रिपोर्ट- निखिल मित्रा
अम्बिकापुर. छत्तीसगढ़ में नौकर, मजदूर, लोहार इन सभी को सेवा के बदले काठा या खांडी के नाप से ही धान दिए जाने की परंपरा थी. बहुत पहले एक दिन काम के लिए मजदूर को एक काठा दिया जाता था. धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ में नौकर और मजदूरों को कार्य के बदले काठा या खांडी देने की परंपरा समाप्त होती चली गई. एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे आज भी काम के बदले खांडी दिया जाता है.
सरगुजा जिले के ग्राम कुसु में लोहार जूठन राम और उसका परिवार रहता है. जिनके मुख्य आय का स्त्रोत लोहारी है. जूठन राम ने बताया कि वो आज भी पारंपरिक तरीके से लोहे के औजार बनाते हैं. आज भी गांव के लोग उन्हें कार्य के बदले खांडी दिया करते हैं. जूठन राम ने बताया कि उन्हें टांगी, हसिया और औजार के बदले साल में एक बार एक घर से एक खांडी धान दिया जाता है. बता दें कि एक खांडी मे उन्हें 15 किलो धान मिलता है.
ऐसे बनाते हैं हथियार
जूठन राम अपनी पत्नी के साथ सुबह से लोहारी के काम मे जुट जाते हैं. टांगी, कुल्हाड़ी, बाउसला, हसियां, गैंती, हल के लोहे सहित तमाम अन्य लोहे को नया आकार देकर अपनी जीविका के लिए श्रम करते हैं. जूठन राम बताते हैं कि लोहे को सबसे पहले छेनी से काटते हैं. भट्ठी में गर्म करते हैं और फिर उसे हथौड़े से पीटकर आकार देते हैं. भट्ठी में निरंतर हवा फूंकने के लिए उनकी पत्नी साइकल के छक्के का उपयोग करती है. जूठन की पत्नी रथिन भी लोहारी का सारा काम जानती हैं.
50 से 100 रुपए प्रति औजार की कीमत
जूठन ने बताया कि वे इन औजारों को लोहे के व्यापारियों को महज 50 से 100 रुपए प्रति औजार की कीमत में बेचते हैं और अपनी जीविका चलाते हैं. जूठन की सिर्फ लोहारी से उनके परिवार के लिए पर्याप्त आय की पूर्ति नहीं होती. इसलिए वे खेती और सब्जियां भी उगाया करते हैं.
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