सांकेतिक चित्र
इसी साल मार्च महीने के आखिर में एक अखबार में विज्ञापन छपा कि एक एनआरआई को ड्राइवर और महिला पर्सनल सेक्रेट्री की ज़रूरत है. यह विज्ञापन देखकर गुजरात के अनिल ने दिए गए फोन नंबर पर बात की तो जोसेफ ने फोन उठाया और अनिल से शैक्षणिक डॉक्यूमेंट, ईमेल और अन्य ज़रूरी दस्तावेज़ भेजने को कहा. नौकरी पाने के लिए अनिल ने कहे अनुसार ये दस्तावेज़ भेजे तो जोसेफ ने उसे इंटरव्यू के लिए बीकानेर बुलाया.
इसी साल अप्रेल की शुरुआत में अनिल बीकानेर पहुंचा तो रेलवे स्टेशन पर जोसेफ मौजूद था. महंगे कपड़े, घड़ी और गॉगल पहने हुए जोसेफ ने अनिल को रिसीव किया और स्टेशन के बाहर आते ही रौबदार आवाज़ में अपने ड्राइवर से कार लाने के लिए कहा. जोसेफ कार से अनिल को होटल मरुधरा लेकर गया और यहां कुछ देर में इंटरव्यू होने की बात कही. इंटरव्यू से पहले जोसेफ ने अनिल के लिए नाश्ता मंगवाया और दूसरे कैंडिडेट्स से मिलने चला गया.
उसी होटल में जोसेफ तीन और कैंडिडेट्स से मिला और उन्हें भी कुछ देर में इंटरव्यू होने की बात कहकर नाश्ता करवाया. नाश्ते करने के बाद अनिल सहित चारों कैंडिडेट्स बेहोश हो चुके थे. घंटों बाद इन सभी को अस्पताल में होश आया तो सभी हैरान रह गए. अनिल के सारे दस्तावेज़, कैश और एटीएम कार्ड गायब था. इसी तरह बाकी सबके भी मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड, कैश और ज्वैलरी आदि सब कुछ गायब था.
कुछ ही देर में अनिल और बाकी तीनों को पता चला कि उनके बैंक खातों से अच्छी खासी रकम निकल चुकी है. सारे कैंडिडेट्स के सामान के साथ ही जोसेफ भी गायब था. बीकानेर के होटल में इन चारों कैंडिडेट्स के सामान के साथ ही एटीएम कार्डों के नये पिन जनरेट करने के बाद जोसेफ साढ़े तीन लाख रुपये तक निकाल चुका था. इस लूट के बाद जोसेफ नाल एयरपोर्ट पहुंचा और रास्ते में नाल के आसपास ही अपना मोबाइल फोन फेंक दिया.
एयरपोर्ट से जोसेफ ने फ्लाइट पकड़ी और दिल्ली चला गया. इधर, अनिल और लूट के बाकी तीनों शिकार परेशान हो रहे थे और पुलिस की मदद मांग रहे थे और उधर, जोसेफ दिल्ली में बैठा मौज उड़ा रहा था. अपनी अगली योजना की तैयारी कर रहा था. अस्ल में, जोसेफ ने पहली बार ऐसी लूट नहीं की थी बल्कि यही उसका पेशा था. 12 राज्यों में इस तरह की लूट को वह अंजाम दे चुका था और कई राज्यों की पुलिस उसे तलाश कर रही थी.
जोसेफ पकड़ा इसलिए नहीं जा रहा था क्योंकि वह अलग-अलग पहचान से लोगों से मिलता था. एक मोबाइल फोन को ज़्यादा समय इस्तेमाल नहीं करता था और लूट के फौरन बाद अपना ठिकाना बदल लेता था. साथ ही, तकनीक में उसे महारत हासिल थी इसलिए उसने अपनी पहचान के कई जाली दस्तावेज़ तैयार कर रखे थे.
अपने कारनामों को लगातार अंजाम देने वाले जोसेफ इसी महीने यानी जून में हिमाचल प्रदेश में था. उना शहर के एक महंगे होटल में ठहरा हुआ था. यहां जोसेफ अखबारों में वैसा ही विज्ञापन दे चुका था जैसा उसने तीन महीने पहले बीकानेर के समय दिया था. बेरोज़गारों के साथ फोन पर बातचीत कर उनके इंटरव्यू तय कर रहा था. इंटरव्यू के नाम पर जोसेफ फिर उसी लूट को अंजाम देने की फिराक में था लेकिन उसे तलाशती हुई राजस्थान पुलिस उना पहुंच गई और पिछले हफ्ते जोसेफ को गिरफ्तार कर लिया.
महंगे शौक पूरे करने के लिए बना शातिर लुटेरा
गिरफ्तारी के बाद जोसेफ का असली नाम राजेंद्र सिंह बताया गया है हालांकि यह शातिर लुटेरा जॉन, थॉमस, मयंक, दिनेश, हिमांशु, कुमार जैसे कई नामों से पहचाना जाता है. खुद को एनआरआई बताकर बेरोज़गारों को लूटने वाला यह लुटेरा अपने महंगे शौक और शाही ज़िंदगी जीने की हसरत में लुटेरा बन गया.
READ: पुलिस ने शातिर ठग को दबोचा
विज्ञापन देकर अनजान जगह बुलाना, नाश्ते के बहाने बेहोश कर लूट को अंजाम देना और मोबाइल फोन के ज़रिये एटीएम पिन को बदलकर रकम निकाल लेना इसकी तरकीबें रहीं. पिछले लंबे समय से 12 राज्यों में यह लुटेरा लूट की कई वारदातों को अंजाम दे चुका था.
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