जउन काम बड़े-बड़े तोप-तलवार नइ कर सकय तउन काम ला नानचुन, महीन अउ पातर सूजी करके सब ला अचरज अउ अचम्भा मं डार देथे. वइसने जउन काम बड़े-बड़े पढ़े-लिखे विद्वान, मंतरी-संतरी, डिगरीधारी, हुसियारचंद मन नइ कर सकय, उहां तक ओकर मन के बुद्धि, दिमाग नइ जाय, इहां तक के सोचबे नइ करय, तइसन काम नइ पढ़े-लिखे बस्तर अंचल के आदिवासी मन करके देखावत हे. ए बात ला मैं पढ़ेव, सुनेव अउ जानेव तब माथा ठोंक लेंव, अउ खुसी के मोर ठिकाना नइ रिहिस. मोर सिर झुकगे, नमन करे बिगन नइ रेहे सकेंव.
बात कोनो पहाड़ टोरे कस नोहय, बात अउ सवाल सिरिफ अकल के हे, बुद्धि के हे, भावना के हे. जउन जतके पढ़े-लिखे हें, गुने हे, ओमन ला समझदार समझथन, बड़े-बड़े कुरसी अउ पदवी मं बइठे हे, चांद, आसमान अउ अंतरिक्ष तक पहुंचे के झूठा दिखावा, सम्मान अउ शोहरत बटोरत रहिथे, अइसने मान-सम्मान ले कोसो दूर बस्तर अंचल के आदिवासी कुछ अइसे काम करके दिखा देथे जउन मानवीय सरोकर ले जुड़े होथे. वइसने कस लेख केशकाल बस्तर के एक झन संगवारी वीर बघेल के पढ़े ले मिलिस. पढ़ेंव तब मोर हिरदय गदगद होगे, कहेंव- धन्य होवय बस्तरिया भाई हो, ददा हो तुंहर, जउन अतेक ऊंच विचार अउ सोच रखथौं जेकर बारे मं हमर जइसन मुरुख मन कभू सोचे के उदीम सपना मं घला नइ कर सकय. भगवान तुमन ला सदा अमर रखे, दुधे नहावौ, दुधे खावौ, पीयै अउ अचोवौ.
बात अइसन हे, बस्तर के आदिवासी मन पुरखा मन के सुरता मं हर साल उत्सव याने तिहार , परब मनाथे. अउ जउन मन उत्सव मनाथे तउनो अजुबा ढंग ले. कोनो जादा खरचा पानी के सवाल नइहे पहिली बात तो ये के अइसन परब कोनो संभ्रांत परिवार, समाज मं मनाय के परम्परा नइहे. हां, मरनी-हरनी अउ बरसी (मरे के एक साल बाद) भोज के आयोजन कर लेथें ओकर बाद अपन मरे रिश्तेदार चाहे कोनो होवय, सदा दिन बर भुला जथे, बिसार देथे. फेर बस्तर वाले मन अपन ये पुरखा मन ला जीयत भर सुरता रखथे, ओकर सुरता मं हर साल उत्सव मनाथे तेला ओमन गोंडी भासा मं मरका पंडूम याने आमा तिहार कहिथे.
जउन तरीका ले ओमन मरका पंडूम उत्सव मनाथे ओहर अइसन हे- नदी-नरवा के तीर मं ओकर पुरखा मन आमा के पेड़ लगाय रहिथे. ओकर मरे के बाद उही पूरवज मन के सुरता मं ये तिहार ला ओकर संतान मन मनाथे. ओकर मन के अइसे मानना हे के ओ पूरवज मन आम के पेड़ लगा के अमर होगे. अइसन तिहार देश के अउ कोनो दूसर जघा मनाय के जानकारी नइ मिले हे. बताथे- मरका पंडूम मं कोनो आम के पेड़ तरी सबो गांव वाले मन जुरियाथे. ओ पेड़ के पूजा करथे. एकर बाद पहली बार ओ पेड़ मं फरे आम के फल ला टोरे जाय के विधान हे. पूजा के जघा मं आदिवासी महिला मन आम के फांका बनाथे, ओमा गुड़ मिलाके फेर उही ला परसाद के रूप में सबो झन ला बांटे जाथे.
बस्तर मं अइसन परम्परा हे, जब तक आम, ईमली, महुआ जइसन फल ला जब तक मरका पंडूम तिहार नइ मना लिही तब तक नइ टोरय. आदिवासी मन के अइसे मान्यता हे कि जउन आदिवासी ये नियम के उल्लंघन करही ओकर से ग्राम देवता नाराज हो जही, महामारी फैल जही या फेर गांव के सबो जानवर मर जही, इकरे सेती पूरवज मन ला फर अरपित करे जाथे अउ ग्राम देवता के पूजा करे के बाद पहली बार फल ला टोरे जाथे.
गांव के कोनो नाला करा सकला के, पूरवज मन के सुरता करत आमा के फांकी मन ला नाला मं सरो (विसर्जित) कर देथे. तेकर बाद ओमेर जामुन के लकड़ी गाड़ के ओकर नीचे मं दोना मं भरे धान ला रख देथें. दोना के ऊपर मं दीया जलाके रखथे. अउ अपन-अपन पितर मन के सुरता करत सुख-समृद्धि के कामना करथे.
ये तिहार के दूसर दिन मुख्य मार्ग मं गांव के नवजवान युवक मन नाका लगा के राहगीर मन से भेंटस्वरूप जेकर से जउन बन परथे पइसा मांग लेथे अउ उही मिले पइसा ले तिहार मनाथे. अउ गांव बनाके बांटे जाथे. ये तिहार ला बस्तर के अलग-अलग क्षेत्र में कई समाज अपन सुविधा के अनुसार कोनो भी तिथि मं मनाथे फेर आखिरी दिन अक्षय तृतीया (अक्ती परब) हा आखिरी दिन होथे, ये तिहार ला आमा जोगनी के नाम ले घला जाने जाथे.
(परमानंद वर्मा छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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