सरकार की ओर से आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM) में बदलाव किया जा रहा है. इसकी वजह से 16 दवाएं महंगी हो सकती हैं.
नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने कोरोना के इस दौर में जरूरी दवाओं को लेकर बदलाव किया है. इसके लिए आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (National List of Essential Medicines) में 39 नई दवाओं को जोड़कर उनके दामों को नियंत्रित करने की कवायद चल रही है जबकि 16 दवाओं को इस सूची से बाहर करने का फैसला किया है. जिससे ये दवाएं (Medicines) महंगी हो सकती हैं और इसका असर इलाज के दौरान मरीज की जेब पर पड़ना तय है.
एनएलईएम (NLEM) यानि कि आवश्यक दवाओं की सूची से बाहर की गईं इन दवाओं में ज्यादातर दवाएं एंटी-बायोटिक (Anti-biotic Medicines) हैं जो अलग-अलग बीमारियों में काम आती हैं. फार्मा इंडस्ट्री से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि बाहर की गईं ये 16 दवाएं तकरीबन 10-12 फीसदी महंगी हो सकती हैं. खास बात है कि इन दवाओं की कीमतों के निर्धारण में सरकार का दखल सिर्फ वार्षिक वृद्धि के नियमों तक रहेगा. वहीं बाजार में पहुंचने और वहां प्रतिस्पर्धा के कारण फार्मा कंपनियां इन 16 प्रकार के सॉल्ट से दवाएं बनाकर खुद के द्वारा तय की गई कीमतों पर बेच सकती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इसका फायदा और नुकसान दोनों ही मरीजों को हो सकता है.
ऑल इंडिया केमिस्ट एंड डिस्ट्रीब्यूटर फेडरेशन के अध्यक्ष कैलाश गुप्ता ने न्यूज 18 हिंदी को बताया कि सरकार की नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी एक रेगुलेटरी एजेंसी है जो समय-समय पर देश में फार्मास्यूटिकल ड्रग्स की कीमतों का निर्धारण करती है. इसके लिए एक आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची बनाई गई है जिसमें उन जरूरी दवाओं को शामिल किया जाता है जिनकी देश में ज्यादा जरूरत होने के साथ ही उनके दाम ज्यादा हैं और वे आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं. इन्हें इस सूची में डाला जाता है और इनकी प्राइस कैपिंग (Price Capping) कर दी जाती है.
गुप्ता कहते हैं कि हर बार ही इस सूची में कुछ दवाओं के डालने के साथ ही कुछ दवाओं को इससे बाहर भी किया जाता है और उन्हें बाजार में छोड़ दिया जाता है. ये वे दवाएं होती हैं जो या तो जीवन रक्षक की श्रेणी में वर्तमान में नहीं होती या जिनका पेटेंट खत्म हो चुका होता है और कई अन्य कंपनियां अब इस दवा को बनाने लगती हैं. जिससे दवा की मौजूदगी बढ़ने से और बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से इसकी प्राइस कैपिंग की जरूरत नहीं पड़ती. या फिर इनकी कीमतें (Medicine rates) बहुत ज्यादा नहीं होती, ये आसानी से उपलब्ध होती हैं. इन्हीं सब कारणों से इन्हें आवश्यक दवाओं की सूची में रखने की जरूरत नहीं होती है और सरकार इन्हें एनएलईएम (NLEM) से हटा देती है. हालांकि ये चलन में रहती हैं और बाजार में मिलती हैं लेकिन इनकी उपलब्धता बेहद जरूरी नहीं होती. इसका निर्धारण भी सरकार की कमेटी करती है.
इन दवाओं को आवश्यक दवाओं की सूची से किया जा सकता है बाहर
Alteplase (clot buster)
Atenolol (anti-hypertension)
Bleaching Powder, Cetrimide (antiseptic)
Erythromycin (antibiotic)
Ethinylestradiol+Norethisterone (birth control)
Ganciclovir (antiviral)
Lamivudine+Nevirapine+Stavudine (antiretroviral)
Leflunomide (antirheumatic)
Nicotinamide (Vitamin-B)
Pegylated interferon alfa 2a
Pegylated interferon alfa 2b (antiviral)
Pentamidine (antifungal)
Prilocaine+Lignocaine (anesthetic)
Rifabutin (antibiotic)
Stavudine+Lamivudine (antiretroviral)
Sucralfate (anti-ulcer
अभी दवाओं की कीमतों पर होना है फैसला
हालांकि न्यूज 18 को जानकारी मिली है कि अभी तक सरकार ने दवाओं की सूची औपचारिक रूप से जारी नहीं की है लेकिन 39 दवाओं को सूची में शामिल करने और 16 दवाओं को इस सूची से हटाने का प्रस्ताव आईसीएमआर (ICMR) की बैठक के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय के पास भेजा गया है. जहां से यह सूची डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल के पास भेजी जाएगी और फिर यह नीति आयोग (Niti Aayog) में पहुंचेगी. यहां तय होगा कि किन दवाओं को लिस्ट में रखा जाएगा और किन दवाओं को नहीं रखा जाएगा. इसके बाद एनपीपीए (NPPA) यानि कि नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी इनके दामों को लेकर फैसला करेगी.
सरकार से जुडे़ विशेषज्ञों का कहना है कि अगर 16 दवाओं को एनएलईएम से हटा भी दिया जाता है तो उनकी कीमतें एक साल के बाद ही बढेंगी. ऐसा इसलिए होगा कि सरकार की ओर से डीपीसीओ में दवाओं पर 10 फीसदी से ज्यादा कीमतें बढ़ाने की अनुमति नहीं है. लिहाजा ये दवाएं 10 फीसदी तक महंगी हो सकती हैं.
जहां तक आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची का मसला है तो इसमें दवाओं को प्राइस कंट्रोल से ज्यादा इसलिए डाला जाता है कि ये दवाएं सभी तीनों प्रकार के केंद्रों पर उपलब्ध हो सकें.
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