नई दिल्ली. दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण (Pollution) स्तर तेजी से बढ़ रहा है. इससे लोगों को सांस लेने में भी दिक्कतें हो रही हैं. वहीं बच्चों को भी खासी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं. यही कारण है कि दिल्ली-एनसीआर के अस्पतालों में बड़ी संख्या में प्रदूषण से प्रभावित बच्चे पहुंच रहे हैं. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दी का मौसम शुरू होने और प्रदूषण बढ़ने के कारण दिल्ली-एनसीआर में इससे प्रभावित मरीजों की संख्या हर बार ही बढ़ती है. इस साल भी इमरजेंसी से लेकर ओपीडी (OPD) में बीमार बच्चे पहुंच रहे हैं.
दिल्ली स्थित चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में हेड ऑफ पीडियाट्रिक्स प्रो. ममजा जाजू कहती हैं कि प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा होने के चलते बच्चों पर असर डाल रहा है. प्रदूषण के दौरान 1 साल से बड़ी उम्र तक जैसे 12-14 साल तक के बच्चों और किशोरों में बीमारियां सामने आ रही हैं. हालांकि पॉल्यूशन से सबसे ज्यादा प्रभावित इस समय 1 से 5 साल तक के बच्चे हैं. इनमें निमोनिया (Pneumonia) और एलर्जी (Allergy) के मरीज मिल रहे हैं. जिनको पहले से फेफड़े आदि की बीमारियां हैं, उनको मौसत बदलने और प्रदूषण बढ़ने के कारण कुछ ज्यादा परेशानियां हो रही हैं. यह होना स्वाभाविक भी है.
बच्चों को हो रहीं ये समस्याएं
. बच्चों के सीने में संक्रमण या चेस्ट इन्फेक्शन
. निमोनिया
. रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन
. ब्रॉन्काइटिस
. नाक बहना, सर्दी, खांसी
. अस्थमा
. फेफड़ो का कैंसर
. सीओपीडी यानि क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज
. सांस का संक्रमण
अभिभावक अपनाएं ये उपाय
. बच्चों को गर्म पानी पिलाते रहें, उनकी बॉडी को हाईड्रेड रखें.
. चूंकि प्रदूषण बहुत ज्यादा है तो बच्चों को बाहर न निकलने दें. बहुत ज्यादा जरूरी होने पर ही बाहर जाएं.
. जहां भी जाएं खुद भी मास्क पहनें और बच्चों को भी मास्क पहनाएं. यह कोविड नहीं बल्कि अब प्रदूषण के समय में बहुत ही जरूरी है.
. बच्चों को खांसी या सांस लेने में दिक्कत हो रही है, या सांस लेते समय दर्द हो रहा है या अन्य कोई परेशानी हो रही है तो इंतजार न करें, तुरंत अस्पताल ले जाएं.
. बच्चे को अगर पहले से कोई बीमारी है, फेफड़ो में दिक्कत है या अस्थमा की समस्या है तो उसका विशेष ध्यान रखें. दवाओं का ध्यान रखें. पोषणयुक्त भोजन का ध्यान रखें.
दिल्ली के लगभग सभी अस्पतालों में हैं बच्चों के लिए सुविधाएं
प्रो. जाजू कहती हैं कि दिल्ली के लगभग सभी अस्पतालों एलएनजेपी, आचार्य भिक्षु, कलावती सरन, लेडी हार्डिंग, आरएमएल, दीनदयाल उपाध्याय, जीटीबी अस्पताल, डॉ. अंबेडकर आदि में बच्चों के लिए स्पेशल वार्ड की व्यवस्था है. वहीं केंद्र सरकार के बड़े अस्पतालों में भी पीडियाट्रिक्स के वार्ड हैं और नियमित ओपीडी लगती हैं. प्रदूषण के मौसम में ज्यादातर मरीज सेमी इमरजेंसी या ओपीडी वाले ही होते हैं. बहुत कम होता है जिन्हें इमरजेंसी में लाया जाए. हालांकि कुछ मरीजों को आईसीयू की जरूरत पड़ती है तो इतने बेड्स अस्पतालों में होते हैं. ऐसे में अभिभावक किसी भी सरकारी अस्पताल में बच्चे को ले जाकर इलाज दिला सकते हैं.
बेड, ऑक्सीजन सहित ये सुविधाएं मौजूद
चाचा नेहरू हेड ऑफ ऑफिस डॉ. ममता कहती हैं कि सभी बाल अस्पतालों में बच्चों के नेबुलाइजेशन के अलावा मेडिकेशन और बेड की पर्याप्त सुविधाएं मौजूद हैं. वहीं कोविड के बाद से अस्पताल में लगे ऑक्सीजन प्लांट के बाद अब इसकी भी पर्याप्तता है. लिहाजा प्रदूषण के मौसम में बच्चों के लिए सभी व्यवस्थाएं हैं. चाचा नेहरू में बहुत सारे केस रेफर होकर भी आते हैं. सभी को यहां इलाज मिलता है. यहां के स्टाफ को भी ज्यादा समय तक काम करने की आदत रहती है. कभी कभी होता है कि ज्यादा मरीज आते हैं लेकिन अगर बेड नहीं होते हैं या कम होते हैं तो डबलिंग या ट्रिपलिंग कर देते हैं. सरकारी अस्पतालों में यही कोशिश की जाती है कि सभी को इलाज मिल सके, किसी को वापस न भेजा जाए.
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