राम रहीम
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90 के दशक के आखिर तक आते-आते रामचंद्र को यह एहसास होने लगा था कि उनके लेखों को अखबार कई तरह के दबावों के चलते छापने से कतराते थे. रामचंद्र ने अपने फर्ज़ और लेखनी को कमज़ोर होने से बचाने के लिए अपना ही अखबार निकालने का फैसला किया और इसके लिए उन्होंने कई कवियों, स्कॉलर्स और अकादमिक लोगों से बातचीत करना शुरू की.
साल 2002 में रामचंद्र ने हरियाणा के सिरसा से अपना अखबार 'पूरा सच' निकालना शुरू कर दिया. बेबाक खबरों के लिए जल्द ही यह अखबार अपनी पहचान भी बनाने लगा. मई 2002 में डेरा सच्चा सौदा के एक ड्राइवर और पुलिस के बीच विवाद का मामला सामने आया. यह विवाद इतना आगे बढ़ा कि ऐसे कुछ खुलासे हुए जो चौंकाने वाले थे. इन खुलासों से डेरे और बाबा गुरमीत राम रहीम की शराफत का नकाब उतर सकता था.
एक आदर्शवादी पत्रकार के लिए यह मामला नज़रअंदाज़ करने वाला नहीं था लेकिन यह भी ज़ाहिर था कि मामला इतना संगीन था कि इसे छापने के जोखिम भी हो सकते थे. रामचंद्र जोखिम उठाने से कतराने वाले पत्रकार नहीं थे इसलिए उन्होंने इस मामले पर अखबार में गंभीरता से लिखना शुरू किया. लेकिन, इस मामले से पहले भी डेरा की नज़रों में रामचंद्र चढ़ चुके थे.
अस्ल में, 1998 में डेरा की एक कार ने एक बच्चे को कुचलकर मौत के घाट उतार दिया था. इसकी खबरें कुछ अखबारों में छपी थीं. तब, डेरा के लोगों ने डेरा के खिलाफ खबरें छापने वाले पत्रकारों को धमकाया था. इन हालात में डेरा की धमकियों का विरोध करने वाले पत्रकारों में रामचंद्र शामिल थे जिन्होंने पत्रकारों और अभिव्यक्ति की आज़ादी की पुरज़ोर वकालत की थी. यह पहला वाकया था, जब डेरा और रामचंद्र का सीधा टकराव हुआ था.
इस घटना के बाद डेरा पर गांव की ज़मीनों पर अवैध कब्ज़े के आरोप भी लगे थे. इस मामले ने भी काफी तूल पकड़ा था और इसे लेकर भी रामचंद्र और डेरे के बीच तनातनी हुई थी. यानी, रामचंद्र और डेरे के बीच पहले से ही एक संघर्ष की हालत बनी हुई थी. 2002 में जब एक और विवाद हुआ तब एक पुलिसकर्मी ने एक ऐसी चिट्ठी का खुलासा किया जिसमें डेरे की एक साध्वी ने डेरे में बाबा गुरमीत पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे.
रामचंद्र इस मामले पर डरे बगैर लिखते रहे, धमकियां मिलती रहीं और कोर्ट की जांच के बाद सीबीआई जांच के आदेश हो गए. डेरा मुश्किल में फंसता दिखाई दे रहा था क्योंकि आरोप यह था कि डेरे में बाबा ने दो साध्वियों के साथ यौन शोषण किया और रिपोर्टों में शक यह भी ज़ाहिर किया गया था कि दो नहीं बल्कि बाबा डेरे की कई लड़कियों को शिकार बना रहा था. 24 सितंबर 2002 को सीबीआई को यह जांच सौंपी गई और छह महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने को कहा गया.
इधर, रामचंद्र पर लगाम कसने के लिहाज़ से डेरे ने उनके खिलाफ एक केस दर्ज करवा दिया. साथ ही, रामचंद्र को धमकियां बदस्तूर दी जाती रहीं. रामचंद्र ने एसपी को लिखित शिकायत भी दी लेकिन कोई खास एक्शन नहीं लिया गया. इसी दौरान, 24 अक्टूबर 2002 को फिर एक फोन आया और रामचंद्र को धमकाया गया. लेकिन, ये धमकियां रोज़मर्रा की बात हो गई थीं इसलिए रामचंद्र अपने रूटीन के मुताबिक ही घर से निकलने को तैयार थे.
'तुसी अपना खयाल रखना. आपको तो नहीं लेकिन मैनूं डर लगता है..' रामचंद्र ने अपने घर वालों के इस डर पर उन्हें तसल्ली दी लेकिन उन्हें नहीं पता था कि उस दिन क्या होने वाला था. घर से निकलते ही रामचंद्र के सामने एक मोटरसाइकिल आकर रुकी जिस पर दो लोग बैठे थे. उनमें से एक के हाथ में पिस्तौल थी. 'तू नहीं मानेगा ना..' यह कहते हुए उस आदमी ने पिस्तौल से पॉइंट ब्लैंक रेंज से चार गोलियां रामचंद्र पर दागीं और दोनों हमलावर फौरन मौके से भाग गए.
रामचंद्र को गंभीर ज़ख्मी हालत में अस्पताल में ले जाया गया. उनकी हालत काफी दिनों तक स्थिर रही लेकिन आखिरकार 21 नवंबर को रामचंद्र ने दम तोड़ दिया. रामचंद्र पर हमले के केस में छानबीन शुरू हो चुकी थी और दो लोकल कारपेंटरों निर्मल और कुलदीप को गिरफ्तार किया जा चुका था. निर्मल और कुलदीप पर कत्ल करने का चार्ज था. जांच में यह खुलासा हो गया कि ये दोनों डेरे के लिए काम करते थे.
रामचंद्र की हत्या के केस की जांच भी सीबीआई को सौंपी गई. सीबीआई ने हत्या की साज़िश रचने के मामले में डेरा प्रमुख बाबा गुरमीत राम रहीम को आरोपी बनाया. फिलहाल गुरमीत साध्वियों के यौन शोषण के मामले में सज़ा काट रहा है और रोहतक की एक जेल में बंद है. रामचंद्र की हत्या के मामले में गुरमीत के खिलाफ अंतिम फैसला आना बाकी है.
(यह कहानी मीडिया में रही खबरों पर आधारित है.)
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