निखिल मित्रा
अम्बिकापुर. छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित है रामगढ़ की पहाड़ी, जहां पर स्थित सीता बेंगरा गुफा में देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला है. इसका गौरव इसलिए भी अधिक है क्योंकि कालिदास की विख्यात रचना मेघदूतम ने यहीं आकार लिया था. इसलिए ही इस जगह हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है. देश में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहां हर साल बादलों की पूजा की जाती है.
अंबिकापुर-बिलासपुर मार्ग स्थित रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला है. सीता बेंगरा गुफा पत्थरों को गैलरीनुमा काट कर बनाई गई है. यह 44.5 फीट लंबी एवं 15 फीट चौड़ी है. नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों में छेद किया गया है. गुफा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीढ़ियां बनाई गई हैं. रामगढ़ की पहाड़ी की चोटी पर राम जानकी मंदिर जहां राम सीता और लक्ष्मण जी की मूर्तियां है. लोग दूर-दूर से आकर पहाड़ी चढ़ते हैं और मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं.
किदवंती है कि वनवास के वक्त भगवान राम-सीता जी और लक्ष्मण यहां आए थे. उन्होंने सरगुजा के कई स्थानों पर 4 माह व्यतीत किए थे. रामगढ़ पर कई सालों से काम कर रहे अजय चतुर्वेदी बताते हैं कि सीता बेंगरा और जोगीमारा यह अंग्रेजी में लिखे हुए नाम जिनमे त्रुटि है.
दरअसल, सरगुजा बोली में भैंगरा का अर्थ होता है कमरा इसलिए सीता जी जहां निवासरत थी, उसका नाम पड़ा सीताभैंगरा. मगर अंग्रेजी में इसका अनुवाद सीता बेंगरा किया गया. साथ ही जिगिमारा शब्द भी गलत लिया गया है. सरगुजा बोली में माड़ा का अर्थ होता है गुफा या वह स्थान जहां कोई निवास करता है. जोगीमारा में भगवान राम का निवास था.
पुरातत्वेत्ताओं के अनुसार यहां मिले शिलालेखों से पता चलता है कि सीताबेंगरा नामक गुफा ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी सदी की है. देश में इतनी पुरानी और दूसरी नाट्यशाला कहीं नहीं है. यहां उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक करवाए जाते रहे होंगे. गुफा के बाहर दो फीट चौड़ा गड्ढा भी है जो सामने से पूरी गुफा को घेरता है. मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है. इसके बाहर एक पांव का निशान भी है. इस गुफा के बाहर एक सुरंग है. इसे हथफोड़ सुरंग के नाम से जाना जाता है. इसकी लंबाई करीब 500 मीटर है. यहां पहाड़ी में भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की प्राचीन प्रतिमाएं भी हैं.
रामगढ़ की पहाड़ी में चंदन गुफा भी है. यहां से लोग चंदन मिट्टी निकालते हैं और उसका उपयोग धार्मिक कार्यों में किया जाता है. इतिहासविद रामगढ़ की पहाड़ियों को रामायण में वर्णित चित्रकूट मानते हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार महाकवि कालिदास ने जब राजा भोज से नाराज हो उज्जयिनी का परित्याग किया था, तब उन्होंने यहीं शरण ली थी और महाकाव्य मेघदूत की रचना इन्हीं पहाड़ियों पर बैठकर की थी. रामगढ़ की पहाड़ियों को संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध महाकवि कालिदास की सृजन भूमि के रूप में पहचाना जाता है.
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