ये है देश का सबसे डरावना गांव, जो गया वो अकेला नहीं लौटा!
जस्थान की धरती पर आपको सबकुछ मिलेगा चारों तरफ फैली खूबसूरती, शानदार कल्चर और बेहतरीन खाना,लेकिन यहां पर एक ऐसी भी दुनिया है जो रहस्य से जुड़ी है।
News18India
Updated: July 16, 2016, 11:14 PM IST
नई दिल्ली। राजस्थान की धरती पर आपको सबकुछ मिलेगा चारों तरफ फैली खूबसूरती, शानदार कल्चर और बेहतरीन खाना,लेकिन यहां पर एक ऐसी भी दुनिया है जो रहस्य से जुड़ी है। ऐसी कहानियां जिनका कोई अंत नहीं है, जो सदियों से लोगों के दिलो-दिमाग पर हावी हैं। ऐसी ही एक कहानी है राजस्थान के एक गांव कुलधरा की। एक ऐसा गांव जो रात ही रात में वीरान हो गया और सदियों से लोग आजतक नहीं समझ पाए कि आखिर इस गांव के वीरान होने का राज क्या था। इस राज को जानने के लिए IBN7 की टीम पहुंची कुलधरा गांव।
जानें क्या है इस गांव का इतिहास:
दरअसल कुलधरा की कहानी शुरू हुई थी आज से करीब 200 साल पहले, जब कुलधरा, खंडहर नहीं था बल्कि आसपास के 84 गांव पालीवाल ब्राह्मणों से आबाद हुआ करते थे। लेकिन फिर जैसे कुलधरा को किसी की बुरी नजर लग गई, वो शख्स था रियासत का दीवान सालम सिंह। गांव के एक पुजारी की बेटी पर सालेम सिंह की बुरी नजर पड़ी और वो खूबसूरत लड़की जैसे सालेम सिंह की जिद बन गई। सालेम सिंह ने उस लड़की से शादी करने के लिए गांव के लोगों को चंद दिनों की मोहलत दी।
ये लड़ाई अब गांव की एक कुंवारी लड़की के सम्मान की भी थी और गांव के आत्मसम्मान की भी। गांव की चौपाल पर पालीवाल ब्राह्मणों की बैठक हुई और 5000 से ज्यादा परिवारों ने अपने सम्मान के लिए रियासत छोड़ने का फैसला ले लिया। अगली शाम कुलधरा कुछ यूं वीरान हुआ, कि आज परिंदे भी उस गांव की सरहदों में दाखिल नहीं होते। कहते हैं गांव छोड़ते वक्त उन ब्राह्मणों ने इस जगह को श्राप दिया था।जब से आजतक ये वीरान गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में है जो अक्सर यहां आने वालों को अपनी मौजूदगी का अहसास भी कराती हैं। बदलते वक्त के साथ 82 गांव तो दोबारा बन गए, लेकिन दो गांव तमाम कोशिशों के बाद भी आबाद नहीं हुए एक है कुलधरा और दूसरा खाभा। ये गांव अब भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है जिसे दिन की रोशनी में सैलानियों के लिए रोज खोल दिया जाता है। यहां सैकड़ों पर्यटक आते हैं देश की इस विरासत को करीब से देखते हैं लेकिन अकेले नहीं लौटते, कुछ कहानियां भी उनके साथ जाती हैं।
इस गांव में एक मंदिर है जो आज भी श्राप से मुक्त है। एक बावड़ी भी है जो उस दौर में पीने के पानी का जरिया था। एक खामोश गलियारे में उतरती कुछ सीढ़ियां, कहते हैं शाम ढलने के बाद अक्सर यहां कुछ आवाजें सुनाई देती हैं। लोग मानते हैं कि वो आवाज 18वीं सदी का वो दर्द है, जिनसे पालीवाल ब्राह्मण गुजरे थे। गांव के कुछ मकान हैं, जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है। दिन की रोशनी में सबकुछ इतिहास की किसी कहानी जैसा लगता है, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा के दरवाजे बंद हो जाते हैं और दिखाई होता है रूहानी ताकतों का एक रहस्यमय संसार। लोग कहते हैं, कि रात के वक्त यहां जो भी आया वो हादसे की शिकार हो गया।
कुछ वक्त पहले कुलधरा के रहस्य की पड़ताल करने वाली एक टीम भी ऐसे ही हादसे का शिकार हुई थी शाम के वक्त उनका ड्रोन कैमरा आसमान से गांव की तस्वीरें ले रहा था लेकिन उस बावड़ी के ऊपर आते ही वो कैमरा हवा में गोते लगाता हुआ जमीन पर आ गिरा। जैसे कोई था, जिसे वो कैमरा मंजूर न हो। ये सच है कि कुलधरा से हजारों परिवारों का पलायन हुआ, ये भी सच है कि कुलधरा में आज भी राजस्थानी संस्कृति की झलक मिलती हैं। लेकिन ये भी सच है कि कुलधरा में भूत और आत्माओं की कहानियां, सिर्फ एक वहम हैं।
जानें क्या है इस गांव का इतिहास:
दरअसल कुलधरा की कहानी शुरू हुई थी आज से करीब 200 साल पहले, जब कुलधरा, खंडहर नहीं था बल्कि आसपास के 84 गांव पालीवाल ब्राह्मणों से आबाद हुआ करते थे। लेकिन फिर जैसे कुलधरा को किसी की बुरी नजर लग गई, वो शख्स था रियासत का दीवान सालम सिंह। गांव के एक पुजारी की बेटी पर सालेम सिंह की बुरी नजर पड़ी और वो खूबसूरत लड़की जैसे सालेम सिंह की जिद बन गई। सालेम सिंह ने उस लड़की से शादी करने के लिए गांव के लोगों को चंद दिनों की मोहलत दी।
ये लड़ाई अब गांव की एक कुंवारी लड़की के सम्मान की भी थी और गांव के आत्मसम्मान की भी। गांव की चौपाल पर पालीवाल ब्राह्मणों की बैठक हुई और 5000 से ज्यादा परिवारों ने अपने सम्मान के लिए रियासत छोड़ने का फैसला ले लिया। अगली शाम कुलधरा कुछ यूं वीरान हुआ, कि आज परिंदे भी उस गांव की सरहदों में दाखिल नहीं होते। कहते हैं गांव छोड़ते वक्त उन ब्राह्मणों ने इस जगह को श्राप दिया था।जब से आजतक ये वीरान गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में है जो अक्सर यहां आने वालों को अपनी मौजूदगी का अहसास भी कराती हैं। बदलते वक्त के साथ 82 गांव तो दोबारा बन गए, लेकिन दो गांव तमाम कोशिशों के बाद भी आबाद नहीं हुए एक है कुलधरा और दूसरा खाभा। ये गांव अब भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है जिसे दिन की रोशनी में सैलानियों के लिए रोज खोल दिया जाता है। यहां सैकड़ों पर्यटक आते हैं देश की इस विरासत को करीब से देखते हैं लेकिन अकेले नहीं लौटते, कुछ कहानियां भी उनके साथ जाती हैं।
इस गांव में एक मंदिर है जो आज भी श्राप से मुक्त है। एक बावड़ी भी है जो उस दौर में पीने के पानी का जरिया था। एक खामोश गलियारे में उतरती कुछ सीढ़ियां, कहते हैं शाम ढलने के बाद अक्सर यहां कुछ आवाजें सुनाई देती हैं। लोग मानते हैं कि वो आवाज 18वीं सदी का वो दर्द है, जिनसे पालीवाल ब्राह्मण गुजरे थे। गांव के कुछ मकान हैं, जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है। दिन की रोशनी में सबकुछ इतिहास की किसी कहानी जैसा लगता है, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा के दरवाजे बंद हो जाते हैं और दिखाई होता है रूहानी ताकतों का एक रहस्यमय संसार। लोग कहते हैं, कि रात के वक्त यहां जो भी आया वो हादसे की शिकार हो गया।
कुछ वक्त पहले कुलधरा के रहस्य की पड़ताल करने वाली एक टीम भी ऐसे ही हादसे का शिकार हुई थी शाम के वक्त उनका ड्रोन कैमरा आसमान से गांव की तस्वीरें ले रहा था लेकिन उस बावड़ी के ऊपर आते ही वो कैमरा हवा में गोते लगाता हुआ जमीन पर आ गिरा। जैसे कोई था, जिसे वो कैमरा मंजूर न हो। ये सच है कि कुलधरा से हजारों परिवारों का पलायन हुआ, ये भी सच है कि कुलधरा में आज भी राजस्थानी संस्कृति की झलक मिलती हैं। लेकिन ये भी सच है कि कुलधरा में भूत और आत्माओं की कहानियां, सिर्फ एक वहम हैं।
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