छत्तीसगढ़ मा किसान बर घर दुवार अउ किसानी बर कोठार के बड़ महत्तम हे. छत्तीसगढ़िया किसान अपन नवा घर मा जाय के पहिली ओला जौन किसम ले चतवारथे सिंगारथे वइसने किसान हा घर मा अन्न लक्ष्मी ला लाने के पहिली कोठार मा लानथे पाछू कोठार मा मिंज कूट के बोरी मा भर के घर लेगथे अउ कोठी मा भरय.
कोठार वो ठउर होथे जौन ला किसान हा अपन सुभीता ला देख के बनाथे. घर तीर मा ठउर रहिथे ता उहिंच मेर कोठार बना लेथे. नइते गाँव के बाहिर लगे परिया भुँइया रहिथे वहू ला कोठार बर बउर लेथे. छत्तीसगढ़ मा कतको किसान मन अपन एकठन खेत के एक कोन्हा मा कोठार बना लेथे फेर खेत मा कोठार बनई हा तुरते ताही होथय. कोठार बनाय के शुरूआत धान लुवाय के पन्द्रा दिन पहिली माने कुँवार महिना ले किसान मन करथें. पहिली भुँइया ला रापा मा छोलथे, खचवा डिपरा ला बरोबर (समतल) करथे. कोठार के सरुप ला गोलाकार रखे जाथय. पाछू दू तीन बखत गोबर मा लीप के सुखाय जाथे एखर से धान ला मिंजे के पाछू एककठन दाना ला सकेले या सुभिता होथे.
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कभू कभू दू किसान समिलहा एक कोठार ला बनाके आगू पीछू बउरथँय. कोठार तियार होय पाछू धान लुवई शुरु करे जाथय. धान के कटाय करपा काचा होय ले एक दू दिन खेत मा छोड़ देते नइते बइला गाड़ी मा, सुर मा नइते मुड़ी मा जोर के कोठार मा लानथे. छत्तीसगढ़ के किसान अन्न मा लक्ष्मी वास देखथे. कहे गे हे कलजुग मा सबके प्राण अन्न माने हे. जब करपा ला कोठार मा लाथे इही बखत कोठार अउ करपा दूनों के पूजा करथें. पाछू खरही ला रचथें. सब खेत के सबो करपा आय के पाछू मिंजाई शुरु होथे. रचाय खरही के करपा ला जब बगराथे तब बेलन दउँरी चलाय के पहिली एक बेर फेर कोठार मा पूजा होथे.
छोटे किसान हफ्ता दस दिन अउ बड़े किसान मन आगर दिन ले मिंजाई करथँय. मिंजाई सिराय के पाछू धान ला घर लेगे के पहिली एक बेरा फेर कोठार मा अन्नलक्ष्मी के पूजा अउ कोठार ला धन्यवाद देय बर पूजा करे जाथय, गुलाल चंदन फूल लगाके लक्ष्मी ला घर लेजाय जाथे. कतको किसान मन इही बेरा पटाखा घलो फोरथे अउ घर मा तसमई,चीला बनाके परसाद बाँटथे.
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छत्तीसगढ़ मा घलो अब किसान पढ़े लिखे होगे. अब आधुनिक अउ मशीनरी किसानी मा कोठार के पूजा बिसरात जावत हे. टेक्टर मा मिंजाई तक तो कोठार पूजा होवत रहिस फेर हार्वेस्टर अऊ थ्रेसर के आय ले ये परंपरा ला छत्तीसगढ़ के किसान घलो अंधविश्वास अउ ढकोसला कहिके छोड़त जावत हे. हार्वेस्टर मा खेत मा लुवाई मिजाई तुरते ताही हो जाथे. थ्रेसर घलो खेत मा गंजाय करपा ला तुरते मिंज देथय. कोठार के जरूरत नइ परय. आजकल छत्तीसगढ़ के गाँव गाँव मा पक्की सड़क, कंक्रीटीकरण होय हे. कतको किसान थ्रेसर ला सड़क तीर मा खड़े करके तिरपाल जठा के मिजाई कर लेथे. अउ सीधा धान ला घर ले जाथय नइते मंडी.
आज यहू सच आवय कि अब छत्तीसगढ़ के कोनों गाँव मा कोठार बनाय लइक ठउर नइ बाचे हावय. जौन ठउर ला कोठार बनावत रहिन ओला खुदे कब्जियाके घर कुरिया बना डारिन. जब कोठार हा घर कुरिया बनगे तब न कोठार रहिगे न कोठार पूजा. एकरे सेती कोठार पूजा प्रथा ले दुरिहावत अउ बिसरावत हे.
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