सबो जतन करे फेर माटी भुंइया के उपजाऊ ला बनाए रखे के प्रयास नइ करे ते सब अबिरथा हो जही. पयरा भूंसा के गऊंदन ला रोजीना सकेल- सकेल खातू गड्ढा मा पालत राहव. साल के साल अपन पुरती देसी खातू पावत राहव. खातू ला बने बगरा के अवार दुन करइया तोर महिमा अपार हे. तिहीं माटी भुंइया के सेवा करइया आवस.
चलन हे तेन चलत राहय. कोनो दिन तो अइसे नइ राहय तेला तें बिन बुता के सिखा देबे. पालतू पशु घलाव कोढ़िया होगे हे अइसे कहना अउ सुनना कोनो ला बने नइ लागय फेर का करबे. हमरे गलती करत ले अउ अलाली के कारण कोनो ऊपर दोस काबर लगाए. लगे रहिबो त कोढ़ियाई के गोठ हा सिरा जाही. बने बने मा सब्बो डाहर सुख शांति बगरथे.
तोर मन के पीरा ला परोसी कईसे जानही. तिही जानबे अउ तिही ओखर ले उबरबे घलो. सँवारे धरे जिनगी चलत रहना चाही काबरके भटकाव के रद्दा मा कोनो ला मंजिल नइ मिलय. खोजत फिरत राह अउ अइसने करत करत एक दिन तोर आंखी मुंदा जाही. एकरे सेती केहे जाथे के सजा के अउ बजा के देख.
गाड़ी ला साजे मा कतका घंटा समय लागथे. फेर बुता सिरागे अउ उतारे के जिनिस ला उतार के जतन डारे. जतन करे अउ फेर समे आगे गाड़ी सजगे अउ जिनगी घलाव अपन रद्दा मा रेंगे लगिस. कस के धरव अउ कस के रेंगव.
(मीर अली मीर छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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