छत्तीसगढ़ी विशेष.
बछर के बछर चौमास मा अपन गांव घर ला सोरियावत लाखों – लाख मजदूर मन दोरदिर – दोरदिर मोटर गाड़ी मा समावतले भराके आ जाथें. लहुटे के बेरा बइला गाड़ी घलोक अपन रद्दा ला धरे – धरे चले आथे. गाड़ी वाला अपन गाड़ी मा सुते – सुते आ जथे. रद्दा के चिन्हारी माल , मवेसी , चिरई – चुरगुन ला जनम – जनम बर मिले हे. सुख , दुःख ला उन्हूमन जानथें. अतियारी मनखे के अतियाचार ऊमन ला भारी पर जथे. ससन भर अपन डेना के पुरती उड़इया – जुरइया के कोनो देस नइ होवय. जिहां जाना हरहिछा होके जाना हे. एपईत ओपइत अइसे किस्सा कहइया मन अगोरा मा रइथें. सबो किसम के अदमी ए धरती मा हावंय.
गांव के गांव खलक उजर जथे पानी बादर के भरोसा . पानी पागे के बने नइते गे . खेती , भुइंया महतारी अपन कोंख मा कतको रतन ला धरे सकेले हावय . सुकाल दुकाल के सेती साल के साल अगास ला निहारत – निहारत दिन पहाथे . हाड़ा मा काई रचगे . सुने मा घलोक अलकर लागथे के कइसे काई रचगे होही . जब भांठा टिकरा के भाव बियाना चलिस त कतको झन बइहागें . मुहमंगा दाम मा डोली डांगर बेचागे . आज पता चलिस हें कारखाना खुल गेहे . चोरो – बोरो काम बुता मा हमरे लगवार मन झपाए ऊपर झपावत हें . पहली सुनता होए रतेन त ए दिन देखे बर नइ परतिस .काहीं मांगे रहितेन नइते चल कहि देतेन . पइसा ला तें खाए नइ सकस . दार – चंउर बिना जिनगी नइ चलय . बिसा – बिसा के रंग – रंग के खाए पिये के चिभिक लागथे . थइली मा पइसा धरे रहिबे ते थैली भितरी ले चाबथे . राहत भर ले छकल – छकल . एक दिन पइसा सिरा जही त कइसे करबो एला कोनो नइ सोचिन अउ अपने गांव मा अपने पूंजी पसरा सकलावत – सकलावत सिरागे . अइसे होथे बिगाड़ जाने के नहीं . देखा सिखी बने भाव आगे हे कहिके झपावतगिन . कतको झन हुसियारी करके आन गांव मा किसानी करे के पुरती जमीन जहिदाद ले घलोक डारिन , उमन मजा मा हे.
खेती अपन सेती अइसे कहना हा कहना नोहय एमा सच्चाई हे . अपन घर के काम ला आदमी चिभिक लगा के करथे . घरे दुवार ला देख के आदमी के हैसियत ला जान डारथें . सुखे – सुख मा दिन पहाना घलोक एक ठन साध हरय . साध के मारे सधउरी खाबे तभी तो खुशहाली दिखही .
विपत परे मा काम आही अइसे हमर पुरखा सियान मन कांही कुछु सकेलत राहंय. दू – चार पइसा बचाना ऊंखर आदत मा रिहिस हे . भाजी – पाला तको मलोवन लेने वाला . रूंग – रूंग के दू – चार टूसा मांगिच लिही तभे अपन पटकू ला दसा के राखही अउ मोटरियाके रेंगत बनही . अब आजकाल देखले समय बदल गेहे . गांव कोती के चिंता करइया सरकार आगे हे . एकक बात के जानबा करे खातिर मरदमसुमारी चलत हे . तोर सबो दिन के सेती व्यवहार ला चेताए के समे आगे हे . कतको दुख ला ते देखे होबे फेर आजकल थोकिन चेतलगहा रहिबे ते तोला अपने घर हा सुघ्घर लागही . मने मन मा गुनत – गुनत रहिगे अब बने होगे लहुउटी बेरा कतका जियानत रहिसे . ना दाना , ना पानी , ना मोटर ना गाड़ी तभो ले चल रे जीव नाक के सोझ मा चल. नाक के सोझ मा चले के शिक्षा हमर पुरखा मन डाहर ले देहे के शिक्षा हरय . ओरझठिया मन कोनो दिन पेल – ढकेल करिन होही ते दिन ला सोंचव . ओरझना घलोक कोनो बेरा बने करत कइसनो करके अपन माटी के पांव परे के मौका मिलगे अउ का चाही . बने मन ला रमा के रहना हे अतके सोंच डारबे न ततके मा तोर मन ला संतोष हो जही . संतोषी जीव कोनो मेरन दुख नइ पावय . घर परिवार मा रा सुखम – दुखम जेन होही निपटहीच .गरीबी गुजारा करथन केहे के जमाना गय . जनम नइ धरे पाए हे तब ले लेके मरनी – हरनी तक के चिंता करइया ए जमाना मा आगे हें . सरकार के काहे ओला चलाना हे अउ तोला चलना हे .
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