गौरी लंकेश
पूरी तैयारी थी. तीन सितंबर को ही मौके का मुआयना और रेकी की जा चुकी थी. चार सितंबर को टारगेट को गोली मारने का प्लान था लेकिन ज़रा सी चूक से उस दिन हत्याकांड को अंजाम नहीं दिया जा सका लेकिन चूक इतनी बड़ी नहीं थी कि हमेशा के लिए बात टल जाए. परशुराम जो काम चार को अंजाम नहीं दे सका, वह उसने पांच सितंबर को पूरा किया.
कर्नाटक और महाराष्ट्र के बॉर्डर पर सिंदगी एक कस्बा था जहां अरसे से हिंदू और मुसलमान सद्भाव के साथ रह रहे थे. साल 2012 में यहां बात तब दंगे तक पहुंच गई थी जब एक हिंदुत्ववादी संगठन ने मुसलमानों पर पाकिस्तानी झंडा लहराकर माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाते हुए उग्र प्रदर्शन शुरू कर दिए. इस मामले में तब आधा दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया गया था और इनमें एक था श्रीराम सेने का सदस्य परशुराम वाघमारे.
उस वक्त 21-22 साल का परशुराम कट्टर हिंदुत्ववादी संस्था से जुड़ चुका था और लगातार ऐसी विचारधारा वाली संस्थाओं के संपर्क और गतिविधियों में शामिल रहा. कुछ सालों की गतिविधियों के दौरान परशुराम हिंदुत्व की विचारधारा के प्रति कट्टर हो चुका था और उन लोगों के प्रति हिंसक जो उसकी नज़र में हिंदू धर्म के खिलाफ किसी तरह की गतिविधि में शामिल हैं या रहते हैं.
इन्हीं सालों में परशुराम ने कट्टरपंथी संस्थाओं की मदद से बंदूक जैसे हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी ली. साल 2017 में 26 साल के हो चुके परशुराम को एक खास काम के लिए चुने जाने के निर्देश मिले. हिंदुत्व की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण काम के लिए अपने चयन से गर्व से भर चुके परशुराम को बताया गया कि उसे इस काम के लिए बेंगलूरु ले जाया जाएगा और कुछ लोग उसकी मदद करेंगे. साथ ही, समय समय पर निर्देश मिलते रहेंगे.
सितंबर 2017 के पहले ही दिन से उसके पास फोन से सूचनाएं आना शुरू हो गईं. अगले ही दिन उसे बेंगलूरु के लिए रवाना होने का अंतिम संदेश मिला और कुछ लोग उसके पास आए. 3 सितंबर को वह बेंगलूरु में था और एक अनजान मकान में रुका था. 3 सितंबर को ही उसे निशाने पर ली गई जगह की रेकी करने के संबंध में निर्देश मिले. एक अनजान व्यक्ति परशुराम को उस मकान के पास बाइक पर लेकर गया जहां का मुआयना करना था.
4 सितंबर की शाम जब वह उस मकान पर पहुंचा तो उसे देर हो चुकी थी. निर्देशों के अनुसार निशाने को मकान के बाहर, मकान में दाखिल होते वक्त मारा जाना था. परशुराम के वहां पहुंचने से कुछ देर पहले ही कार वहां पहुंच चुकी थी और टारगेट मकान के भीतर दाखिल हो चुका था इसलिए अब बात अगले दिन पर टाल देने के कोई चारा नहीं था. 4 सितंबर को काम पूरा न हो पाने के कारण परशुराम उसी अजनबी बाइकर के साथ लौट गया लेकिन फिर एक अलग मकान में उसे रात बिताना थी.
अगले दिन 5 सितंबर की शाम होने वाली थी और टारगेट अपने आॅफिस में था. इस टारगेट का नाम था गौरी लंकेश. अपने पिता के गुज़रने के बाद पत्रकारिता की विरासत संभालने वाली गौरी पहले ही गौरी लंकेश पत्रिके लॉन्च कर चुकी थीं. उस दिन इस पत्रिका के आगामी अंक के लिए गौरी प्रकाशित होने वाले लेखों, रिपोर्टों आदि को फाइनल टच दे रही थीं.
गौरी की यह पत्रिका कट्टरपंथी समूहों पर खुलकर प्रहार करने के लिए मशहूर थी. इधर, अपने आॅफिस में गौरी आगामी संस्करण के लिए काम कर रही थीं और उधर, शाम करीब 4 बजे परशुराम को उस बाइकर ने एक पिस्तौल दी. फोन पर परशुराम से पहले ही कहा जा चुका था कि इस खास काम के लिए उसे एक खास पिस्तौल मुहैया करवा दी जाएगी. पिस्तौल लेने के बाद उसी अनाम बाइकर के साथ परशुराम गौरी के घर जा पहुंचा. आज दोनों पहले ही पहुंच गए थे.
करीब ही छुपकर खड़े परशुराम को बहुत इंतज़ार नहीं करना पड़ा और गौरी की कार वहां पहुंची. गौरी ने कार को घर के दरवाज़े के सामने रोका और दरवाज़ा खोलने के लिए कार से बाहर निकलीं. गौरी दरवाज़े के पास पहुंच रही थीं और इधर, परशुराम उनकी तरफ बढ़ रहा था. भीतर की तरफ से बंद दरवाज़े को खोल रही गौरी के बहुत करीब से गुज़रा परशुराम हल्की आवाज़ में खांसा. खांसने की हल्की आवाज़ सुनकर गौरी ने जैसे ही पलटकर परशुराम को देखा, परशुराम ने पिस्तौल निकाली और गौरी को शूट कर दिया.
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पहली गोली गौरी की छाती में लगी तो परशुराम ने एक के बाद एक गोलियां चलाईं ताकि गौरी के जिंदा बचने का कोई चांस न रहे. परशुराम ने 7 गोलियां दागीं जिनमें से दो गोलियां गौरी की छाती और एक माथे पर लगी. माथे पर गोली लगने के बाद परशुराम को एहसास हो चुका था कि अब गौरी बचेंगी नहीं. इसके तुरंत बाद बाइक पर बैठकर परशुराम उस अनाम साथी के साथ फरार हो गया. परशुराम का अंदाज़ा ठीक था, कुछ ही पलों में गौरी की मौत हो चुकी थी.
बड़ा सवाल – मास्टरमाइंड कौन है?
तकरीबन एक साल पहले हुई गौरी लंकेश की हत्या में अब तक सैकड़ों लोगों से पूछताछ के बाद करीब आधा दर्जन संदिग्ध व आरोपी कब्ज़े में आ चुके हैं. गिरफ्तार किए गए आरोपियों में केटी नवीन, अमोल काले, मनोहर एडवे, सुजीत कुमार उर्फ प्रवीण और अमित देगवेकर शामिल हैं. परशुराम की हालिया गिरफ्तारी के बाद उसने एसआईटी को दिए बयान में गौरी पर गोली चलाने की बात कबूल कर ली है. परशुराम ने कहा कि गौरी धर्म की दुश्मन थीं और वह धर्म की रक्षा करना चाहता था इसलिए उसने हत्या की. बावजूद इसके अब सवाल यह है कि परशुराम तो केवल वह हाथ था जिसने गोली चलाई, अस्ल में गौरी की हत्या की साज़िश रची किसने?
मीडिया में आईं खबरों के मुताबिक एसआईटी के लिए भी यह सवाल बड़ी उलझन बन चुका है क्योंकि यह एक पेचीदा नेटवर्क है. काम को अंजाम देने वाले ज़रूरी नहीं कि किसी एक संस्था या व्यक्ति के निर्देश पर संचालित होते हों बल्कि एक सी विचारधारा वाली कई संस्थाओं की इसमें भूमिका हो सकती है. जांच एजेंसियों का यह कहना भी है कि परशुराम जैसे कार्यकर्ता इस तरह ट्रेंड किए जा चुके हैं कि वे किसी कीमत पर किसी नाम का खुलासा नहीं करते.
एक हिटलिस्ट होने का खुलासा भी
एसआईटी के हवाले से मीडिया में आए बयानों की मानें तो गौरी की हत्या की साज़िश 60 लोग तक शामिल हो सकते हैं. एसआईटी का अनुमान यह भी है कि गौरी से पहले हो चुकीं गोविंद पानसरे और एमएम कालबुर्गी की हत्या में जिस पिस्तौल का इस्तेमाल किया गया था, उसी पिस्तौल से गौरी की हत्या की गई है, जो अब तक बरामद नहीं हुई है. फॉरेंसिक रिपोर्ट के हवाले से कहा जा रहा है कि पानसरे और कालबुर्गी को लगी गोलियां और गौरी को लगी गोलियां एक ही पिस्तौल से चली हैं.
दूसरी तरफ, कट्टरपंथियों के खिलाफ मुखर लेखकों की एक हिटलिस्ट सामने आने की भी खबरें हैं. गौरी के साथ ही, प्रोफेसर केएस भगवान और गिरीश कर्नाड जैसे लेखकों को भी निशाना बनाए जाने की खबरें भी जांच एजेंसियों के हवाले से मीडिया में आई हैं. हालांकि केएस भगवान पर हमले की साज़िश को विफल किया जा चुका था.
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