टेशन की कोई बात नहीं है. आपसी विवाद हुआ होगा. जांच में कारण सामने आ जाएगा.'
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First published: December 4, 2019, 12:58 PM IST