निजात पाना चाहता था माशूका की डिमांड्स से परेशान हो चुका आशिक, तो...

सांकेतिक चित्र
गुजरात के राजकोट ज़िले में स्कूलों और एक कॉलेज के मालिक को गिरफ्तार किया गया है जिस पर आरोप है कि उसने अपने एक कर्मचारी रह चुके शख्स की मदद से अपनी प्रेमिका को मौत के घाट उतारने के बाद लाश को ठिकाने लगाया.
- News18Hindi
- Last Updated: September 11, 2018, 7:03 PM IST
न तो इश्क करने की कोई उम्र होती है और न ही कत्ल करने की. गुजरात के 55 साल के शांतिलाल का अफेयर 50 साल की हिना से पिछले चार सालों से चल रहा था लेकिन रिश्ते में दरारें पैदा होने लगीं तो शांतिलाल ने अपनी परेशानी को दूर करने के लिए जुर्म का रास्ता इख्तियार किया. जुर्म के लिए शांतिलाल खुद को ताकतवर महसूस नहीं कर रहा था इसलिए उसने अपने कर्मचारी की मदद ली जो कत्ल के एक मामले में जेल काट चुका था.
कुछ वक्त पहले की बात है जब दो स्कूलों और एक कॉलेज के मालिक शांतिलाल के एक स्कूल में रिनोवेशन का काम चल रहा था. राजकोट स्थित मावड़ी के मायानीनगर इलाके में इस स्कूल के भवन में प्लास्टर आॅफ पेरिस का काम होना था और इसके लिए एक कामगार विजय किसी ने भिजवाया था. इस कामगार से शांतिलाल की एक बार इस तरह बातचीत हुई थी :
शांतिलाल : तुम उत्तर प्रदेश के हो?
विजय : जी हुजूर.शांतिलाल : इससे पहले कहां काम कर रहे थे?
विजय : जी हुजूर, आप भरोसा रखिए, मैं ये काम कर दूंगा और कुछ गड़बड़ नहीं होगी.
शांतिलाल : वो तो ठीक है लेकिन पहले कहां थे?
विजय : हुजूर, जेल में था. कत्ल का एक केस था जिसमें जेल काट रहा था. अभी जमानत पर बाहर हूं हुजूर, काम की बहुत जरूरत है.
विजय की ये बातें सुनकर शांतिलाल को खटका ज़रूर लगा था लेकिन उसे काम जारी रखने को कहा. अपने दूसरे कर्मचारियों को सतर्क रहने और विजय पर नज़र रखने की हिदायत भी दी थी. इसके बाद कुछ ही दिनों में शांतिलाल ये सब एक तरह से भूल गया और अपनी बाकी कामों और उलझनों में घिर गया. शांतिलाल पहले भारतीय जनता पार्टी की ज़िला इकाई में पदाधिकारी रह चुका था इसलिए कुछ राजनीतिक गतिविधियां बनी रहती थीं.
दो स्कूल और एक कॉलेज चलाने के कारण शांतिलाल काफी बिज़ी रहा करता था और कई तरह के लोगों से मिलने में ही उसका दिन बीत जाता था. इन तमाम मसरूफियात के साथ ही उसकी ज़िंदगी में एक और उलझन थी, उसका प्रेम प्रसंग. 50 साल की हिना के साथ शांतिलाल का संबंध बने चार साल हो चुके थे और इन दिनों इस रिश्ते में अड़चनें पैदा होने लगी थीं. हिना पहले शांतिलाल के ही एक स्कूल में कर्मचारी थी और 2007 में उसके पति की मौत के बाद दोनों एक दूसरे के करीब आने लगे थे.

हिना बरसों से शांतिलाल की ऐसी प्रेमिका बनी हुई थी जिसे समाज और बिरादरी में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था. फिर भी, शांतिलाल उसके लिए हर महीने खर्च के लिए एक रकम दिया करता था और उसका खयाल रखा करता था. पिछले कुछ दिनों से हिना की मांगें बढ़ती जा रही थीं. हिना अक्सर शिकायत करती कि शांतिलाल जो पैसे देता है, उसमें वह ठीक से गुज़र बसर नहीं कर पाती.
हिना कभी ज़्यादा पैसे मांगती तो कभी कहती कि उसे एक स्कूटर खरीदना है. स्कूटर खरीदने का मतलब था कि शांतिलाल उसे खरीद कर दे. बात इतनी ही नहीं थी. हिना अपनी उम्र का हवाला देकर शांतिलाल से एक फ्लैट की डिमांड भी कर रही थी. अक्सर कहने लगी थी कि 'मेरे नाम पर एक फ्लैट खरीद दो ताकि मेरे लिए कुछ प्रॉपर्टी हो जाए और मेरे बाद तो सब तुम्हारा ही है'.
ये सब पिछले कुछ वक्त से हो रहा था और हर बार शांतिलाल किसी बहाने से या हामी भरकर बात को टाल देता था. अब हिना ने एक नयी ज़िद पकड़ ली थी. वो अक्सर इस ज़िद को लेकर शांतिलाल पर दबाव बनाती और बात झगड़े तक पहुंच जाती.
हिना : तुम्हें क्या पता कि आसपास के लोग मुझे किन नज़रों से देखते हैं. मेरे बारे में कैसी बातें करते हैं.
शांतिलाल : लोगों का क्या है हिना, लोग तो बातें करते ही रहते हैं.
हिना : एक तो तुम औरत नहीं हो और ताने तुम्हें नहीं सुनना पड़ते ना इसलिए तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा.
शांतिलाल : क्या हो गया हिना?
हिना : कल किसी ने मेरे पीछे मुझे तुम्हारी रखैल कहा. अब क्या करूं मैं? तुम ये जो कभी कभी आते हो इसलिए लोगों को बात बनाने का मौका मिल जाता है. यहीं क्यों नहीं रहते. वैसे भी तुम्हारे घर में क्या रखा है. जिस बीवी से तुम प्यार नहीं करते, उसके साथ रहते हो और जिस औरत से प्यार करते हो, उसके साथ रहने में डरते हो?
चुभती हुई बातों से हिना अक्सर शांतिलाल को मजबूर करने लगी थी कि वह उसे बीवी का हक दे और अपना घर परिवार छोड़कर उसके साथ रहे. शांतिलाल अपने कामों के बीच अपने इस रिश्ते को एक तरह से अपनी गलती ही समझने लगा था. अब हिना के साथ उसका रिश्ता वैसा नहीं रह गया था. प्यार गायब हो चुका था और यह रिश्ता भी एक ज़िम्मेदारी का बोझ महसूस होने लगा था.
हिना के बढ़ते दबाव और आए-दिन की खिटखिट से परेशान होकर शांतिलाल ने एक दिन शराब पीते हुए इस मुश्किल से निजात पाने के बारे में सोचा तो अचानक उसे विजय का ध्यान आया. शांतिलाल पहले तो खतरनाक कदम उठाने के बारे में सोचकर घबरा गया लेकिन फिर उसने विजय से एक बार बात करने का इरादा किया. उसने अगले दिन विजय को अपने कमरे में बुलाया और इशारों में उससे पूछा तो उसे लगा कि विजय उसका काम कर सकता है.
विजय ने पहले मना तो नहीं किया लेकिन चतुराई से पूछा कि शांतिलाल खुद यह काम क्यों नहीं करता तो शांतिलाल ने अपनी उम्र का हवाला देकर कहा कि अकेले उसके लिए ये करना मुमकिन नहीं है. फिर शांतिलाल के दिए लालच में आकर विजय राज़ी हो गया और दोनों ने तसल्ली से बैठकर काम को अंजाम देने की पूरी साज़िश तैयार की.

बीते 3 सितंबर की शाम होने वाली थी जब शांतिलाल ने हिना को फोन किया और कर्मयोगी स्कूल आने को कहा. हिना ने पूछा तो शांतिलाल ने बताया :
शांतिलाल : तुम बहुत दिनों से कह रही थीं ना कि तुम्हारे लिए एक फ्लैट का बंदोबस्त कर दूं. तो, आ जाओ फिर साइट पर चलकर फ्लैट पसंद कर लो.
हिना : आज अचानक कैसे इस मेहरबानी का खयाल आ गया?
शांतिलाल : तुम धीरज खो देती हो हिना लेकिन मैं सब्र से काम लेता हूं और हर काम सही वक्त पर कर ही लेता हूं. तुम आ जाओ, आज तुम्हारा काम हो जाएगा.
हिना खुशी से झूठ उठी और तैयार होकर कुछ ही देर में स्कूल पहुंच गई. स्कूल से हिना को लेकर शांतिलाल और विजय कंस्ट्रक्शन साइट पर गए जहां शांतिलाल के ही एक नये प्रोजेक्ट का काम चल रहा था. तीसरी मंज़िल पर पहुंचते पहुंचते हिना की सांस फूल चुकी थी इसलिए शांतिलाल ने उसे एक कोने में रखे एक स्टूलनुमा पत्थर पर बैठने को कहा. हिना बैठकर सुस्ताते हुए फ्लैट के बारे में पूछने लगी.
इसी बातचीत के बीच शांतिलाल उसके सामने पहुंचा और अपने घुटनों पर बैठकर उसने हिना के दोनों हाथ पकड़ लिए. हिना को लगा कि शांतिलाल रोमेंटिक मूड में है लेकिन अगले ही पल हिना के हाथों को शांतिलाल ने और कसकर पकड़ा. हिना कुछ समझ पाती, इससे पहले ही पीछे से विजय ने उसके गले में एक रस्सी का फंदा डाला और उसका गला घोंटने लगा. हिना को शांतिलाल पूरी ताकत से पकड़े रहा ताकि वह बचाव न कर सके.

हिना कुछ देर छटपटाने के बाद सांस रुकने के कारण दम तोड़ चुकी थी. इसके बाद शांतिलाल और विजय ने किसी तरह हिना की लाश को घसीटकर बाथरूम में बंद कर दिया और वहां से चले गए. वहां से जाने के बाद शांतिलाल को खयाल आया कि अगली सुबह तक खुली पड़ी कंस्ट्रक्शन साइट पर कोई भी लाश देख सकता है इसलिए उसने विजय को फोन कर रात को लाश ठिकाने लगाने का प्लैन बनाया.
दोनों रात में फिर मौका-ए-वारदात पर पहुंचे और हिना की लाश को कार में रखकर उसे ठिकाने लगाने ले गए. मावड़ी और कानकोट गांव के बीच बहने वाली एक नहर के पास एक सुनसान जगह पर कार रोकी और फिर आसपास किसी के न होने की तसल्ली करने के बाद दोनों ने लाश को उस नहर में फेंक दिया. 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस पर पुलिस ने हिना की लाश बरामद की और जल्द ही खुलासा हो गया कि हत्याकांड का मुख्य आरोपी शहर का शिक्षाविद शांतिलाल है. 7 सितंबर को शांतिलाल को गिरफ्तार कर लिया गया.
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कुछ वक्त पहले की बात है जब दो स्कूलों और एक कॉलेज के मालिक शांतिलाल के एक स्कूल में रिनोवेशन का काम चल रहा था. राजकोट स्थित मावड़ी के मायानीनगर इलाके में इस स्कूल के भवन में प्लास्टर आॅफ पेरिस का काम होना था और इसके लिए एक कामगार विजय किसी ने भिजवाया था. इस कामगार से शांतिलाल की एक बार इस तरह बातचीत हुई थी :
शांतिलाल : तुम उत्तर प्रदेश के हो?
विजय : जी हुजूर.शांतिलाल : इससे पहले कहां काम कर रहे थे?
विजय : जी हुजूर, आप भरोसा रखिए, मैं ये काम कर दूंगा और कुछ गड़बड़ नहीं होगी.
शांतिलाल : वो तो ठीक है लेकिन पहले कहां थे?
विजय : हुजूर, जेल में था. कत्ल का एक केस था जिसमें जेल काट रहा था. अभी जमानत पर बाहर हूं हुजूर, काम की बहुत जरूरत है.
विजय की ये बातें सुनकर शांतिलाल को खटका ज़रूर लगा था लेकिन उसे काम जारी रखने को कहा. अपने दूसरे कर्मचारियों को सतर्क रहने और विजय पर नज़र रखने की हिदायत भी दी थी. इसके बाद कुछ ही दिनों में शांतिलाल ये सब एक तरह से भूल गया और अपनी बाकी कामों और उलझनों में घिर गया. शांतिलाल पहले भारतीय जनता पार्टी की ज़िला इकाई में पदाधिकारी रह चुका था इसलिए कुछ राजनीतिक गतिविधियां बनी रहती थीं.
दो स्कूल और एक कॉलेज चलाने के कारण शांतिलाल काफी बिज़ी रहा करता था और कई तरह के लोगों से मिलने में ही उसका दिन बीत जाता था. इन तमाम मसरूफियात के साथ ही उसकी ज़िंदगी में एक और उलझन थी, उसका प्रेम प्रसंग. 50 साल की हिना के साथ शांतिलाल का संबंध बने चार साल हो चुके थे और इन दिनों इस रिश्ते में अड़चनें पैदा होने लगी थीं. हिना पहले शांतिलाल के ही एक स्कूल में कर्मचारी थी और 2007 में उसके पति की मौत के बाद दोनों एक दूसरे के करीब आने लगे थे.

हिना बरसों से शांतिलाल की ऐसी प्रेमिका बनी हुई थी जिसे समाज और बिरादरी में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था. फिर भी, शांतिलाल उसके लिए हर महीने खर्च के लिए एक रकम दिया करता था और उसका खयाल रखा करता था. पिछले कुछ दिनों से हिना की मांगें बढ़ती जा रही थीं. हिना अक्सर शिकायत करती कि शांतिलाल जो पैसे देता है, उसमें वह ठीक से गुज़र बसर नहीं कर पाती.
हिना कभी ज़्यादा पैसे मांगती तो कभी कहती कि उसे एक स्कूटर खरीदना है. स्कूटर खरीदने का मतलब था कि शांतिलाल उसे खरीद कर दे. बात इतनी ही नहीं थी. हिना अपनी उम्र का हवाला देकर शांतिलाल से एक फ्लैट की डिमांड भी कर रही थी. अक्सर कहने लगी थी कि 'मेरे नाम पर एक फ्लैट खरीद दो ताकि मेरे लिए कुछ प्रॉपर्टी हो जाए और मेरे बाद तो सब तुम्हारा ही है'.
ये सब पिछले कुछ वक्त से हो रहा था और हर बार शांतिलाल किसी बहाने से या हामी भरकर बात को टाल देता था. अब हिना ने एक नयी ज़िद पकड़ ली थी. वो अक्सर इस ज़िद को लेकर शांतिलाल पर दबाव बनाती और बात झगड़े तक पहुंच जाती.
हिना : तुम्हें क्या पता कि आसपास के लोग मुझे किन नज़रों से देखते हैं. मेरे बारे में कैसी बातें करते हैं.
शांतिलाल : लोगों का क्या है हिना, लोग तो बातें करते ही रहते हैं.
हिना : एक तो तुम औरत नहीं हो और ताने तुम्हें नहीं सुनना पड़ते ना इसलिए तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा.
शांतिलाल : क्या हो गया हिना?
हिना : कल किसी ने मेरे पीछे मुझे तुम्हारी रखैल कहा. अब क्या करूं मैं? तुम ये जो कभी कभी आते हो इसलिए लोगों को बात बनाने का मौका मिल जाता है. यहीं क्यों नहीं रहते. वैसे भी तुम्हारे घर में क्या रखा है. जिस बीवी से तुम प्यार नहीं करते, उसके साथ रहते हो और जिस औरत से प्यार करते हो, उसके साथ रहने में डरते हो?
चुभती हुई बातों से हिना अक्सर शांतिलाल को मजबूर करने लगी थी कि वह उसे बीवी का हक दे और अपना घर परिवार छोड़कर उसके साथ रहे. शांतिलाल अपने कामों के बीच अपने इस रिश्ते को एक तरह से अपनी गलती ही समझने लगा था. अब हिना के साथ उसका रिश्ता वैसा नहीं रह गया था. प्यार गायब हो चुका था और यह रिश्ता भी एक ज़िम्मेदारी का बोझ महसूस होने लगा था.
हिना के बढ़ते दबाव और आए-दिन की खिटखिट से परेशान होकर शांतिलाल ने एक दिन शराब पीते हुए इस मुश्किल से निजात पाने के बारे में सोचा तो अचानक उसे विजय का ध्यान आया. शांतिलाल पहले तो खतरनाक कदम उठाने के बारे में सोचकर घबरा गया लेकिन फिर उसने विजय से एक बार बात करने का इरादा किया. उसने अगले दिन विजय को अपने कमरे में बुलाया और इशारों में उससे पूछा तो उसे लगा कि विजय उसका काम कर सकता है.
'हुजूर, आपने इस सज़ायाफ्ता को काम दिया, मेहरबानियां कीं, आपके बहुत एहसान हैं. आप जो हुक्म करेंगे, मैं पीछे नहीं हटूंगा', जब विजय ने ऐसी बात कही तब शांतिलाल ने उसे रात को घर आकर मिलने के लिए कहा. शाम से रात तक शांतिलाल सोचता रहा कि वह विजय को कैसे पूरी बात बताना है और कैसे उसे राज़ी करना है. विजय मिलने आया और शांतिलाल ने हिना नाम की परेशानी के बारे में बताकर उससे कहा कि हिना को खामोश करना है.
विजय ने पहले मना तो नहीं किया लेकिन चतुराई से पूछा कि शांतिलाल खुद यह काम क्यों नहीं करता तो शांतिलाल ने अपनी उम्र का हवाला देकर कहा कि अकेले उसके लिए ये करना मुमकिन नहीं है. फिर शांतिलाल के दिए लालच में आकर विजय राज़ी हो गया और दोनों ने तसल्ली से बैठकर काम को अंजाम देने की पूरी साज़िश तैयार की.

बीते 3 सितंबर की शाम होने वाली थी जब शांतिलाल ने हिना को फोन किया और कर्मयोगी स्कूल आने को कहा. हिना ने पूछा तो शांतिलाल ने बताया :
शांतिलाल : तुम बहुत दिनों से कह रही थीं ना कि तुम्हारे लिए एक फ्लैट का बंदोबस्त कर दूं. तो, आ जाओ फिर साइट पर चलकर फ्लैट पसंद कर लो.
हिना : आज अचानक कैसे इस मेहरबानी का खयाल आ गया?
शांतिलाल : तुम धीरज खो देती हो हिना लेकिन मैं सब्र से काम लेता हूं और हर काम सही वक्त पर कर ही लेता हूं. तुम आ जाओ, आज तुम्हारा काम हो जाएगा.
हिना खुशी से झूठ उठी और तैयार होकर कुछ ही देर में स्कूल पहुंच गई. स्कूल से हिना को लेकर शांतिलाल और विजय कंस्ट्रक्शन साइट पर गए जहां शांतिलाल के ही एक नये प्रोजेक्ट का काम चल रहा था. तीसरी मंज़िल पर पहुंचते पहुंचते हिना की सांस फूल चुकी थी इसलिए शांतिलाल ने उसे एक कोने में रखे एक स्टूलनुमा पत्थर पर बैठने को कहा. हिना बैठकर सुस्ताते हुए फ्लैट के बारे में पूछने लगी.
इसी बातचीत के बीच शांतिलाल उसके सामने पहुंचा और अपने घुटनों पर बैठकर उसने हिना के दोनों हाथ पकड़ लिए. हिना को लगा कि शांतिलाल रोमेंटिक मूड में है लेकिन अगले ही पल हिना के हाथों को शांतिलाल ने और कसकर पकड़ा. हिना कुछ समझ पाती, इससे पहले ही पीछे से विजय ने उसके गले में एक रस्सी का फंदा डाला और उसका गला घोंटने लगा. हिना को शांतिलाल पूरी ताकत से पकड़े रहा ताकि वह बचाव न कर सके.

हिना कुछ देर छटपटाने के बाद सांस रुकने के कारण दम तोड़ चुकी थी. इसके बाद शांतिलाल और विजय ने किसी तरह हिना की लाश को घसीटकर बाथरूम में बंद कर दिया और वहां से चले गए. वहां से जाने के बाद शांतिलाल को खयाल आया कि अगली सुबह तक खुली पड़ी कंस्ट्रक्शन साइट पर कोई भी लाश देख सकता है इसलिए उसने विजय को फोन कर रात को लाश ठिकाने लगाने का प्लैन बनाया.
दोनों रात में फिर मौका-ए-वारदात पर पहुंचे और हिना की लाश को कार में रखकर उसे ठिकाने लगाने ले गए. मावड़ी और कानकोट गांव के बीच बहने वाली एक नहर के पास एक सुनसान जगह पर कार रोकी और फिर आसपास किसी के न होने की तसल्ली करने के बाद दोनों ने लाश को उस नहर में फेंक दिया. 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस पर पुलिस ने हिना की लाश बरामद की और जल्द ही खुलासा हो गया कि हत्याकांड का मुख्य आरोपी शहर का शिक्षाविद शांतिलाल है. 7 सितंबर को शांतिलाल को गिरफ्तार कर लिया गया.
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