जॉब कंसल्टेंसी या नौकरी दिलाने वाली एजेंसियां हैदराबाद में कई जगह हैं और इनके ज़रिये बेरोज़गारों को जॉब मिलते भी हैं. लेकिन एक सच यह भी है कि इनमें से कई एजेंसियों के भीतर धोखाधड़ी की कहानियां लिखी जाती हैं. एक अच्छे जॉब की तलाश में विजय ऐसी ही एक कंसल्टेंसी कंपनी में गया तो उसे जो कुछ दिखाया गया वह सब उसे भरोसा दिलाता था कि जल्द ही किसी बड़ी कंपनी में उसे जॉब मिलने वाला है.
हैदराबाद के लकड़ीपुल इलाके में बने एक आॅफिस में पहुंचा विजय. इंस्टेंट जॉब्स नाम के इस आॅफिस का पता किसी के ज़रिये विजय को मिला तो जॉब पाने के लिए अपने दस्तावेज़ों के साथ वह पहुंच गया. थोड़े इंतज़ार के बाद इस आॅफिस के डायरेक्टर अली के साथ विजय की मुलाकात हुई और अली ने उसके दस्तावेज़ देखकर उसे विप्रो कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर का जॉब दिलवाने का वादा किया. विजय से कुछ फॉर्म्स वगैरह भरने को कहा गया.
विजय ने जब तमाम फॉर्मेलिटीज़ पूरी कर लीं तब अली ने उससे कमीशन के बारे में बात की. लंबे समय से एक अच्छा जॉब तलाश रहे विजय को विप्रो जैसी कंपनी में जॉब मिलने की पूरी उम्मीद थी इसलिए चह इस जॉब एजेंसी को कमीशन देने के लिए राज़ी हो गया. 1 लाख रुपये पर बात तय हुई और 70 हज़ार एडवांस जमा कराने के लिए विजय से कहा गया. विजय के पास तत्काल इतनी रकम नहीं थी इसलिए उसे एक बैंक अकाउंट नंबर दिया गया जिसमें वह एक दिन में रकम जमा करवा सकता था.
अली ने कहा कि जैसे ही विजय कमीशन की रकम जमा करवा देगा उसे एक ईमेल दिया जाएगा जहां उसे आवेदन मय दस्तावेज़ के ईमेल करना होगा. विजय ने रकम जमा करवाई और कुछ ही दिनों में फोन पर अली ने विजय से विप्रो कंपनी में हो रहे वॉकइन इंटरव्यू में शामिल होने को कहा तो विजय ने ऐतराज़ जताया. विजय ने कहा कि इंटरव्यू के ज़रिये ही जॉब लेना होता तो वह खुद ही ले लेता. अली ने कहा कि यह इंटरव्यू एक दिखावा होता है, भीतर उसकी सेटिंग है और जॉब पक्का है.
विजय को इंटरव्यू के लिए अली का स्टाफ लेकर गया. इंटरव्यू के बाद विजय लौटा तो वहां एक दो युवकों को अली के स्टाफ ने जॉइनिंग लैटर देते हुए कहा कि एक हफ्ते पहले दिए गए इंटरव्यू के बाद उन्हें जॉब मिल गया है. विजय मन ही मन बहुत राहत महसूस कर रहा था. कुछ दिन बीत गए तो विजय ने अली को फोन लगाया लेकिन अली का नंबर कभी नॉट रीचेबल तो कभी स्विच्ड आॅफ था.
फोन पर बात न होने के कारण विजय एक दिन अली के आॅफिस पहुंचा तो वहां अली नहीं मिला. स्टाफ अलग था और उसने अली के बाहर होने की बात कहकर विजय से बाद में बात करने को कहा.
लाख कोशिशों के बावजूद विजय को कुछ पता नहीं लग रहा था कि उसके जॉब का क्या हुआ. कोई नंबर, कोई ईमेल किसी काम का नहीं रह गया था. विजय को धक्का लगा और शर्म भी आई कि वह इस तरह बेवकूफ बन गया. लेकिन इस तरह बेवकूफ बनने वाला विजय अकेला नहीं था. इसी शहर में दर्जनों बेरोज़गार लड़के-लड़कियां इस फेक जॉब रैकेट के शिकार बन चुके थे.
विजय सहित कई बेरोज़गार इस तरह की शिकायतें पुलिस में दर्ज करवा रहे थे और उधर, अली और उसके साथी मौज उड़ा रहे थे. धोखाधड़ी से कमाए इन पैसों से ये लोग शान की ज़िंदगी जीते थे. ये लोग एक और किस्म की धोखाधड़ी किया करते थे.
धोखाधड़ी का दूसरा तरीका
अली और उसके साथी अमान ने अपने मोबाइल फोन पर फेक सॉफ्टवेयर प्रैंक पेटीएम डाउनलोड किया था. जुबली हिल्स, हिमायत नगर जैसी जगहों पर बने सुपर मार्केट और हैरिटेज आइटमों की दुकानों पर ये लोग शॉपिंग करने जाते थे. पेटीएम के ज़रिए बिल चुकाने की बात कहकर ये प्रैंक पेटीएम के ज़रिये रकम अदा करने का नाटक करते थे. प्रैंक पेटीएम पर बिल्कुल असली पेटीएम की तरह बिल अमाउंट दिखता था और दुकानदार ट्रांजेक्शन आईडी लेकर संतुष्ट हो जाता था. लेकिन जब बाद में इस आईडी की टैली होती थी तो पता चलता था कि रकम तो अकाउंट में आई ही नहीं.
अली इस तरह की शॉपिंग के बाद अमान को 20 से 30 प्रतिशत कमीशन दिया करता था और कभी-कभी अमान अकेले भी अली के लिए शॉपिंग करने जाता था. शॉपिंग क्या बल्कि शॉपिंग के नाम पर सुपर स्टोर्स को चूना लगाता था.
पकड़ा गया शातिर गिरोह
शिकायतों के बाद पुलिस हरकत में थी और पिछले 13 जून को एक विश्वसनीय सूचना के आधार पर पुलिस ने इस गैंग के मोहम्मद अली, मोहम्मद फिरदौस, सैयद सादिक, रेशमा और नरेश कुमार भंडारी को पकड़ लिया. ये लोग हैदराबाद में कई इलाकों में जॉब दिलाने की फर्जी एजेंसी खोलकर करीब 70 बेरोज़गारों के साथ धोखाधड़ी से 50 लाख रुपये तक की ठगी कर चुके थे.
ये गिरोह बेरोज़गारों को विप्रो, आईबीएम, एमेज़ॉन जैसी नामी कंपनियों में न सिर्फ जॉब दिलाने का झांसा बल्कि वहां ले जाकर इंटरव्यू तक करवा देने का धोखा देता था. इस गिरोह ने हैदराबाद में कई जगह फर्ज़ी नामों से दफ्तर खोले थे जहां से बेरोज़गारों के साथ धोखे को अंजाम दिया जाता था. वहीं प्रैंक पेटीएम के ज़रिये इन्होंने करीब 2 लाख रुपये की शॉपिंग अलग अलग दुकानों से की थी जिसका भुगतान नहीं किया गया.
क्या है प्रैंक पेटीएम?
यह पेटीएम एप का जाली वर्जन है जो मज़ाक के लिए बनाया गया है. जब आप इसे खोलते हैं तो इसमें चेतावनी का उल्लेख होता है कि यह एप दोस्तों के साथ मज़ाक करने के मकसद से बनाया गया है. अगर कोई इसका गलत इस्तेमाल करता है तो नुकसान के लिए वही ज़िम्मेदार होगा. आप इसका सही इस्तेमाल करें. इस एप के फीचर बिल्कुल पेटीएम की तरह हैं जिससे एक नज़र में ऐसा धोखा हो जाता है कि ट्रांजेक्शन ठीक से हो गया है लेकिन यह फेक होता है. हैदराबाद टास्क फोर्स के डीसीपी राधाकिशन राव ने इस गिरोह की पूरी करतूतों का खुलासा किया.
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Tags: Cyber issues, Hyderabad, Job business and earning, Paytm
FIRST PUBLISHED : June 19, 2018, 20:32 IST