NHRC ने छपरा में बीते दिसंबरमें हुये जहरीली शराब कांड में 77 लोगों की मौत की पुष्टि की है.
सारण. छपरा जहरीली शराबकांड (Chhapra Poisonous Case) को मामले में मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है. हाल ही में जारी हुई इस रिपोर्ट में 77 लोगों की मौत की पुष्टि की गई है. वहीं जिला प्रसासन ने 42 लोगों के मौत की पुष्टि की थी. अब जारी रिपोर्ट में स्थानीय प्रशासन जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से लेकर राज्य सरकार तक कटघरे में खड़े नजर आ रहे है. सारण के सांसद राजीव प्रताप रूडी (MP Rajeev Pratap Rudy) ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि रिपोर्ट में कुल 77 लोगों की मौत का उल्लेख किया गया है जिसमें साफ-साफ लिखा गया है कि मरने वालो में किसान, मजदूर, ड्राइवर, चाय बेचने वाले, फेरीवाले, बेरोजगार थे.
रिपोर्ट में यह साफ बताया गया है कि पीड़ितों में 75 फिसदी पिछड़ी जातियों से थे. रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि जांच करने पहुंची टीम को राज्य सरकार से कोई सहयोग प्राप्त नहीं हुआ. रिपोर्ट में पटना उच्च न्यायालय की टिप्पणी का जिक्र किया गया है जिसमें कोर्ट ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी कानून को लागू करने में सरकार की विफलता बताया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्ण शराबबंदी कानून का राज्य में कार्यान्वयन पूरी तरह से उत्पाद आयुक्त की जिम्मेदारी है, वहीं जिले में यह ज़िम्मेदारी पुलिस अधीक्षक के सहयोग से जिलाधिकारी की है, जिसमें सभी फेल हुए. ये मौतें पूरी तरह से मानवाधिकार का मामला है.
अधिकांश की आर्थिक स्थिति थी कमजोर
रिपोर्ट में यह साफ-साफ लिखा हुआ है कि शराब कांड में मरने वाले किसान, मजदूर, ड्राइवर, चाय बेचने वाले, फेरीवाले आदि कुछ बेरोजगार भी थे. उनमें से ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर थे और अधिकांश मृतक पीड़ित परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे जिनके आश्रितों के रूप में उनकी पत्नियों और 2-3 नाबालिग बच्चे भी थे. उनके रहने की स्थिति ज्यादातर खराब थी. उनमें से कुछ नियमित रूप से शराब का सेवन करते थे, तो कुछ कभी-कभार. परिवार के अधिकांश सदस्य यह जानते थे कि पीड़ित/मृत व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर आसानी से स्थानीय क्षेत्र से शराब प्राप्त करने में सक्षम थे.
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‘लोक सेवकों की विफलता के कारण हुआ हादसा’
आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मामले में समाज के गरीब और कमजोर वर्गों के व्यक्तियों की मृत्यु हुई, जो लोक सेवकों की घोर विफलता के कारण मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन मामला है. गरीब भोले-भाले लोगों को अवैध और नकली शराब के सेवन से रोककर उनके जीवन की रक्षा करें, यह लोक सेवकों की ज़िम्मेदारी. यह इस तथ्य के बावजूद कि राज्य ने शराब की बिक्री पर रोक लगा दी है, लेकिन वह नकली और अवैध शराब की बिक्री को पूरी तरह से रोकने में सक्षम नहीं है, जिससे मानव जीवन का भारी नुकसान हुआ है, जिसके लिए राज्य अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है.
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जांच के लिए पहुंची थी NHRC की टीम
गौरतलब है कि सारण और सीवान जिलों के शराब से मौत मामले में मौके पर जांच करने के लिए राजीव जैन के नेतृत्व में एनएचआरसी की एक टीम ने दौरा किया था जिसमें मनोज यादव, आईपीएस, डीजी (आई), सुनील कुमार मीणा, आईपीएस, डीआईजी, मीनाक्षी शर्मा (पीओ, बृजवीर सिंह, एआर (कानून), इसम सिंह, उप. सपा, राजेंद्र सिंह, उप. सपा, बी.एस. शेखावत, निरीक्षण निरीक्षक, नरेंद्र कुमार ओझा, इंस्पेक्टर, राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, कांस्टेबल, माधव नंदा राउत, कास्ट, दक्षता बाजपेयी जेआरसी, कीर्ति वशिष्ठ जेआरसी शामिल थे. सांसद राजीव प्रताप रूडी ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया था.
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