नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि बेघर लोग जीते नहीं, बल्कि अपना अस्तित्व बचाते हैं तथा वे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के मौलिक अधिकार से अनभिज्ञ होते हैं. अदालत ने नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन के विस्तार के समय एक मलीन बस्ती (स्लम) से दूसरी मलीन बस्ती भेजे गये पांच व्यक्तियों के पुनर्वास का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की.
न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने पांच झुग्गीवासियों की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि झुग्गीवासी ‘गरीबी और दरिद्रता से त्रस्त होते हैं’ और वे ऐसी जगहों पर मर्जी से नहीं रहते. गौरतलब है कि इन झुग्गीवासियों ने रेलवे स्टेशन के पुन: आधुनिकीकरण के नाम पर दूसरी जगह से भी विस्थापित करने के कारण याचिका दायर की थी. अदालत ने कहा कि उनका (झुग्गीवासियों का) निवास स्थान उनके लिए आश्रय के अधिकार और उनके सिर पर छत से संबंधित अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए एक ‘अंतिम प्रयास’ है.
समाज से असमानता को कम करें
न्यायाधीश ने कहा कि यदि वंचितों को न्याय नहीं मिलता और न्यायपालिका को संविधान के अनुच्छेद 38 एवं 39 के मद्देनजर संवेदनशील रहने की आवश्यकता है. इन प्रावधानों के तहत सरकार का दायित्व है कि वह सभी के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चत करे और समाज से असमानता को कम करे.
वैकल्पिक रिहाइश आवंटित करने का आदेश दिया
अदालत ने अपने चार जुलाई के आदेश में कहा, ‘‘बेघर लोग निश्चित तौर पर जीते नहीं, बल्कि किसी तरह अपना अस्तित्व बचाते हैं. वे संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त अधिकारों से अनभिज्ञ होते हैं.’’ अदालत ने अपने 32 पृष्ठ के आदेश में याचिकाकर्ताओं को पुनर्वास नीति के तहत रेलवे के समक्ष उपयुक्त दस्तावेज पेश करने की तारीख से छह महीने के भीतर वैकल्पिक रिहाइश आवंटित करने का आदेश दिया.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: DELHI HIGH COURT, Delhi news, Delhi news updates