छत्तीसगढ़ के स्कूलों में अब क्षेत्रीय बोलियों में भी होगी पढ़ाई, तैयार हुई ये योजना

छत्तीसगढ़ के स्कूलों में अब क्षेत्रीय बोली में पढ़ाई होगी. राज्य के कोई भी बोली अब शिक्षा के आड़े नहीं आएगी. (फाइल फोटो)
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के स्कूलों (Schools) में अब क्षेत्रीय बोली (Regional Dialect) में पढ़ाई होगी.
- News18 Chhattisgarh
- Last Updated: September 15, 2019, 12:22 PM IST
रायपुर: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के स्कूलों (Schools) में अब क्षेत्रीय बोली (Regional Dialect) में पढ़ाई होगी. राज्य के कोई भी बोली अब शिक्षा के आड़े नहीं आएगी. क्षेत्रीय बोली के लिए ब्रिज कोर्स तैयार किया गया है, जो भाषा सेतू का काम करेगा. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के वनांचल क्षेत्र में रहने वाले लोग अपने क्षेत्रीय बोली भाषा का अधिक उपयोग करते हैं. कई क्षेत्रों में तो हिन्दी बोल और समझ नहीं पाते इन परिस्थितियों में उस क्षेत्र के बच्चे स्कूल जाने से परहेज करते हैं. ऐसे बच्चों को ही स्कूल तक लाने के लिए ये प्रयास किए जा रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में सादरी (Sadari) भाषा के जानकार अरुण भगत का कहना है कि कई बच्चे स्कूल तक पहुंच तो जाते हैं, लेकिन उनके लिए भाषा बाधा बन जाती है. यदि स्कूलों में स्थानीय भाषाओं व बोलियों में भी पढ़ाई होगी तो ऐसे बच्चों की उपस्थिति स्कूलों में बनी रहेगी. इसके लिए पहले चरण का प्रशिक्षण पूरा हो गया है. इसके बाद अब आगे की तैयारी की जा रही है.
इन बोलियों पर फोकस
नई योजना के तहत स्कूलों में छत्तीसगढ़ी, कमारी बोली, भूंजिया, हलबी, गोढ़ी, सादरी, कुडूक, कोसली, सम्बलपुरी, सरगुजिहा, बैगानी बोली को लेकर भाषा सहायिका बनाई गई है, जो भाषा सेतु का काम करेगा. हलबी भाषा के जानकार नारायण प्रसाद कहते हैं कि बस्तर सरगुजा के साथ ही पेण्ड्रा-गौरेला और जशपुर ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अति पिछड़ी जनजाति के लोग निवास करतें हैं. वनोपज के सहारे जिंदगी चलती है और शहरी आबो हवा से परे रहते हैं, जिसकी वजह से क्षेत्रीय भाषा का अधिक उपयोग करते है. स्कूल जाने पर ऐसे बच्चों को पढ़ाई में दिक्कतें होती है, मगर अब बोली, भाषा आड़े नहीं आएगी.ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति को पहचान देने होगा नेशनल ट्राइबल डांस फेस्टिवल
ये भी पढ़ें: कांग्रेस ने लिया बीजेपी मुक्त बस्तर का संकल्प, BJP ने कहा- सपना देखने में दिक्कत क्या है?
छत्तीसगढ़ में सादरी (Sadari) भाषा के जानकार अरुण भगत का कहना है कि कई बच्चे स्कूल तक पहुंच तो जाते हैं, लेकिन उनके लिए भाषा बाधा बन जाती है. यदि स्कूलों में स्थानीय भाषाओं व बोलियों में भी पढ़ाई होगी तो ऐसे बच्चों की उपस्थिति स्कूलों में बनी रहेगी. इसके लिए पहले चरण का प्रशिक्षण पूरा हो गया है. इसके बाद अब आगे की तैयारी की जा रही है.
इन बोलियों पर फोकस
नई योजना के तहत स्कूलों में छत्तीसगढ़ी, कमारी बोली, भूंजिया, हलबी, गोढ़ी, सादरी, कुडूक, कोसली, सम्बलपुरी, सरगुजिहा, बैगानी बोली को लेकर भाषा सहायिका बनाई गई है, जो भाषा सेतु का काम करेगा. हलबी भाषा के जानकार नारायण प्रसाद कहते हैं कि बस्तर सरगुजा के साथ ही पेण्ड्रा-गौरेला और जशपुर ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अति पिछड़ी जनजाति के लोग निवास करतें हैं. वनोपज के सहारे जिंदगी चलती है और शहरी आबो हवा से परे रहते हैं, जिसकी वजह से क्षेत्रीय भाषा का अधिक उपयोग करते है. स्कूल जाने पर ऐसे बच्चों को पढ़ाई में दिक्कतें होती है, मगर अब बोली, भाषा आड़े नहीं आएगी.ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति को पहचान देने होगा नेशनल ट्राइबल डांस फेस्टिवल
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