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ओ समे मोटर सायकल के अवतार घला नइ होय रिहिसे. एक ठन गाड़ी रावन (रस्दा) राहय. कोनो दूसर रस्दा नइ राहय. अब्बड़ मुसकिल होवय एक-दूसर गाड़ी ला ‘क्रास करे बर. खोलदावन रस्दा मं कोन ला मरना हे, जउन ‘क्रास करतिस. सब धपोर दंय, जइसन चलत हे तइसने गाड़ी बइला चलत राहय. साइकिल वाले मन कइसने करके, क्रास कर लेतिन. उटपुटांग रस्दा के मारे ककरो दार नइ गलय. तइंहा जमाना के बात हे. बड़ दुख अउ करलेस उठाय हे ओ समे के मनखे. अब के मन तो बहुत सुखियार होगे हे. सड़क बनगे, डामर रोड मं कइसनो, कोनो कोती ले दउड़ाले, फर्राटा मार के. अब तो बइला गाड़ी के जघा मोटर गाड़ी अउ फटफटी आगे हे. जेला देखबे तेला टेस (शान) मारत दीखथे. महीच हौं, मोर ले कोनो दूसर नइहे कहिथे, तइसन जमाना आगे हे. काला का कहिबे?
हां तब मेला के बात करत रेहेंव. ओ समे बइला गाड़ी में सवारी करके मेला जाय के अलग मजा राहय, वइसने कटाकट भीड़. जेती देखते तेती मनखेच, मनखे. गिरत-हपटत कइसनो करके पहुंचतिन. माइलोगिन अधहरा रचके खाना बनाय के तइयारी मं लग जाय. कोनो आठ-नौ बजे तक कोनो नौ-दस बजे पहुंचय. जेकर जइसे बेवस्था होवय, जेवन करयं तहां ले सोमनाथ मंदिर मं भगवान शिव बाबा के दरशन करे ले निकल जांय. ओ समे के बात हे, अतेक भीड़ राहय तभो कोनो परकार के हो-हल्ला, भगदड़, छेड़छाड़ अउ बदमाशी जइसन घटना जउन आजकल आम बाते होगे, तइसन देखे ले नइ मिलय. सब दाई, माई, बहिनी अउ भाई मन आराम से मंदिर मं जांय, अउ बारी-बारी ले भगवान के दरशन करयं. जेकर मन मं जइसे सरधा होवय, फूल-पान, बेलपत्ती, नरियल, धतूरा चढ़ावय अउ पायलगी करके लहूट जाय. चौबीसों घंटा मेला के राहत ले ये सब चलय.
मंदिर ले लहुटन तहां ले गाड़ी मेर आकर आराम करन, नींद भांजन, अउ होत मुंधेरहा ले संगम इसनान करे ले जान. फेर उहां ले गाड़ी मेर आके कपड़ा बदलन अउ मंदिर मं भगवान के दरशन करे ले जान. जान दे गा, ओ समे के भीड़ ला का कहिबे, कटाकट मनखे, का लइका, का सियान, का जवान, का टूरी-टानकी. सबो के तो मन होथे रे भई, सरधा होथे भगवान के दरशन करे के, कोनो ला बरजे तो नइ जा सकय. कइसनो करके सबो दरशन करयं भगवान के. इही तो मकसद रहिथे मेला-ठेला के. बाद मं खाना-पीना, मौज-मस्ती, उड़ाना तो अलग बात रहिथे. कोनो होटल जाके भजिया, आलूगुंडा, समोसा झड़कत हे तब कोनो जलेबी अउ बालूशाही. गरम-गरम जलेबी ला देख के काकर भला मन नइ ललचाही. एक पिलेट के दू पिलेट घला झड़क दैं. लइकापन के बात के ओ समे के मजा अउ मौज-मस्ती के का कहना.
होटल ले नास्ता-पानी करके निकलेन तब एक जघा धारमिक पुस्तक के पंडाल लगे राहय. ओमा लिखाय राहय ‘परमानंदम् जगद्गुरुÓ के पुस्तक दुकान. नांव ला पढ़ेंव तब चकरित खागेंव के ये कइसन ढंग के पुस्तक दुकान हे भई. ओ तीर मं गेंव अउ पूछेंव- कस महाराज, ये काकर दुकान हे? ओहर कहिथे- मैं कोनो महाराज वगैरह नोहंव, पुस्तक दुकान वाले हौं.
ओला फेर पूछथौं- तब कस जी, ‘परमानंदम् जगद्गुरु कोन हे, का ओकर नांव ले के पुस्तक दुकान चलावत हस? ओहर बताथे- परमानंद नांव के एक झन महाराज रिहिसे. ओकर इंतकाल होगे, तेकरे नांव मं ये दुकान चलथे. ओला केहेंव- का अइसने बात हे, दुकान वाले ला बतायेंव- मोर नांव वइसने हे, सोचेंव- सहिनांव के दुकान हे तब चल जांव, देखे जाय, का का किताब हे.
ओहर पूछथे- तोला कोन-कोन किताब लेना हे, इहां सब धारमिक, आधारित सबो परकार के किताब मिल जाही. गीता, रामायन, भागवत, ऋग्वेद, सामवेद, अथर्वेद अउ उपनिषद मन के घला. पहिला तो मैं ऋग्वेद उठायें अउ पन्ना मन ला पलटे ले धरेंव. ओहर पूछथे- कस जी, तैं संस्कृत पढ़े हस? ओला बताथौं- मोर बाप-पुरा मं कोनो संस्कृत नइ पढ़े हें तब भला मैं कहां ले पढ़ पाहूं. दू-चार क्लास पढ़े हौं. दुकान वाले कहिथे- कस रे अड़हा, जब संस्कृत पढ़े नइ हस तब अतेक बड़े पुस्तक ला तोला उठाय के हिम्मत कइसे होइस?
दुकान वाले ला केहेंव- गलती होगे सेठ, माफी देबे. ओला पूछथौं- ओर रामायन हे का गीता प्रेस गोरखपुर वाले के? ओहर कहिथे- कहां, हे. अतका काहत छोटे गुटका अउ बड़े रामायन ला लाके देखाथे. ओला केहेंव- ये छोटे गुटका रामायन ला दे. मोर ददा अइसने रामायन के रोज पाठ करथे, महूं करे करिहौं. ओहर कहिथे- लेना चार आना के चीज अउ हाथ बड़े-बड़े कोती मारथस. ओकर बात के कोनो जवाब नइ देंव. मोर असन कतको गिराहिक ओकर दुकान मं जुरियाय रिहिन हे.
फेर का मन होथ ते उही मेर फिल्म फेयर के रंगीन हीरो-हिरोइन मन के सुंदर पत्रिका घला रिहिसे, आंखी ललचागे हिरोइन मन के सुंदर-सुंदर मनमोहन रूप ला देखके. दुकान वाले ला पूछके उहू पत्रिका ला खरीद डरेंव. पइसा चुका के गाड़ी मेर आगेन. इहां आके जेला घूमे बर जाना रिहिसे तउंन घूमे बर चल दीन अउ मैं कले-चुप अक्केला एक पेड़ करा जाके जब पत्रिका ला खोल के देखेंव तब हिरोइन मन के रूप अउ ओकर मन के अलग-अलग ‘पोज ला देखक बइहागेंव. मन मं केहेंव- अरे बाप रे, एमन कइसे दीदी, बहिनी, बेटी हे. अइसने भला कोनो अपन अंग के परदशन करही. गांव मं आज तक नइ देखे हन अइसन कोनो बेटी, बहिनी अउ दाई मन के रूप. सोचेंव- जउंहर भइगे, कहां जावत हे हमर देश. एमन तो नरक मं ढकेलत हे ददा.
अतके बेर ओ मेर भउजी कोन डाहर ले टपक गे अउ मोर चोरी ला पकड़ लिस. कहिथे- कइसे, ये का देखत हस, चल तोर भइया ला बतावत हौं. भइया के नांव लिस तहां ले मैं सुकुरदुम होगेंव, डेर्रागेंव. भउजी के पांव तरी गिरगेंव, हाथ जोड़के बिनती करेंव. दाई मोर, होगे गलती, आजे ये पत्रिका ला जला देहौं. झन बताबे भउजी भइया ला, नइते ओहर मोर बारा ला बजा डरही.
ओहर कहिथे- तब चल, कान पकड़ के दस घौं उठक-बइठक कर अइसन गलती कभू नइ करिहौं अउ पत्रिका ला आगी मं जला के राख कर डरिहौं. केहेंव- तैं जइसने कहिबे वइसने करिहौं भउजी तोर कसम हे फेर भइया ला ये बात ला बिलकुल झन बताबे.
हां, नइ बतावौं तोर भइया ला, ये बात ला. चल अब गाड़ी मेर सब गांव लहुटे के रस्दा देखत होही. दूनो देवर-भउजई आवत रेहेन तब रस्दा मं एक जघा अब्बड़ झन मनखे जुरियाय राहय. जाके ओमेर देखथन तब एक मनखे अपन मुड़ी ला जमीन के भीतर गड्ढा कोड़ (खोद) के भीतर कर ले राहय. उही ला सब देखत रिहिन हे तमाशा बरोबर. एक ठन दरी बिछाय रिहिसे तेमा देखइया मन जेकर ले जतका बनत रिहिस, दू, पांच, दस, बीस रुपया चढ़ावत रिहिन हे. पेट जीये के खातिर का करबे जीवन मं किसम-किसम के तमाशा करे ले परथे. इकरे नांव तो जीवन हे, मेला हे.
(परमानंद वर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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