छत्तीसगढ़ म हाथ के शिल्प-कला बहुत प्रसिद्ध हे. ये कला प्राचीनधरोहर आय. मेटल के कलात्मक कारीगरी सब के मन मोह लेथे. कांसा अउ पीतल ल मिलाके फेर म आग म गला के कलात्मक वस्तु बनाय जथे. कोंडागांव, बस्तर रायगढ़ एखर बर परसिद्ध हे. देश-विदेश म एखर चिन्हारी हे. कोंडागांव जिला अउ बस्तर क्षेत्र के लोहार मन परम्परा ले लौह-शिल्प के व्यवसाय करथें. चिंमटा, हथौड़ी, सुंबा, छीनी के मदद ले औजार, हथियार अउ देवी देवता के मूरती बनाथें. सजाय के समान घलो बनातें बनाथें.
बस्तर के अबुझमाडिया, मोरिया, भतरा हल्बा अउ गोंड़ जनजाति समुदाय लकड़ी के कलाकृति बनात आत हें. बस्तर के जगदलपुर क्षेत्र येखर बर परसिद्ध हे. ये मन लकड़ी ले के देबी, देवता, अउ मनुख बनाथें. आदिवासी संस्कृति के कलाकृति घलो बनाय जथे. बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, जगदलपुर, नारायणपुर, कोंडागांव कांकेर, जशपुर म अबुझमाडिया, मोरिया हल्बा एवं गोंड़, भतरा पहाडी कोरवा जनजाति समुदाय के मन माटी के बर्तन के उपयोग करथें. बस्तर अउ सरगुजा संभाग के कलाकार माटी के सुन्दर-सुंदर बरतन बनाय बर परसिद्ध हें. नारायणपुर तहसील के एक गाँव एड़का के कलाकार एमा अधिक कुशल हें.
बसोर(बनसोड)जनजाति के मन बॉस कला म कुशल हें. ये उनकर परम्परा ले आय व्यवसाय आय. नारायणपुर, कोंडागांव, दंतेवाडा, बीजापुर, सुकमा कांकेर, गरियाबंद, राजनंदगांव, बिलासपुर अउ जशपुर के हजारों परिवार डलिया, सुपा, चटई, टुकनी, बाहरी, बास्केट, कंदील, सिंगारदान, लेम्प, के अलावा कलात्मक कुरसी, झूला लेम्प बना के बेचथे. पथरा (पत्थर) शिल्प म कलाकार पथरा के शेर, नंदी, वन-भंइसा अउ धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक चिनहा ले जुड़े मूरती बनाय जथें. बस्तर संभाग के देऊरगाँव अउ बिलासपुर संभाग के बिल्हा के कलात्मक मूरती बर जादा परसिद्ध हे.
आदिवासी महिला मन आदिकाल ले अपन सुंदरता ल बढाय बर अपन देंह म गोदना गोदवांय जेन अमिट राहय. उनकर मानना हे के गोदना गोदवांय ले जादू –टोना के असर नइ होय अउ घर म सुख-समृद्धि आथे. उन अपन देंह, भीतिया अउ कपड़ा म गोदना के चित्रण करथें. आजकल लुगरा, दुपट्टा, सलवार सूट, टेबुल-क्लाथ, स्टाल, अउ रूमाल उपर घलो ये शिल्प देखे जा सकत हे. जशपुर, सरगुजा, बस्तर अउ दुर्ग में एला महिला मन रोजगार के रूप म अपनाय हें. हस्त –शिल्प वाले कपड़ा के मांग दिनों दिन बाढत जात हे.
भितिया-कला म कलाकार पशु,पक्षी,खेत,पेड़ ,पौधा,जंगल आदि के चित्र अंकित करथे. धान के पैरा के कुट्टी अउ पिंवरा माटी आदि ल मिलाके चित्र बनाय जथे. जिनगी के सुंदर- सुंदर भाव-चित्र उकेरे जथे. ये रेखांकन मन म ताजगी अउ उत्साह दिखथे. मन गदगद हो जथें.सरगुजा ,अंबिकापुर ,सोनपुर म लोक-संस्कृति अउ कला उपर आधारित भितिया चित्र देखे बर मिलथे
सीसल कला से बने समान महिला मन के ख़ास पसंद के होगे हे. ये कला ले फ्रूट–ट्रे, हैंगर, बेबी डाल, मैंट, ती-कोस्टर, फूट-रेस्ट, पेपर होल्डर आदि बनाय जथे. जोन अति सुंदर, आकर्षक, अउ मनमोहक होथे. सीसल एक परकार के जंगली पौधा होथे जेखर पाना के रेशा निकाले जथे जेखर रंग सफेद अउ मजबूत होथे.एखर ले जोन डोरी बनथे ओहा समुद्री जहाज ल बांधे बर लंगर के साथ उपयोग म लाय जथे. ये रस्सी कतको दिन होय पानी म बुडे ले सरे नहीं.
बंजारा जनजाति के मन घुमन्तु होथें. ये कौड़ी म शिल्पकारी करथें. येखर मन तीर थोरकुन खेती होथे अउ रोजगार के मउका कमती. ये मन कौड़ी ले सजाय के अउ उपयोगी समान बनाय के बुता करथें. बॉस के टुकनी के उपर कौड़ी ल सजाथें. एखर अलावा झूमर ,गौर सींग अउ नाच-गान म काम अवइया कौड़ी के बुनई करथें. ये परिवार बस्तर के ईरीकपाल गाँव म रहिथें बस्तर म तुमा शिल्प प्रचलित हे. तुमा के उपर गरम राड ल छुआ के सजाय अउ उपयोग म लाय के समान बनाय जथे. पलारी(कोंडागाँव) निवासी जगत देवांगन ह पहिली बखत तुमा लैम्प बनइस.
जगदलपुर के चित्रकोट म तुम्बा उपर शिल्पकारी होथे. छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प विकास बोर्ड,रायपुर समे समे म हस्त–शिल्प के प्रशिक्षण देथे. ओखर ले जरूवतमंद मन ल रोजगार मिलथे. बोर्ड हस्तकला शिल्प के संरक्षण करथे. हस्त कला शिल्प हजारों कलाकार मन बर जीवकोपार्जन के साधन हे. (यह लेखक के निजी विचार हैं)