कभू-कभू पानी ल दांत निपोरत देख के इन्द्रदेव ल मनाथे- ’नांगर बइला बोर दे, पानी दमोर दे.’ खेले के बखत लइका मन ल न पियास जनावय न घाम. जउन लइका जतके जादा खेलही ओहा ओतके टन्नक होही. खेले कूदे ल नइ जानय ओ लइका मन रिंगरिंगहा हो जथे. तभे तो सियान मन कथे खेल ह तन अउ मन के विकास बर बहुते जरुरी हे रे भई. लइका मन भगवान बरोबर होथे. थोर-थोर म झगड़ा लड़ई कर लेथे अउ घड़ी भर म मिल जथे. लइका मन के हिरदे म ऊंच नीच अउ भेदभाव के जहर ह नइ घोराए राहय. कुकरी-कुकरा के खेल ल लइका मन नाहत खानि तरिया नदिया म दफोर-दफोर के मगन हो के खेलथे. ए खेल के माध्यम ले राष्ट्रीय अउ अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता खातिर तैराकी तैयार करे जा सकत हे. खेल के मुहतुर टेपरा ले होथे. जेखर टेपरा ह जोर से सुनाथे ओला कुकरा मान ले जाथे. मान ले टेपरा मारत खानि सबो अंगरी के पानी म बुड़े ले आवाज ह फद्द ले करथे ओहा कुकरी हो जथे. अब कुकरी-कुकरा के खेल म कुकरी ह दाम देही. एक झन कुकरी बांच जय तब तक ले टेपरा मरई चलथे. दाम ले बर कुकरा संगवारी मन कुकरी ल पुछथे-
कुकरा – कहां के पानी?
कुकरी – बादर के
कुकरा – नही
कुकरी – कहां के पानी?
कुकरी – तरिया के
कुकरा – त फेर कती लेबे?
उत्ती लेबे ते बुड़ती, रक्सहूं लेबे ते भण्डार? जुआब कुकरी ह जउन दिशा ल नेमही उही दिशा म कुकरा मन छपराती पानी मारही. पानी के आखिरी छोर ल छू के दाम देही. कुकरी-कुकरा खेल म पार वाले खेल-घलो होथे जेन ल टेपरा मारे के पहिली स्पष्ट कर लेथे. ताकि बाद म होखा-बादी झन होवय. अलहन ले बांचे खातिर सियान मन लइका मन ल पानी म खेले बर बरजथे. तभे तो चिन्हा पहिचान के सियान ल डर्रा के छीदिर-बीदिर भाग जथे. कोनो करार म सपट के जी बचाथे. डंडा पिचरंगा के खेल ल रुप के अलावा भूईया म घलो खेले जाथे. पेड़ वाले डंडा पिचरंगा म सब खिलाड़ी खांधा नही ते डारा म फलास के चघ जथे. दाम देवइया लइका ह पेड़वरा के खाल्हे म लउठी के रखवारी करथे ताकि ओला कोनो झन छू सकय. सब ल डण्डा पानी जरुरी हे. मान ले डण्डा पावत खानी कोनो लइका ह छुवागे ताहन जान डर ओखर दाम दे के पारी आगे. अइसे देखे गे हे कि लइका मन जादा कर के भुईया वाले डंडा पिचरंगा के खेल खेलथे काबर के एमा गिरे के डर कम रहिथे.
भूईया वाले डंडा पिचरंगा म दाम देवइया ल दाम लेवइया मन पुछथे- आती पाती का पाती ? पीपर पाना ते बेसरम, पथरा के गोबर ? दाम देवइया ह अतका मे से कोनो दू ठोक ल चून के बात देही. जेमा राख के दाम लेवइया मन अपन डंडा के रखवारी करथे. जउन अपन आप ल नइ बचा पाही अउ बचावत-बचावत छुआगे ताहन उही ह दाम देही.
भांवरा टूरा-टानका मन के बड़ प्रिय खेल हरे. जउन भांवरा ल बजार म बिसा के लानथे ओला सिंघोलिया भांवरा अउ जउन ल घर म छोइल चांच के बनाथन ओला बनावल भांवरा के नाव ले जानथन. भांवरा चलाए बर नेती के उपयोग करथन. नेती फरिया नइ ते लुगरा के अछरा ल चीर के बनाए जाथे. भांवरा खिलाड़ी मन के मुताबिक सबसे बढ़िया नेती जुन्ना नाड़ा ल माने गे हे. ओइसे तो कतको किसम के भांवरा खेले जाथे फेर गोदा भांवरा जादा लोकप्रिय हे. खेल म नान्हे लइका के दुध भात रहिथे. बद्दा कहिके पानी-पिसाब बर छुट्टी मांगे जा सकत हे. लइकामन बर बांटी अउ माईलोगन बर सांटी के बराबर महत्व हे. बांटी ह दू किसम के होथे (1) कांच के बांटी (2) चीनी बांटी. मान ले खेले के बखत दूनो उपलब्ध नइ राहय त खेले बर जाम के सुखेए फर, आरन गोटारन के बीजा, अन्नकुमारी नही ते नदिया के गोल चिक्कन पखरा, जादा होगे त भर्री के गोंटा के उपयोग करथे. इहां डूब्बूल (गच्चा), सेंटर बांटी, सहरिया बांटी, दीवाल बांटी अउ मारतुल बांटी के खेल ह जादा चलन म हे. भटकउला खेल म दू खिलाड़ी अपन-अपन डाहर पच-पच ठन डूब्बूल खन के खेलथे. पच्चीस गोंटी के खेल होथे. ए खेल ह तब तक चलथे जब तक सामने वाला के पांचो घर ऊपर कब्जा नइ हो जय. हारे खिलाड़ी ह जीते खिलाड़ी ल पान, बिस्कुट नइ ते नड्डा खवाथे.
तीरी पासा म आमने-सामने चार झन खिलाड़ी रहिथे. तीरी पासा म पच्चीस ठन खाना. पूके बर बीच म घर के बेवस्था रहिथे. चारो खिलाड़ी के अलग-अलग रंग के गोटी रहिथेः- टूटे चूरी, गोंटी, सण्डेवा काड़ी, राहेर काड़ी, गुठलु आदि. पासा खेले बर चीचोल (अमली के बीजा) के बीजा ल फोर के दू भाग कर ले जाथे. जेखर सादा भाग ल चीत, फोखला भाग ल पट मान लेथे. चीचोल के जघा राहेर काड़ी, कौड़ी के घलो उपयोग करथे. चार बीजा के पट्ट अउ एक बीजा के चीत काना के गीनती म आथे. कतको घांव काना परे ले गोटी रेंगे के शर्त रहिथे. पांचो के पांचो ल पट्ट ल पांच अउ पांचो के पांचो चीत ल पच्चीस माने जाथे. चार के चीत ल आठ के गिनती मान के गोंटी रेंगथे. सब ले जादा मजा तो तब आथे जब आघु वाले के गोटी मरथे. हर खिलाड़ी प्रयास करथे के जतके जल्दी अपन गोंटी बुड़ जय. हारना मने बेइज्जती के बात हरे. फेर हारे खिलाड़ी ह हिम्मत नइ हारे अउ फेर दरी बड़ सावधानी पूर्वक खेले बर सचेत हो जथे. हारे खिलाड़ी ह सबके गोंटी ल उंखर घर पहुंचाथे. गोटी के पहुंचावत ले जीते खिलाड़ी मन हारे खिलाड़ी ल कुड़काथे.
(दुर्गा प्रसाद पारकर छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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