अपने घर के कमरे में बैठे रंगकर्मी दीपक विराट तिवारी. (Photo Neelesh Tripathi)
रेलवे (Railway) पटरी से लगी सकरी गली में स्थित पूनम तिवारी के घर लोगों के आने सिलसिला अब भी जारी है. घर में प्रवेश द्वार के पास ही प्लास्टिक की चेयर पर रखी रंगछत्तीसा संगठन के संस्थापक सूरज की फोटो के सामने जलते दीये में पूनम तेल डालते हुए वहां मौजूद लोगों को अपने जवान बेटे की खूबियां बताते नहीं थक रही हैं.
रंगकर्मी सूरज तिवारी की फोटो के सामने बैठीं पूनम तिवारी व गोपाल तिवारी. (Photo Neelesh Tripathi)
30 साल की कम उम्र में ही बेटे को खो देने का दर्द चेहरे पर महसूस किया जा सकता है. सूरज को याद कर उनकी आखें नम हो जातीं तो कुछ देर में ही उसके साथ बिताए खुशी के लम्हों को याद कर मुस्कुराने लगतीं. वहीं पर सूरज के बड़े भाई गोपाल तिवारी, छोटी बहन दिव्या तिवारी और 8 साल का बेटा साही तिवारी भी बैठा हैं.
फरवरी 2019 में दीपक तिवारी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सम्मानित किया. फाइल फोटो.
मंचों के दबंग किरदार की लड़खड़ाती आवाज
सूरज की फोटो के सामने ही बैठकर बातचीत का सिलसिला चल ही रहा था कि, इसी बीच अस्पष्ट और लड़खड़ाती सी आवाज में कोई पूनम कहता है. पूनम तिवारी उठकर कमरे में चली जाती हैं. वहीं बैठे परिवार के करीबी लिमेश शुक्ला बताते हैं कि ये दीपक जी हैं. वही दीपक विराट तिवारी (Deepak Virat Tiwari) जो देश के प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर (Habib Tanveer) के नाटकों के दबंग किरदार निभाते थे. मशहूर नाटक चरणदास चोर (Charandas Chor) में चोर का जीवंत किरदार निभाकर दीपक जी नाट्य कला के क्षेत्र में विश्व में अपनी अलग पहचान बना ली. चोरी के इस हुनर के लिए दीपक जी को इसी साल फरवरी में देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) ने सम्मानित किया, लेकिन...इतना ही बोलकर वे चुप हो जाते हैं.
लोककलाकार दीपक विराट और पूनम तिवारी. (Photo Neelesh Tripathi)
छोटे से कमरे में गुजर रही लंबी जिंदगी
पूनम तिवारी कमरे बाहर आती हैं और सूरज के बारे में बताने लगती हैं. हम उनसे दीपक जी से बात करने की इच्छा जताते हैं. पूनम कहती हैं चलिए. 8/10 के कमरे में पुरानी टीवी और दवाइयां रखी हैं. यहीं हरे रंग की एक पुरानी टी-शर्ट और लाल रंग का गमछा लपेटे असहाय सी हालत में बैठे हैं नाट्य कला के प्रसिद्ध कलाकार दीपक विराट तिवारी. हमने पूछा कैसी तबीयत है आपकी. इतने में कुछ कहने की कोशिश में उनकी आखों से आंसू बहने लगते हैं. पूनम कहती हैं उनकी आवाज समझ नहीं पाओगे. 2008 से ये लकवाग्रस्त हो गए हैं. अब मस्तिष्क भी कम ही काम करता है.
सूरज तिवारी की अर्थी के सामने लोकगीत गाती उनकी मां पूनम तिवारी. फाइल फोटो.
..तो बस रोते रहे
पूनम कहती हैं... तिवारी कुछ वीरू के बारे में बोलना चाहोगे.. कुछ अस्पष्ट सा कहते हैं. फिर पूनम बताती हैं कि ये बचपन से ही वीरू को मंचों पर प्रस्तुति दिलवाते रहे. इनके बीमार होने के बाद सूरज ने चरणदास चोर में चोर के किरदार की विरासत संभाली. हमारे परिवार का पूरा जिम्मा सूरज ही संभाले था. जब सूरज को अर्थी पर पड़ा देखे तो रोने लगे, कुछ कहने की कोशिश करते रहे, लेकिन कह नहीं पाए. बस अपनी बातें कहने के लिए तड़पते रहे.
थियेटर के लिए नौकरी से निकाले गए
पूनम बताती हैं कि बात करीब 26 साल पुरानी है, जब दीपक जनसंपर्क विभाग में नौकरी करते थे और साथ ही हबीब तनवीर के साथ थियेटर भी करते थे. इससे सरकार नाराज थी और हम दिल्ली में प्रस्तुति के लिए गए थे. उसी दौरान एक पत्र सरकार की ओर से मिला कि आप यदि थियेटर में ही काम करेंगे तो नौकरी से निकाल दिया जाएगा. इन्होंने थियेटर नहीं छोड़ा तो इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. इतने दीपक जी लड़खड़ाती आवाज में विभाष मिश्रा कहते हैं तो पूनम बताती हैं कि अधिकारी विभाष तिवारी थे. अच्छे हैं, अभी आए थे मिलने.
पिता सूरज की फोटो को देखता साही तिवारी. (Photo Neelesh Tripathi)
हम नौकरी मांगते हैं, तो वो डिग्री
पूनम बताती हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से लगातार दीपक सरकार से उनकी नौकरी वापस देने की मांग करते रहे, लेकिन सरकार ने बात नहीं मानी. इनके बीमार होने के बाद सूरज ने नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन सरकार डिग्री मांगने लगती है. हम गरीब लोग अपने बच्चों को अपनी कला तो सीखाए, लेकिन पैसा नहीं था तो डिग्री कहां से दिलाते. अब हमारे परिवार का आर्थिक खर्च उठाने वाला बेटा चला गया. पूनम तिवारी कहती हैं कि इनके इलाज का खर्च ही 5 से 6 हजार रुपये हर महीने है, लेकिन आय का अब कोई स्रोत नहीं है.
..तो पैसा दे दिया
साल 2015 में राज्य सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ अलंकरण से सम्मानित पूनम तिवारी बताती हैं कि दो साल पहले जब इनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई तो हम लोग मुख्यमंत्री रमन सिंह से मिले और नौकरी के लिए आवेदन दिया, लेकिन उन्होंने नौकरी देने की बजाय इनके इलाज के लिए 1 लाख रुपये देने की घोषणा कर दी. पैसा मिल भी गया, लेकिन आय को लेकर अब भी संकट है.
दीपक तिवारी द्वारा मंचों पर प्रस्तुति. फाइल फोटो.
इन मशहूर नाटाकों में दी प्रस्तुति
बता दें कि मूलत: बिलासपुर के रहने वाले दीपक विराट तिवारी ने राजनांदगांव को अपना कर्म क्षेत्र बनाया. साल 1980-90 के दशक में हबीब तनवीर के ग्रुप नया थियेटर का हिस्सा बने. उन्होंने चरणदास चोर, लाला शोहरत राय, मिट्टी की गाड़ी, आगरा बाजार, कामदेव का अपना बसंत ऋतु का सपना, देख रहे हैं नैन, लाहौर नहीं देखा और हिरमा की अमर कहानी जैसे नाटक में अपनी अलग छाप छोड़ी. पिछले 11 सालों से वे जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहे हैं और अपने जवान बेटे को खो देने के दु:ख में तड़प रहे हैं.
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