अनंतनाग। 19 साल का शोएब मजदूरी करके अपने नाना-नानी और छोटे भाई का एक मात्र सहारा है। मज़दूरी करके वो अपने परिवार का पेट पालता है। अनंतनाग के रहने वाले शोएब का परिवार आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गया। शोएब को सरकारी नौकरी और कुछ मुआवज़ा मिलना था, जो उसे आज तक नहीं मिल सकी। अब वो सिटिज़न जर्नलिस्ट बने हैं ये जानने के लिए कि उनका अधिकार आखिर उन्हें कब मिलेगा।
कश्मीर के अंतनाग के रहने वाले शोएब के पिताजी का बचपन में ही देहांत हो गया था। परिवार में शोएब, उनकी मां और मेरा छोटा भाई थे। मां जम्मू कश्मीर पुलिस में कांस्टेबल थी। साल 1998 में उन्हें आंतकवादियों ने मार दिया उस वक्त शोएब की उम्र 8 साल थी।
मां की मौत के बाद मामा ने दोनों भाईयों को कानूनी रुप से गोद ले लिया और पालन पोषण किया। शोएब के मामा भी जम्मू कश्मीर पुलिस में कॉस्टेबल थे। साल 2002 में उनके मामा को भी आंतकियों ने मार डाला।
उनकी मौत के बाद मुआवज़े के तौर पर राज्य सरकार की तरफ से एक लाख रुपये या फिर परिवार के किसी व्यक्ति को नौकरी दी जानी चाहिए थी लेकिन 9 साल बीत जाने के बावजूद ना तो मुआवज़ा मिला और ना ही नौकरी। मामा की मौत के बाद शोएब के नाना किसी तरह से मज़दूरी कर घर चलाते थे लेकिन समय के साथ साथ उनकी आंखों की रोशनी जाती रही और परिवार की सारी जिम्मेदारी शोएब के ऊपर ही आ गई।
10 वीं के बाद शोएब ने पढ़ाई छोड़ दी और मजदूरी करके परिवार का खर्चा चलाने लगा। मुआवज़े के लिए इन्होंने कई बार अधिकारियों के चक्कर काटे। एमएलए, चीफ़ मिनिस्टर और शिक्षा मंत्री तक को कई चिट्ठियां लिखीं लेकिन झूठे भरोसे के सिवा आज तक कुछ नहीं मिला।
सिटिज़न जर्नलिस्ट बनकर शोएब अधिकारियों के पास ये जानने के लिए गए कि आखिर क्यों उन्हें उनके से महरुम किया जा रहा है।undefined
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FIRST PUBLISHED : November 29, 2011, 11:49 IST