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छत्तीसगढ़ी म पढ़व: छत्तीसगढ़ म कांदा कुसा ( कंद मूल) के महत्व

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जऊन समे मनखे मन धान कोदो कुटकी ल नइ चिन्हत रिहिन होही ओ समे काला खा के जियत रिहिन होही. कुछू काही ल तो खावत पीयत रिहिन ...अधिक पढ़ें

जइसे-डांग कांदा के नार ह ढेखरा म बने फून्नाए रथे. डांग कांदा के सागो रांध ले अऊ पलपला म उसन के हकन के खा ले. बने सुहाथे. जंगलिहा मन तो सेवारी ल घलो खवाथे जल्दी सम्हलही कही के. केऊ कांदा ह बस्तर कोती जादा मिलथे. केऊ कांदा खाए ले पेट ह खलखल ले साफ हो जथे. सादा दिखते केऊ कांदा ह. बखत परे म सागो रांध ले जी. ढुलेना कांदा तरिया म करिया रंग के मिलथे. ओकर नान-नान कांदा ह छेरी लेड़ी कस दिखते. डोटो कांदा के नार ह बंगला पान के नार कस होथे. डोटो कांदा ल मरार मन जादा लगाथे. तरिया के पैठू म बुचरूवा कांदा ल देख ले. ए कांदा म बूच रहिथे तिही पाए के एला बुचरूवा कांदा केहे जाथे.

बुचरूवा कांदा ल कुकरी कांदा के नाव से घलो जाने जाथे. बुचरूवा ह भुरवा दिखथे. केसरूवा कांदा ह खान खान भाथे. सियान मन कहिथे बुचरूवा अऊ केसरूवा कांदा दूनो भाई बंद हरे. सेम्हर कांदा ललहूं रहिथे जउन अघात मीठ रहिथे. शकर कांदा ल केंवट कांदा के नाव ले जादा जाने जाते. जऊन ह लाल अऊ सादा रंग के होथे. केवट कांदा ह केवट मन कस सबो डाहर मिलथे. केवट कांदा ह मांदा म भारी भोगाथे. घुपकाला के मौसम म नदिया के रेती म केवट कांदा लगाथे फेर पाला के कांदा कस मोठ नइ राहे तभे तो पचर्रा रथे. बाजार हाट ह तो बिना केवट कांदा के शोभा नइ देवय. कांदा भाजी गजब मिठाथे | लालच म जादा खाबे त झार घलो देथे पेट ल.

नांगर कांदा जीमीकांदा कस होथे. लम्हरी घलो होथे. चना कस नांगर कांदा ह जमीन ल उर्वरक देथे. जतेक जादा करिया माटी ओतके जादा मीठ नांगर कांदा. कोचई कांदा तीन किसम के होथे. लाल रंग के कोचई ह बड़े-बड़े तो होथे फेर जीभ ह खजुवाथे. जीमी कांदा ल मही म रांधबे त तो बने नही ते मुंह के बूता बना देथे. अटके बीर्रे म कोचई खुला तारथे. जात कोचई फरहरी के काम आथे. जात कोचई ह भुंजवा म गंज सुहाथे. अइसने किसम के छूइहा कोचई ल साग बनाथे. कोचई के पाना ल बेसन म लपेट के उसने के बाद काट के कटकट से अम्मट मही म रांधबे ते रांधते-रांधत मुंहू ह पंछा जथे. राम कांदा ह बड़े-बड़े होथे. ए कांदा ल कच्चा खाए जाथे. एला उसने के जरूरत नई परय. भंइस ढेठी कांदा ह भइस के ढेठी कस होथे. अइसने किसम के ढेस कांदा अउ रतालु कांदा होथे जऊन ह तरिया म मिलथे. रतालू कांदा ह घलो होथे . अइसने किसम के अऊ कतनो कांदा छत्तीसगढ़ म मिलथे.

(दु्र्गा प्रसाद पारकर छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)

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