30 साल की आशा और 28 साल की भावना में बहुत सी बातें कॉमन थीं. दोनों शादीशुदा थीं, दोनों के दो-दो बच्चे थे और दोनों एक ही काम के दौरान मिली थीं. दोनों ही सामाजिक बंधनों के कारण अपनी मनोभावनाओं को बरसों से दबाए हुए थीं. दोनों को एक-दूसरे का साथ अच्छा लगा और दोनों ने एक-दूसरे के साथ खुलकर अपनी यौन इच्छाओं के बारे में बात की तो एक प्रेम संबंध बनता चला गया. आॅफिस में दोनों इस तरह रहा करती थीं कि किसी को शक न हो.
अहमदाबाद के पास के बावला गांव में रहने वाली आशा की शादी सिक्योरिटि गार्ड की नौकरी करने वाले हिमत से हुई थी और आशा की दो बेटियां थीं. बड़ी 8 साल की और छोटी 3 साल की. इधर, भावना भी उसी गांव के पास अपने परिवार के साथ रहा करती थी. 11 और 13 साल की उम्र के उसके भी दो बच्चे थे. आशा और भावना की मुलाकात बावला के पास राजोडा गांव में काम के दौरान हुई थी और दोनों के बीच प्रेम का रिश्ता पनप चुका था.
आॅफिस और कामकाज के बाद दोनों एक साथ वक्त बिताने लगी थीं. कभी आशा के घर भावना आती तो कभी भावना के घर आशा. इस संबंध के भविष्य को लेकर जब भी दोनों के बीच बात होती तो दोनों चिंता में डूबकर दुखी भी होतीं कि न जाने क्या होगा. दोनों एक-दूसरे के साथ की खुशी को भरपूर जीने लगी थीं. इसी बीच वह हुआ जो एक न एक दिन होना ही था.
भावना के पति ने भावना और आशा को अंतरंग पलों में देख लिया तो वह शर्म और गुस्से से भर गया. उसे यही महसूस हुआ कि अब उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा खत्म हो जाएगी और दुनिया का डर उसे सताने लगा. दूसरी तरफ भावना के पति को यह दुख भी हुआ कि उसकी पत्नी किसी और के साथ प्रेम करती है और इमोशनली उसके बजाय किसी और से जुड़ी हुई है.
इन दुखों, शर्मिंदगी और डर के चलते भावना के पति ने एक दिन अचानक खुदकुशी कर ली. इस घटना से आशा और भावना की ज़िंदगी में मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा. खुदकुशी के कारणों का खुलासा होता चला गया और दोनों के परिवारों और करीबी रिश्तेदारों को खबर हो गई कि आशा और भावना के बीच क्या रिश्ता है. फिर दोनों पर पाबंदियां लगाए जाने का सिलसिला शुरू हो गया और दोनों को दुनिया भर के ताने सुनने को मिलते रहे.
दोनों ने गाड़ी पकड़ी और अहमदाबाद चली आईं. रात होने तक गांव में दोनों के परिवार उन दोनों की तलाश शुरू कर चुके थे लेकिन वही सामाजिक बदनामी के डर से खुलकर पुलिस में खबर देने से हिचकिचा रहे थे. इधर, दो रातों तक आशा और भावना बड़े शहर में आसरा तलाशती रहीं. कहीं ठौर ठिकाना उन्हें ठीक से मिला नहीं. साथ में, आशा की छोटी बच्ची की भूख और देखभाल की ज़िम्मेदारी भी.
10 जून की रात तक दोनों अपने इस फैसले से परेशान हो चुकी थीं और उन्हें यह बात भी समझ में आ गई थी कि घर छोड़ना हल नहीं है. दोनों कहीं भी रहेंगी, यह समाज फिर आड़े आएगा ही. दोनों को यह आशंका भी थी कि दोनों के परिवार वाले उन्हें तलाशते हुए आज नहीं तो कल उन तक पहुंच ही जाएंगे. इन तमाम बातों के बाद दोनों ने एक-दूसरे को प्यार से मुस्कुराकर देखा.
तीन साल की बच्ची को लेकर 10 जून की ही रात आशा और भावना साबरमती रिवरफ्रंट पर गईं. वहां दोनों ने पाव भाजी ली और बच्ची को खिलाते हुए खुद भी नाश्ता किया. फिर दोनों ने नाश्ते की वो पेपर प्लेट फेंकी नहीं बल्कि पर्स से लिपस्टिक निकाली और उस प्लेट के पीछे लिखा - 'कब मिलेंगे, कब मिलेंगे? अगले जनम में हम मिल सकेंगे? दुनिया ने हमें एक न होने दिया.' इस लाइन के नीचे अपने नाम आशा और भावना भी लिखे.
पेपर प्लेट पर लिपस्टिक से लिखा सुसाइड नोट.
इसके बाद साबरमती नदी के किनारे बनी दीवार पर लिपस्टिक से ही लिखा - 'हम दोनों एक होने के लिए दुनिया से दूर हो रहे हैं. दुनिया ने हमें साथ जीने नहीं दिया. हमारे साथ कोई पुरुष नहीं था.'
नदी के पास बनी दीवार पर लिखा सुसाइड नोट.
आंखों में आंसू लिये आशा और भावना ने एक-दूसरे को ज़ोर से गले लगाया. दुपट्टे से दोनों ने एक—दूसरे को साथ बांध लिया. फिर आशा ने अपनी बच्ची को नज़र भर देखकर उसका माथा चूमा और मन ही मन उससे माफी मांगी. भावना ने भी उस बच्ची को चूमा और दोनों ने किनारे खड़े होकर बच्ची को नदी में फेंक दिया. फिर दोनों ने एक-दूसरे का हाथ कसकर पकड़ा और अगले ही पल खुद भी नदी में छलांग लगा दी. और एक प्रेम कहानी खत्म हो गई.
समलैंगिकता और भारतीय समाज और धारा 377
“संयुक्त राष्ट्र के 90 से अधिक देश समलैंगिकता के समर्थन में खड़े हैं... ब्रिटेन ही नहीं बेल्जियम, नीदरलैंड्स, कनाडा, स्पेन, न्यूजीलैंड, डेनमार्क, अर्जेंटीना, स्वीडेन, पुर्तगाल आदि देशों में समलैंगिकता को मान्यता प्राप्त है... वात्सायन रचित ग्रंथ कामसूत्र में तो इस विषय पर खुलकर चर्चा है... विधि आयोग की 172वीं रिपोर्ट में आईपीसी की धारा 377 को हटाने की बात की गई थी...” धारा 377 का पूरा ब्योरा और इस पर जारी बहस की पूरी पड़ताल नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ें :
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सामाजिक लांछनों के चलते दो महिलाओं का इस तरह जान दे देना वाकई दुखद है. हमारे समाज में हमें सिर्फ यही सिखाया जाता है कि पुरुष और स्त्री दो ही तरह के लोग और संबंध होते हैं इसलिए हम उन लोगों का मज़ाक उड़ाते हैं जो अलग हैं यानी लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर यानी किन्नर हैं. हमारे कानून निर्माता भी इन लोगों को लेकर संवेदनशील नहीं हैं. अहमदाबाद के इस हालिया मामले में हम समझ सकते हैं कि एक छोटे से कस्बे में रहने वाली इन दो महिलाओं ने अपने फैसलों से पहले क्या कुछ महसूस किया होगा. यह समय है जब आईपीसी की धारा 377 को खत्म किया जाना चाहिए.
न्यूज़ 18 के गुजरात ब्यूरो के साथ खास बातचीत में समाजशास्त्री और गुजरात यूनिवर्सिटि के प्रोफेसर गौरांग जानी ने उपरोक्त बात कही.
और मुंबई की वह प्रेमकथा
समाज द्वारा नकारे जाने के बाद आशा और भावना ने खुदकुशी करते हुए अपनी प्रेम कहानी को खत्म किया, इस घटना से दो साल पहले मुंबई की एक प्रेमकथा की याद ताज़ा होती है. मुंबई की दो नौजवान लड़कियों रुजुक्ता और रोशनी ने भी परिवार और समाज के विरोध के बाद अपने प्रेम संबंध को खुदकुशी के ज़रिये ही खत्म किया था. रुजुक्ता ने ज़हर पी लिया था और रोशनी अपने घर में फांसी के फंदे पर झूल गई थी. ऐसी और भी कहानियां समय समय पर सामने आती रही हैं.
Love Story : एक ने ज़हर पी लिया तो एक झूल गई फांसी पर
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