छत्तीसगढ़ की वो मां, जो अपने 'गे' बेटे के लिए दूल्हा लाने तैयार है

पंकज की मां का कहना है कि वो अपने बेटे की खुशी में ही खुश है उसे लोगों से लेना देना नहीं है. News 18 Crietive.
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के लोगों के परिवार वालों के लिए भिलाई (Bhilai) की एक मां और उनका परिवार एक मिसाल है.
- News18 Chhattisgarh
- Last Updated: December 2, 2019, 3:39 PM IST
रायपुर. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में मिनी इंडिया (Mini India) और एजुकेशन हब के रूप में पहचाने जाने वाले भिलाई (Bhilai) का चर्चित इलाका है बैकुंठ धाम. पवार हाउस रेलवे स्टेशन (Railway Station) से करीब 3 किलोमीटर दूर भगवान शिव की विशालकाय मूर्ति यहां स्थापित है. भिलाई की राजनीति में भी बैकुंठ धाम की अहम भूमिका मानी जाती है, लेकिन हमारी दिलचस्पी न राजनीति में थी और न ही मकसद मंदिर में दर्शन का. हम तो यहां शोभा (बदला नाम) का पता ढूंढ रहे थे.
भिलाई नगर निगम (Bhilai Municipal Corporation) क्षेत्र के इस मोहल्ले में एक परिवार के बारे पूछते ही लोग हमें संदेह और हेय नज़र से देखने लगे. करीब 20 मिनट की मशक्कत के बाद हम मंजिल तक पहुंच गए. करीब 10 हजार आबादी वाले बैकुंठ धाम (Baikuntha Dham) में ही शोभा का घर है. परिवार का बड़ा बेटा पंकज (बदला हुआ नाम) 'गे' है. यही कारण है कि मोहल्ले व रिश्तेदारों में इस परिवार को हेय नजर से देखा जाता है.

मुझे, मेरा घर और बच्चा प्यारासीमेंट की सीट वाले अपने कमरे में बैठीं शोभा न्यूज 18 से कहती हैं- 'मुझे दुनिया से कोई मतलब नहीं है, मुझे सिर्फ मेरे बच्चे से मतलब है. आज यदि मेरा बेटा चला जाएगा तो कोई लाकर देगा क्या. मेरे बच्चे की खुशी में ही मेरी खुशी है, जो भी है मेरे लिए ठीक है. जब से मोहल्ले वालों और रिश्तेदारों को पंकज के बारे में पता चला है, वो हमसे ठीक से बात नहीं करते, लोग हमारे घर आने जाने में भी संकोच करते हैं, लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता. मुझे मेरा घर और बच्चा प्यारा है.'

लोग कहते हैं, देखो हिजड़ा जा रहा हैरुदन भरी आवाज में शोभा कहती हैं- 'मैं उसकी मां हूं, मुझे पता है कि वो हिजड़ा नहीं है. बस उसे लड़कियों की जगह लड़के अच्छे लगते हैं. मुझे नहीं पता, लेकिन ऐसे लोगों को कुछ अलग नाम से जाना जाता है. फिर जब भी वो कहीं जाता है, लोग कहते हैं कि देखो..हिजड़ा जा रहा है. उसे चिढ़ाते हैं, परेशान करते हैं. ये गलत है. इस पर रोक लगाना चाहिए. कई बार उसपर हमला भी हो चुका है.'
हर मोड़ पर बेटे के साथ
शोभा बताती हैं- 'रायपुर में पंकज डांस क्लास जाता था. पिछले साल अक्टूबर (30 अक्टूबर 2018) में गुढ़ियारी में उसपर हमला हुआ था. 6 लड़कों ने उसे पहले खूब पीटा फिर पूरे मोहल्ले में ये कहकर घुमाया कि ऐसे लोग लड़कों को बिगाड़ रहे हैं. वो अस्पताल में भर्ती था, मरते मरते बचा. तब मैं खुद गई और उनके खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. वो अब जेल में हैं. इसी साल रायपुर के तेलीबांधा में इनके समूह के लोगों का कार्यक्रम था, उसमें भी मैं गई, लेकिन वहां दूसरे किसी बच्चे के परिवार वाले नहीं आए थे. उन्हें भी आना चाहिए. बच्चों की बात समझनी चाहिए.'
इतना आसान नहीं था मानना
कक्षा 9वीं तक शिक्षित शोभा कहती हैं- 'पंकज 18-19 साल का था, जब मुझे वो बाकी लड़कों से अलग लगा. मैंने खुलकर उससे बात की. जब उसने बताया तो विश्वास नहीं हुआ. मैंने और उसके पापा ने बहुत समझाने की कोशिश की. हर वो प्रयास किया, जिससे पंकज मान जाए कि वो लड़का है. इसके लिए डॉक्टर से काउंसलिंग भी कराई. उस समय घर में मातम सा महौल था, लेकिन धीरे धीरे हमने उसकी बात को समझा, हालत को जाना. फिर हमने उसे उसी रूप में स्वीकार किया, जैसा वो रहना चाहता है. अब यदि वो किसी से लड़के से शादी कर घर लाएगा तो हम उसके लिए भी तैयार हैं.'

..तो पंकज नौकरी करेगा?
हमने बताया बीते 26 नवंबर को ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल- 2019 राज्यसभा से पास हो गया है. लोकसभा इसे पहले ही मंजूरी मिल चुकी है. शोभा हमें बीच में ही रोकते हुए कहती हैं.. 'तो क्या पंकज को कोई अब परेशान नहीं करेगा. उसे नौकरी मिल जाएगी, वो सम्मान से रह पाएगा. क्योंकि सबको उसके बारे में पता चल गया है, कोई नौकरी नहीं देता. फिर इसके जैसे लोग मजबूरन गलत काम करने लगते हैं.'
कई बच्चे घुट रहे हैं
शोभा से चर्चा के बीच में ही पंकज वहां कुछ दोस्तों के साथ पहुंचता है. उन्हें देखते हुए शोभा कहती हैं- 'मैं भिलाई में ही 30 से ज्यादा बच्चों को जानती हूं, जो पंकज जैसे ही हैं. कुछ मेरे घर भी आते हैं, लेकिन अपने घर में कुछ भी कहने से डरते हैं. उन्हें डर है कि घर वाले स्वीकार नहीं करेंगे. सामाज ताना देगा. इसलिए वे खुलकर अपनी बात नहीं रख पाते. अंदर ही अंदर घूट रहे हैं. पूरे प्रदेश और देश में न जाने कितने होंगे. मुझे नहीं लगता कि कानून बनने के बाद भी परिवार और सामाज उन्हें स्वीकर करेगा, लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता. हम गरीब हैं, कोई हमें खाना नहीं देता, लेकिन बेटे को अपशब्द कहकर ताना जरूर देता है.'
परिवार का सपोर्ट नहीं मिलता
छत्तीसगढ़ की ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता व नेशनल लीडरशिप अवार्ड 2020 से सम्मानित विद्या राजपूत कहती हैं कि सामान्य परिवार से संबंध रखने वाला पंकज संभवत: प्रदेश का पहला ऐसा गे है, जिसे उसके परिवार वालों ने बगैर शर्त उसकी खुशियों के अनुरूप स्वीकार किया है. प्रदेश में ऐसे कई एलजीबीटीक्यू (lesbian, gay, bisexual, transgender, queer) समुदाय से जुड़े लोग है, जो खुलकर सामने तो आए, लेकिन उन्हें परिवार का सपोर्ट नहीं मिला. विद्या बताती हैं कि छत्तीसगढ़ में ही ऐसे लोगों की संख्या 1000 के आस पास है.
ये भी पढ़ें: इस शहर की गली नंबर-7 में 'जिंदगी के दर्द' में तड़प रहा राष्ट्रपति से सम्मानित ये 'चोर'
न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट: फर्जी थी बीजापुर मुठभेड़, मारे गए थे 17 आदिवासी
भिलाई नगर निगम (Bhilai Municipal Corporation) क्षेत्र के इस मोहल्ले में एक परिवार के बारे पूछते ही लोग हमें संदेह और हेय नज़र से देखने लगे. करीब 20 मिनट की मशक्कत के बाद हम मंजिल तक पहुंच गए. करीब 10 हजार आबादी वाले बैकुंठ धाम (Baikuntha Dham) में ही शोभा का घर है. परिवार का बड़ा बेटा पंकज (बदला हुआ नाम) 'गे' है. यही कारण है कि मोहल्ले व रिश्तेदारों में इस परिवार को हेय नजर से देखा जाता है.

भिलाई बैकुंठ धाम मंदिर.
मुझे, मेरा घर और बच्चा प्यारासीमेंट की सीट वाले अपने कमरे में बैठीं शोभा न्यूज 18 से कहती हैं- 'मुझे दुनिया से कोई मतलब नहीं है, मुझे सिर्फ मेरे बच्चे से मतलब है. आज यदि मेरा बेटा चला जाएगा तो कोई लाकर देगा क्या. मेरे बच्चे की खुशी में ही मेरी खुशी है, जो भी है मेरे लिए ठीक है. जब से मोहल्ले वालों और रिश्तेदारों को पंकज के बारे में पता चला है, वो हमसे ठीक से बात नहीं करते, लोग हमारे घर आने जाने में भी संकोच करते हैं, लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता. मुझे मेरा घर और बच्चा प्यारा है.'

रायपुर में 29 सितंबर 2019 को एलजीबीटीक्यू के समर्थन में रैली निकाली गई. फाइल फोटो.
लोग कहते हैं, देखो हिजड़ा जा रहा हैरुदन भरी आवाज में शोभा कहती हैं- 'मैं उसकी मां हूं, मुझे पता है कि वो हिजड़ा नहीं है. बस उसे लड़कियों की जगह लड़के अच्छे लगते हैं. मुझे नहीं पता, लेकिन ऐसे लोगों को कुछ अलग नाम से जाना जाता है. फिर जब भी वो कहीं जाता है, लोग कहते हैं कि देखो..हिजड़ा जा रहा है. उसे चिढ़ाते हैं, परेशान करते हैं. ये गलत है. इस पर रोक लगाना चाहिए. कई बार उसपर हमला भी हो चुका है.'
हर मोड़ पर बेटे के साथ
शोभा बताती हैं- 'रायपुर में पंकज डांस क्लास जाता था. पिछले साल अक्टूबर (30 अक्टूबर 2018) में गुढ़ियारी में उसपर हमला हुआ था. 6 लड़कों ने उसे पहले खूब पीटा फिर पूरे मोहल्ले में ये कहकर घुमाया कि ऐसे लोग लड़कों को बिगाड़ रहे हैं. वो अस्पताल में भर्ती था, मरते मरते बचा. तब मैं खुद गई और उनके खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. वो अब जेल में हैं. इसी साल रायपुर के तेलीबांधा में इनके समूह के लोगों का कार्यक्रम था, उसमें भी मैं गई, लेकिन वहां दूसरे किसी बच्चे के परिवार वाले नहीं आए थे. उन्हें भी आना चाहिए. बच्चों की बात समझनी चाहिए.'
इतना आसान नहीं था मानना
कक्षा 9वीं तक शिक्षित शोभा कहती हैं- 'पंकज 18-19 साल का था, जब मुझे वो बाकी लड़कों से अलग लगा. मैंने खुलकर उससे बात की. जब उसने बताया तो विश्वास नहीं हुआ. मैंने और उसके पापा ने बहुत समझाने की कोशिश की. हर वो प्रयास किया, जिससे पंकज मान जाए कि वो लड़का है. इसके लिए डॉक्टर से काउंसलिंग भी कराई. उस समय घर में मातम सा महौल था, लेकिन धीरे धीरे हमने उसकी बात को समझा, हालत को जाना. फिर हमने उसे उसी रूप में स्वीकार किया, जैसा वो रहना चाहता है. अब यदि वो किसी से लड़के से शादी कर घर लाएगा तो हम उसके लिए भी तैयार हैं.'

रायपुर में ढोल नगाड़े के साथ रैली निकाली गई. फाइल फोटो.
..तो पंकज नौकरी करेगा?
हमने बताया बीते 26 नवंबर को ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल- 2019 राज्यसभा से पास हो गया है. लोकसभा इसे पहले ही मंजूरी मिल चुकी है. शोभा हमें बीच में ही रोकते हुए कहती हैं.. 'तो क्या पंकज को कोई अब परेशान नहीं करेगा. उसे नौकरी मिल जाएगी, वो सम्मान से रह पाएगा. क्योंकि सबको उसके बारे में पता चल गया है, कोई नौकरी नहीं देता. फिर इसके जैसे लोग मजबूरन गलत काम करने लगते हैं.'
कई बच्चे घुट रहे हैं
शोभा से चर्चा के बीच में ही पंकज वहां कुछ दोस्तों के साथ पहुंचता है. उन्हें देखते हुए शोभा कहती हैं- 'मैं भिलाई में ही 30 से ज्यादा बच्चों को जानती हूं, जो पंकज जैसे ही हैं. कुछ मेरे घर भी आते हैं, लेकिन अपने घर में कुछ भी कहने से डरते हैं. उन्हें डर है कि घर वाले स्वीकार नहीं करेंगे. सामाज ताना देगा. इसलिए वे खुलकर अपनी बात नहीं रख पाते. अंदर ही अंदर घूट रहे हैं. पूरे प्रदेश और देश में न जाने कितने होंगे. मुझे नहीं लगता कि कानून बनने के बाद भी परिवार और सामाज उन्हें स्वीकर करेगा, लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता. हम गरीब हैं, कोई हमें खाना नहीं देता, लेकिन बेटे को अपशब्द कहकर ताना जरूर देता है.'
परिवार का सपोर्ट नहीं मिलता
छत्तीसगढ़ की ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता व नेशनल लीडरशिप अवार्ड 2020 से सम्मानित विद्या राजपूत कहती हैं कि सामान्य परिवार से संबंध रखने वाला पंकज संभवत: प्रदेश का पहला ऐसा गे है, जिसे उसके परिवार वालों ने बगैर शर्त उसकी खुशियों के अनुरूप स्वीकार किया है. प्रदेश में ऐसे कई एलजीबीटीक्यू (lesbian, gay, bisexual, transgender, queer) समुदाय से जुड़े लोग है, जो खुलकर सामने तो आए, लेकिन उन्हें परिवार का सपोर्ट नहीं मिला. विद्या बताती हैं कि छत्तीसगढ़ में ही ऐसे लोगों की संख्या 1000 के आस पास है.
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First published: December 2, 2019, 11:41 AM IST