मितान के सहारे छत्तीसगढ़ को 2023 तक टीबी मुक्त करने का इरादा, लेकिन चुनौतियां ज्यादा

World Tuberculosis (TB) Day 2021ःटीबी अभी भी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक किलर डिज़ीज़ में से एक है. सांकेतिक फोटो Image Credit: News 18
Explainer: राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा 2023 तक छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) को टीबी (TB) मुक्त करने का अभियान शुरू कर दिया गया है. इसके लिए हर ब्लॉक में 2-2 टीबी मितान नियुक्त किए गए हैं.
- News18 Chhattisgarh
- Last Updated: February 28, 2021, 2:45 PM IST
रायपुर. टीबी (Tubercle Bacillus) जैसी गंभीर बीमारी से छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) को मुक्त करने का लक्ष्य तय कर दिया गया है. राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा 2023 तक प्रदेश को टीबी (TB) मुक्त करने का अभियान शुरू कर दिया गया है. जबकि केन्द्र सरकार ने साल 2025 तक लक्ष्य टीबी मुक्त भारत करने का रखा है. छत्तीसगढ़ को टीबी (क्षय रोग) मुक्त करने के लिए टीबी मितान का सहारा लिया जाएगा. इसके लिए टीबी मितना की नियुक्तियां फरवरी माह में पूरी कर ली गई हैं. टीबी मितानों को ट्रेनिंग भी दे दी गई है. ट्रेनिंग के बाद टीबी मितानों ने जमीनी स्तर पर काम भी शुरू कर दिया है.
टीबी मितानों को लक्ष्य तो दिया गया है, लेकिन उसे पूरा करने में चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा. टीबी मितानों के सामने आने वाली चुनौतियों और राज्य में टीबी के हालात के बारे में जानें, इससे पहले जान लेते हैं कि टीबी मितान कौन हैं और ये किस तरह से काम करेंगे. इसके साथ ही काम के एवज में उन्हें किस तरह भुगतान किया जाएगा.
टीबी वॉरियर्स को ही बनाया मितान
छत्तीसगढ़ के स्टेट टीबी कॉर्डिनेटर आलोक दुबे ने बताया कि युवा टीबी वॉरियर्स को टीबी मितान नियुक्त किया गया है. इनकी नियुक्ति राज्य सरकार के दिशा निर्देश के अनुसार ही की गई है. रायपुर, दुर्ग और बालोद जिले को छोड़कर प्रदेश के हर ब्लॉक में 2-2 टीबी मितान नियुक्त किए गए हैं. इन्हें ट्रेनिंग दे दी गई है. उक्त तीनों जिलों में रिच संस्था के माध्यम से पहले से टीबी चैंपियन काम कर रहे हैं. इसलिए वहां उन्हीं की सेवाएं ली जाएंगी. टीबी मितान अपने अपने क्षेत्र में जाएंगे और टीबी के संभावित मरीजों की पहचान करेंगे. उनकी जांच से इलाज तक की व्यवस्था मितान के माध्यम से की जाएगी. राज्य में कुल 146 ब्लॉक हैं.
इस तरह होगा भुगतान
अफसरों से मिली जानकारी के मुताबिक टीबी मितान जितने भी संभावित टीबी मरीज ढूंढ कर लाएंगे तो तय मानदंडों के अनुसार प्रति मरीज उन्हें 1000 रुपये का भुगतान किया जाएगा. इसके अलावा अगर उन्हें डॉट्स प्रोवाइडर भी बनाया गया तो प्रति मरीज 1000 रुपये और भुगतान किया जाएगा. इसके अलावा कुछ और मानक भी तय किए गए हैं.
राज्य में टीबी मरीजों की संख्या
छत्तीसगढ़ में टीबी के मरीजों के आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 3 साल में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए है. राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में कुल टीबी मरीजों की संख्या 41 हजार 295 थी. साल 2019 में ये बढ़कर 43 हजार 485 हो गई. इसके बाद साल 2020 में ये संख्या कम होकर 30 हजार 972 हुई, लेकिन जानकारों की मानें तो कोविड महामारी के चलते टीबी मरीजों की 9 महीने तक स्क्रीनिंग ही नहीं हो पाई. इसके चलते मरीजों की संख्या कम है. हालांकि साल 2021 में 15 फरवरी तक की स्थिति में 26 हजार 589 लोगों की स्क्रिनिंग कर ली गई हैं. इनमें से कई लोगों की रिपोर्ट आनी बाकि है.
छत्तीसगढ़ को टीबी मुक्त करने की चुनौतियां
मितान का मानदेय और स्क्रिनिंग:- सरकार द्वारा टीबी मितान का कोई मासिक मानदेय तय नहीं किया गया है. वित्तिय भाषा में समझें तो इन्हें कमिशन की नीति पर भुगतान किया जा रहा है. टीबी मितान के नियुक्त कुछ लोगों ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि यदि किसी महीने हमें कोई भी संभावित मरीज नहीं मिला तो हमें कोई आय नहीं होगी. ऐसे में क्षेत्र में काम करने के दौरान लगी लागत का नुकसान होगा और आगे काम करने में मुश्किल होगी. ज्यादा अच्छा होता कि सरकार माहवार भुगतान की व्यवस्था करती. इसके अलावा कोविड महामारी के कारण मरीजों की स्क्रिनिंग प्रभावित हुई है. उसमें तेजी लाने की जरूरत है.
नक्सल प्रभावित इलाके और अंधविश्वास:- छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित आदिवासी इलाके नारायणपुर जिले के ओरक्षा में अपनी सेवाएं दे रहे जयसिंह मांझी कहते हैं कि घोर जंगली इलाकों में पहुंचना ही मुश्किल है. वहां पहुंच मार्ग की समस्या के अलावा नक्सलियों का सामना भी कई बार करना पड़ता है. कई बार दहशत का माहौल होता है. किसी तरह वहां पहुंच गए तो भी बीमार व्यक्ति को इलाज के लिए राजी करवाना भी मुश्किल है. क्योंकि उन इलाकों में ज्यादातर लोग अस्पताल आने से बचते हैं और अंधविश्वास पर ही विश्वास कर इलाज करते हैं.

नारायणपुर में टीबी मुक्त अभियान का हिस्सा बनी कल्याणी निषाद कहती हैं कि लगभग पूरे बस्तर संभाग के ही जंगली इलाकों में लोगों को जागरूक करना बड़ी चुनौती है. एक केस का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि गराजी पंचायत क्षेत्र के 45 वर्षीय टीबी मरीज को जब हमने दवाई दी तो भड़क गया और कहने लगा कि दवाई से मेरा इलाज नहीं होगा बल्कि बैगा के पास जाने से होगा. जब हमने कहा कि बस आप शराब पीना छोड़ दीजिए और ये दवाई नियमित लीजिए तो वो और भड़क गया और हमें तुरंत वहां से चले जाने कहा. इस तरह के लोगों को जागरूक करना मुश्किल होता है. ऐसे प्रकरण आए दिन सामने आते हैं.
ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़: बकरी का पेशाब पीने से ठीक होता है टीबी का मरीज! अंधविश्वास में जा रही जान
दवाइयों की पहुंच और व्यवहार:- दुर्ग जिले की टीबी चैंपियन हिमानी वर्मा का कहना है कि टीबी मुक्त छत्तीसगढ़ करने की दिशा में तेजी से काम तो किया जा रहा है, लेकिन सुदूर इलाकों में भी मरीजों नियमित मॉनिटरिंग और दवाइयां पुहंचान बड़ी चुनौती है. कई बार दूर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मरीजों की पहंचान तो कर ली जाती है, लेकिन उनकी मॉनिटरिंग नहीं हो पाती. इसके चलते वे दवाई का कोर्स पूरा नहीं कर पाते. क्योंकि दवाई की उपलब्धता जिला या ब्लॉक स्तर के अस्पतालों में होती है. यदि जिले हर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तक इसकी उपलब्धता हो जाए तो टीबी मुक्त छत्तीसगढ़ अभियान को सफलता मिलने में आसानी होगी. साथ ही मरीजों से भेदभाव को रोकने के लिए भी अभियान तेज करने की जरूरत है.
ये भी पढ़ें: कोरोना के डर से जांच नहीं करा रहे टीबी के संदिग्ध, कुछ की खतरे में पड़ी जान
हालांकि छत्तीसगढ़ की स्टेट टीबी कॉर्डिनेटर रूकैया बानो का कहना है कि कई प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में टीबी की दवाइयां उपलब्ध करवाई जा रही हैं. साथ ही टीबी मरीजों की नियमित मॉनिटरिंग की व्यवस्था भी की जा रही है. इसके अलावा मरीजों से भेदभाव को रोकने के लिए शहरी और ग्रामीण इलाकों में लगातार जागरुकता शिविर का आयोजन किया जा रहा है.
टीबी के क्षेत्र में ज्यादा काम की जरूरत
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने मीडिया से चर्चा में कहते हैं कि राज्य सरकार टीबी को लेकर चिंतित है. ये सच कि जितना काम टीबी मुक्त राज्य बनाने के लिए होना था, उतना नहीं हो पाया है, लेकिन अब अभियान तेज किया जा रहा है. टीबी मुक्त छत्तीसगढ़ बनाने के लिए नीतिगत फैसले लिए जा रहे हैं. चुनौतियां हैं, लेकिन राज्य को अभियान में कामयाबी जरूर मिलेगी.
टीबी मितानों को लक्ष्य तो दिया गया है, लेकिन उसे पूरा करने में चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा. टीबी मितानों के सामने आने वाली चुनौतियों और राज्य में टीबी के हालात के बारे में जानें, इससे पहले जान लेते हैं कि टीबी मितान कौन हैं और ये किस तरह से काम करेंगे. इसके साथ ही काम के एवज में उन्हें किस तरह भुगतान किया जाएगा.
टीबी वॉरियर्स को ही बनाया मितान
छत्तीसगढ़ के स्टेट टीबी कॉर्डिनेटर आलोक दुबे ने बताया कि युवा टीबी वॉरियर्स को टीबी मितान नियुक्त किया गया है. इनकी नियुक्ति राज्य सरकार के दिशा निर्देश के अनुसार ही की गई है. रायपुर, दुर्ग और बालोद जिले को छोड़कर प्रदेश के हर ब्लॉक में 2-2 टीबी मितान नियुक्त किए गए हैं. इन्हें ट्रेनिंग दे दी गई है. उक्त तीनों जिलों में रिच संस्था के माध्यम से पहले से टीबी चैंपियन काम कर रहे हैं. इसलिए वहां उन्हीं की सेवाएं ली जाएंगी. टीबी मितान अपने अपने क्षेत्र में जाएंगे और टीबी के संभावित मरीजों की पहचान करेंगे. उनकी जांच से इलाज तक की व्यवस्था मितान के माध्यम से की जाएगी. राज्य में कुल 146 ब्लॉक हैं.

टीबी मितानों को ट्रेनिंग के बाद सर्टिफिकेट दिए गए.
इस तरह होगा भुगतान
अफसरों से मिली जानकारी के मुताबिक टीबी मितान जितने भी संभावित टीबी मरीज ढूंढ कर लाएंगे तो तय मानदंडों के अनुसार प्रति मरीज उन्हें 1000 रुपये का भुगतान किया जाएगा. इसके अलावा अगर उन्हें डॉट्स प्रोवाइडर भी बनाया गया तो प्रति मरीज 1000 रुपये और भुगतान किया जाएगा. इसके अलावा कुछ और मानक भी तय किए गए हैं.
राज्य में टीबी मरीजों की संख्या
छत्तीसगढ़ में टीबी के मरीजों के आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 3 साल में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए है. राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में कुल टीबी मरीजों की संख्या 41 हजार 295 थी. साल 2019 में ये बढ़कर 43 हजार 485 हो गई. इसके बाद साल 2020 में ये संख्या कम होकर 30 हजार 972 हुई, लेकिन जानकारों की मानें तो कोविड महामारी के चलते टीबी मरीजों की 9 महीने तक स्क्रीनिंग ही नहीं हो पाई. इसके चलते मरीजों की संख्या कम है. हालांकि साल 2021 में 15 फरवरी तक की स्थिति में 26 हजार 589 लोगों की स्क्रिनिंग कर ली गई हैं. इनमें से कई लोगों की रिपोर्ट आनी बाकि है.
छत्तीसगढ़ को टीबी मुक्त करने की चुनौतियां
मितान का मानदेय और स्क्रिनिंग:- सरकार द्वारा टीबी मितान का कोई मासिक मानदेय तय नहीं किया गया है. वित्तिय भाषा में समझें तो इन्हें कमिशन की नीति पर भुगतान किया जा रहा है. टीबी मितान के नियुक्त कुछ लोगों ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि यदि किसी महीने हमें कोई भी संभावित मरीज नहीं मिला तो हमें कोई आय नहीं होगी. ऐसे में क्षेत्र में काम करने के दौरान लगी लागत का नुकसान होगा और आगे काम करने में मुश्किल होगी. ज्यादा अच्छा होता कि सरकार माहवार भुगतान की व्यवस्था करती. इसके अलावा कोविड महामारी के कारण मरीजों की स्क्रिनिंग प्रभावित हुई है. उसमें तेजी लाने की जरूरत है.
नक्सल प्रभावित इलाके और अंधविश्वास:- छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित आदिवासी इलाके नारायणपुर जिले के ओरक्षा में अपनी सेवाएं दे रहे जयसिंह मांझी कहते हैं कि घोर जंगली इलाकों में पहुंचना ही मुश्किल है. वहां पहुंच मार्ग की समस्या के अलावा नक्सलियों का सामना भी कई बार करना पड़ता है. कई बार दहशत का माहौल होता है. किसी तरह वहां पहुंच गए तो भी बीमार व्यक्ति को इलाज के लिए राजी करवाना भी मुश्किल है. क्योंकि उन इलाकों में ज्यादातर लोग अस्पताल आने से बचते हैं और अंधविश्वास पर ही विश्वास कर इलाज करते हैं.

ग्रामीण इलाकों में लोगों को जागरूक करने पहुंची टीबी चैंपियन.
नारायणपुर में टीबी मुक्त अभियान का हिस्सा बनी कल्याणी निषाद कहती हैं कि लगभग पूरे बस्तर संभाग के ही जंगली इलाकों में लोगों को जागरूक करना बड़ी चुनौती है. एक केस का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि गराजी पंचायत क्षेत्र के 45 वर्षीय टीबी मरीज को जब हमने दवाई दी तो भड़क गया और कहने लगा कि दवाई से मेरा इलाज नहीं होगा बल्कि बैगा के पास जाने से होगा. जब हमने कहा कि बस आप शराब पीना छोड़ दीजिए और ये दवाई नियमित लीजिए तो वो और भड़क गया और हमें तुरंत वहां से चले जाने कहा. इस तरह के लोगों को जागरूक करना मुश्किल होता है. ऐसे प्रकरण आए दिन सामने आते हैं.
ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़: बकरी का पेशाब पीने से ठीक होता है टीबी का मरीज! अंधविश्वास में जा रही जान
दवाइयों की पहुंच और व्यवहार:- दुर्ग जिले की टीबी चैंपियन हिमानी वर्मा का कहना है कि टीबी मुक्त छत्तीसगढ़ करने की दिशा में तेजी से काम तो किया जा रहा है, लेकिन सुदूर इलाकों में भी मरीजों नियमित मॉनिटरिंग और दवाइयां पुहंचान बड़ी चुनौती है. कई बार दूर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मरीजों की पहंचान तो कर ली जाती है, लेकिन उनकी मॉनिटरिंग नहीं हो पाती. इसके चलते वे दवाई का कोर्स पूरा नहीं कर पाते. क्योंकि दवाई की उपलब्धता जिला या ब्लॉक स्तर के अस्पतालों में होती है. यदि जिले हर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तक इसकी उपलब्धता हो जाए तो टीबी मुक्त छत्तीसगढ़ अभियान को सफलता मिलने में आसानी होगी. साथ ही मरीजों से भेदभाव को रोकने के लिए भी अभियान तेज करने की जरूरत है.
ये भी पढ़ें: कोरोना के डर से जांच नहीं करा रहे टीबी के संदिग्ध, कुछ की खतरे में पड़ी जान
हालांकि छत्तीसगढ़ की स्टेट टीबी कॉर्डिनेटर रूकैया बानो का कहना है कि कई प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में टीबी की दवाइयां उपलब्ध करवाई जा रही हैं. साथ ही टीबी मरीजों की नियमित मॉनिटरिंग की व्यवस्था भी की जा रही है. इसके अलावा मरीजों से भेदभाव को रोकने के लिए शहरी और ग्रामीण इलाकों में लगातार जागरुकता शिविर का आयोजन किया जा रहा है.
टीबी के क्षेत्र में ज्यादा काम की जरूरत
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने मीडिया से चर्चा में कहते हैं कि राज्य सरकार टीबी को लेकर चिंतित है. ये सच कि जितना काम टीबी मुक्त राज्य बनाने के लिए होना था, उतना नहीं हो पाया है, लेकिन अब अभियान तेज किया जा रहा है. टीबी मुक्त छत्तीसगढ़ बनाने के लिए नीतिगत फैसले लिए जा रहे हैं. चुनौतियां हैं, लेकिन राज्य को अभियान में कामयाबी जरूर मिलेगी.