10 जुलाई 2004 की रात 12 बजे के बाद. आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट यानी अफ्स्पा लागू था. मणिपुर के बैमन कैम्पू मयई इलाके में असम राइफल्स के जवान घेराबंदी कर रहे थे. कुछ सायरनों और कुछ बूटों की आवाज़ों से पूरा इलाका थर्रा रहा था. जिन घरों में ये आवाज़ें पहुंच रही थीं, वहां एक खास किस्म का डर पैदा हो रहा था. वह रात एक महिला की ज़िंदगी की आखिरी रात थी लेकिन किस ढंग से थी? इसकी दो कहानियां हैं.
खौफ, आतंक और दर्द की दास्तान
बैमन कैम्पू मयई इलाके में एक प्राथमिक चेकपोस्ट बनाई गई और यह खबर पुख्ता की गई कि थंगजम मनोरमा अपने घर में है. रात 12 बजे के कुछ देर बाद पहली बार असम राइफल्स के कुछ लोग उस घर की तरफ गए जिनमें से कुछ सिविल ड्रेस में थे. उस वक्त घर के अंदर घर का सबसे छोटा बेटा बसु टीवी पर हिंदी फिल्म 'राजू चाचा' देख रहा था. उससे बड़ा बेटा डोलेंड्रो सो रहा था. तभी असम राइफल्स के ये लोग उस घर में ज़बरदस्ती दाखिल हुए.
बगैर कुछ कहे-सुने सीधे इन लोगों ने मनोरमा उर्फ हेन्थोई की मां के सिर पर बंदूक तान दी और हेन्थोई के बारे में पूछा. शोर शराबा सुनकर अपने कमरे से जैसे ही मनोरमा बाहर निकली उनमेें से एक आदमी ने मनोरमा का मुंह अपने हाथों से कसकर बंद कर दिया और उसे धकेलते हुए घर के बाहर बने एक हिस्से की तरफ ले जाया जाने लगा. मनोरमा की मां और भाइयों ने रोकने की कोशिश की तो उन लोगों ने लात-घूंसों से पीटा, बंदूकों के बट से मारा और चुपचाप घर के अंदर रहने को कहा.
मनोरमा को बालों से पकड़कर उसे तमाचे मारते और घसीटते हुए कोर्टयार्ड की तरफ ले जाया गया. फिर मनोरमा को पकड़ने आई पार्टी का जो आदमी सिविल ड्रेस में था, वह मनोरमा के पास बैठा. मनोरमा ने कमर से बंधा हुआ पारंपरिक मणिपुरी लिबास फनेक पहना हुआ था. उस आदमी ने एक चाकू उसके फनेक के अंदर घुसाकर फनेक को चीर डाला. फनेक के साथ ही मनोरमा ने जो लंबा ब्लाउज़ जैसा कपड़ा पहना था, उसे भी ज़बरदस्ती फाड़ डाला गया.

थंगजम मनोरमा. फाइल फोटो.
ये आदमी कपड़े फाड़ते हुए मनोरमा से पूछ रहा था - 'बता हथियार कहां हैं? बोल...' और यह सब कुछ घर के भीतर बंद कर दिए गए मनोरमा के भाई और उसकी मां अधखुले दरवाज़े और खिड़कियों से देख रहे थे और बिलखकर चीख रहे थे. मनोरमा का मुंह बंद कर दिया गया था और उसके हाथ पीठ पीछे बांध दिए गए थे. कपड़े फाड़े जा रहे थे और मनोरमा पूरी ताकत से बचाव की नाकाम कोशिश कर रही थी. उसके बचाव से और तैश में आकर उस आदमी ने चाकू की नोक मनोरमा की जांघ पर रखकर ज़ख्म करना शुरू किया.
अगले कई मिनटों तक तड़पती हुई मनोरमा को उसका पूरा परिवार बिलखते हुए देखता रहा. कुछ लोग बारी-बारी से मनोरमा को रौंद चुके थे. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. इसके बाद दयनीय हालत में ज़िंदा मनोरमा को वह टीम अपने साथ ज़बरदस्ती ले गई. करीब दो घंटे बाद देर रात या अलसुबह साढ़े तीन बजे कुछ सिपाही मनोरमा के घर फिर आए और उन्होंने उसके परिवार से कहा कि मनोरमा को हिरासत में ले लिया गया है.
हवलदार सुरेश कुमार ने अरेस्ट मेमो पर मनोरमा की मां के दस्तखत करवाए. इस मेमो में दर्ज किया गया कि घर से सिंगापुर मेड रेडियो और चइना मेड हथगोला बरामद हुआ. जबकि मनोरमा के परिवार ने कहा कि घर से ये सिपाही सोने के ज़ेवरात लेकर गए. यह अरेस्ट मेमो असम राइफल्स की एक प्रक्रिया थी जिसमें आॅपरेशन को अंजाम देने वाली टीम गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार से नो क्लेम सर्टिफिकेट लेती है. इसका मतलब होता है कि अगर परिवार इस मेमो पर दस्तखत करता है तो माना जाता है कि उस परिवार के साथ कोई ज़बरदस्ती या बदसलूकी नहीं की गई और घर के सामान को नुकसान नहीं पहुंचाया गया.

मणिपुर में हुए प्रदर्शन. फाइल फोटो.
मनोरमा को घर से ले जाए जाने के करीब दो-ढाई घंटे बाद गोलियों से छलनी मनोरमा की लाश उसके घर से करीब चार किलोमीटर दूरी पर मिली. लाश को देखकर कई लोगों का मानना था कि गोलियां मारने से पहले मनोरमा के साथ बुरी तरह बलात्कार किया गया.
दूसरी कहानी : असम राइफल्स के बयानों के हिसाब से
10 जुलाई 2004 को कई ज़रियों से पुख्ता खबर मिल चुकी थी कि मनोरमा देवी उर्फ हेन्थोई बैमन कैम्पू मयई इलाके में छुपी हुई थी. यह पता लगाया जा चुका था कि मनोरमा 1995 से आतंकी गतिविधियों से जुड़ी थी और आईईडी जैसे विस्फोटक के बारे में एक्सपर्ट थी. इसका संबंध घोषित और प्रतिबंधित आतंकी संगठन पीपल्स लिब्रेशन आर्मी से था. रात के 12 बजे के बाद इस इलाके में एक प्राथमिक चेकपोस्ट फौरन तैयार करने के लिए आॅपरेशन शुरू किया गया.
मनोरमा के इस इलाके में होने की पुष्टि के बाद उसे पकड़ने का आॅपरेशन शुरू हुआ और पूरे इलाके की घेराबंदी की गई. देर रात करीब 3 बजे अफसर उस घर में पहुंचे जहां मनोरमा छुपी हुई थी. उन्होंने दरवाज़ा खटखटाकर अरेस्ट मेमो पर मनोरमा के परिवार के दस्तखत करवाए और मनोरमा को गिरफ्तार कर अपने साथ ले गए.

थंगजम मनोरमा के लिए लिखे गए पोस्ट. साभार ट्विटर.
गिरफ्तारी के बाद थोड़ी बहुत पूछताछ की गई तो मनोरमा ने अपनी एक और साथी आतंकी लेफ्टिनेंट रूबी के बारे में बताया और यह भी बताया कि उसके पास एक एके 47 है. दो घंटे से ज़्यादा वक्त तक इधर उधर गाड़ी घुमाने के बाद सैनिक मनोरमा को करीबी पुलिस थाने में हैंडओवर करने ले जा रहे थे तभी अचानक मनोरमा ने भागने की कोशिश की. सिपाहियों ने उसे रुक जाने के लिए पुकारा लेकिन वह नहीं रुकी और भागने लगी. फिर सिपाहियों ने उसे रोकने के मकसद से हवाई फायर भी किए लेकिन वह नहीं रुकी. उसके बाद मनोरमा के पैरों को निशाना बनाकर गोलियां दागी गईं और इसी फायरिंग में उसकी मौत हो गई.
इस कहानी से उठे सवाल
- मनोरमा की लाश जब हैंडओवर की गई तो एक भी गोली उसके पैर में नहीं लगी थी. मनोरमा को कुल 16 गोलियां लगी थीं जिनमें से ज़्यादातर उसके जननांग पर.
- असम राइफल्स के मुताबिक 'खतरनाक आतंकी' जिसके लिए पूरे इलाके को छावनी बनाया गया वह इतनी आसानी से गिरफ्त में कैसे आ गई और इतनी मूर्खता से क्यों भागी?
- मनोरमा के परिवार ने उसे ले जाए जाने के तुरंत बाद से ही विरोध करना शुरू क्यों किया और कुछ ही देर में भारी जनसमर्थन मनोरमा और उसके परिवार के पक्ष में कैसे आया?
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Tags: Afspa, Manipur, Murder, Rape
FIRST PUBLISHED : July 10, 2018, 20:01 IST