.
उहा जाके सुनथे- ‘लइका गंवागे’. कोनो हांसत निकलथे, कइसन दाई-ददा हे जौन ल अपन लइका मन के घला हउस नइ राहय. तब कोनो पूछथे कतका बड़ हे बहिनी वो लइका मन ओ, बने चेतलगहा हे के निच्चट अभी लइकेच हे. अब कोन बतावय ओमन ल, लइका कतका जाड़ हे, का करे के लइक हे, फेर घर ले भाग गे हे लइका मन. ओमन ल संभाल के रखना चाही, ये बात ल मैं ओ दिन जानेंव.
थोकिन के गलती अउ परेशानी कतेक उठाय बर पड़थे. दाई-ददा तो परेशान रहिबे करथे, पारा-परोस वाले मनला घला चिंता खाय डरथे के लइका बपूरा मन कोन कोती गे होही, कहां गे होही, का खाही-पीही, कहां रइही. मिलगे तो बने, अउ नइ मिलिस तब पुलिस थाना म जाके रिपोट-झपोट कराय अउ ऊपर ले पुलिस के फटकार घला सुनव. लइका के सकला जतन, देखभाल नइ कर सकव त पैदा काबर करथो? अब पुलिस वाले मन ल कोन समझांवय कि ओकर काम सिरिफ हमन जौन रिपोट करे हन ओकर ऊपर कार्रवाई करना हे, हमर मन सन तकरार नहीं. उल्टा दिमाग के पुलिस वाले मन संग आज सीधी मुंह बात करना घला ठीक नइहे. भले ओहर कुकुर असन भूक लै फेर ओकर आगू में चुपे रहना, आज के जमाना मं ठीक है, नहीं ते पेर जल्दी ओकर मइन्ता भड़क जाथे.
ओ दिन घर में मोर गांव तीर के मनखे मोला पूछत-पाछत आगे अउ कथे मोर टूरा घर ले भाग गे गा, ये दे मैं फोटो लाय हौा का अखबार में समाचार छापथे कथे तोला, ते छाप देते. मैं पूछेंव- का करत रहिसे तोर लइका हर? ओहर कथे- इही मेटरिक पढ़त रहिसे. कोन जनी कइसे ओकर सनक होगे ते घर ले निकलगे? अब के मेटरिक वाला मन तो मेटागे, बोहागे धारे-धार.
तब मैं कइसे जाने लइका भाग गे कइके, तैं तो गांव मं रहिथस? अरे ओकर एक झन संगवारी हर मोला बताइस ते ये दे खेत गे रहेंव तौन उही पांव बिन खाय दउड़त-दउड़त इहां आय हौं. खोज डरेंव शहर भर कोनों जगह दिखउल नइ दिस. तब गुरुजी हर तोर नाम अउ पता ल बताइस तब तोर करा आय हौं?
मेटरिक पढ़त रहिसे, जवान छोकरा हे तब भला अपन घर ले कइसे भाग गे गा? का ओला खरचा पानी नइ देवस बरोबर तेमा? अरे काला कबे भइया, आज के लइका मन छेदबाहिर होगे हे. घर मं एक अधेला नहीं फेर छहेल्ला मारे बर जरूर होना. मोर घर में भगवान के दे सबो कुछ हे. बरोबर सबो खरचा देथौं, कपड़ा लत्ता अलग से. अरे बेल-बाटम के चलन आगे हे, हमर बाप पुरखा नइ जानय तइसन तो कपड़ा लत्ता पहिनत ओढ़त हे. अउ सब किसम किसम के सिनेमा ल देख के बिगड़त हें. अरे तुंहर शहर के मन ये सिनेमा ल देख के बिगड़ेव ते बिगड़ेव अब गांव-गांव मं सरकार टेलीविजन लगा देहे तेमा हफ्ता मं एक दिन सिनेमा आथे तौन ला देखे बर गांव भर के मनखे सकला जाथे. मोला तो ओ सिनेमा हर फूटे आंखी नइसुहावय. कहां गये भगवान के लीला अउ कहां यहां सिनेमा के चमक-धमक में एक दूसर के हाथ ल धर के, पा-पोटार के नाचथे-गाथे. ये चोट्टा मन ला शरम घला नइ आवय. उही ल देखे बर मरत रथे.
मैं समझ गेंव ओकर बात ला. लइका काबर अउ कइसे भागिस. वइसने एक-दू लइका अउ मोर जानकारी मं ये शहर ले भाग के बम्बई चले गिन अउ आगे घला. एक झनतो बिना टिकट के आगे अउ चल दिस. वोहा आके कोन होटल में नौकरी घला लग गे. एक महीना रहिस, लघियात भागत इहां आगे. दूसर तो अपने मसमोटी में भागे रहिसे. घर में ओकर दाई-ददा मन एक-एक दाना बर मरत हे, अउ बेटा बम्बई ले किंजर के आगे. ओला पुछिन कहां गे रेहैं तब दांत ला निपोरत कथे- हंऽऽहें, मैं बम्बई चल दे रहेंव. पइसा कहां से ओ पाइस अउ कइसे भागिस उही जानय फेर टूरा लोफर होगे हे अतका अवस के जान डारेंव.
हां, त ओ दिन परमिला भौजी बइठे ले आगे, लइका ल पदोवत अउ मोला खेलावत देखिस तब कथे- कइसे बाबू, अब लागिस नहीं जरे असन? मोला तो गजब हांसय- लइका ला संभाले नइ सकय, दून झन हे तेमा ता अतका पान हे अउ आगू आही. अभी आय नइहे फेर हाल मं अवइया जरूर हे. तौन ल कइसे संभालिहौ कहिके?
अब कइसे लइका ल पाय-पोटारे किंजरत रथस. अब ओला का कहितेंव मुंह तो आय, निकल परिस ओ समय भाखा हर तौन ल का करंव. पथरा तरी हाथ चपकाय असन ओकर सवाल के जवाब नइ दे सकेंव. फेर मन ल अतेक फटकारेंव, कहेंव तोला आगू-पीछे के कांही हउस नइ राहय, मनखे गुने न तनखे. चलती ता भला कोन खड़े हे, काकर करा कइसे ढंग के मुंह ला खौलों, ओतक तो नहीं चलथे गाड़ा रावन असन. अउ ये दे अब बात परे में सुने बर कोन ल पड़थे. तैं तो अपन सरुवा बन जाथस अउ मोला फंसा देथस. अब होगे ते होगे अइसन मौका दुबारा कभू नइ आना चाही कइके ओला समझायेंव. अपनी गलती ल ओहर मंजूर कर लिस.
अब ओ दिन जौन लइका गंवाय रहिन हे तौंन मन कहां मिलिस एक ठन स्कूल करा. बताथें कोनो तो ओ लइका मन ल बिस्कुट धरा दे रहिन हे. उही ल खात-खात सुतगे. जब खाय-पीये के बेरा होगे, बारह एक बजगे तब येती दाई-ददा मन ल ओकर सुरता आथे. खोजत-खाजत मं मिलिस तब एक झन डोकरी दाई कथे- हाय बबा रे. ये लइका मन तो नाक मं दम कर देहे. एक घौं अउ अइसने कोन कोतो किंजरे ले निकलगे रहिसे. तब ले-देके मिले रहिसे. अब फेर विही हाल. कोरा मं लइका हवय फेर गोहार ल देख, गांव भर पर जाथे. अब ओकर दाई-ददा मन ल अइसन मौका कभू नइ आवन देना चाही, नइ ते फेर परोसिन मन ओकर अब्बर गारी दिही.
(परमानंद वर्मा छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Articles in Chhattisgarhi, Chhattisgarhi