CAA हिंसा: पोस्टर हटाएगी पर यह काम नहीं करेगी यूपी सरकार

CAA के विरोध में लखनऊ में 19 दिसंबर को हिंसा की घटना हुई थी. सरकार ने आरोपियों के पोस्टर लखनऊ में लगाए थे.
सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के मीडिया सलाहकार मृत्यंजय कुमार ने ट्वीट (Tweet) करते हुए कहा है कि हिंसा (Violence) करने वाले दंगाइयों की पहचान उजागर करने की लड़ाई हम आगे तक जारी रखेंगे.
- News18Hindi
- Last Updated: March 11, 2020, 9:20 AM IST
नई दिल्ली. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ यूपी (UP) में तोड़फोड़ और हिंसा करने वाले आरोपियों के खिलाफ सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने एक और बड़ा फैसला लिया है. उनका यह फैसला हाईकोर्ट (High Court) के आदेश के बाद आया है. सीएम योगी के मीडिया सलाहकार (Media Advisor) मृत्यंजय कुमार ने ट्वीट करते हुए कहा है कि हिंसा करने वालों के सिर्फ पोस्टर हटाए जाएंगे, लेकिन उन पर लगी धाराएं नहीं.
दंगाइयों की पहचान उजागर करने की लड़ाई हम आगे तक जारी रखेंगे. उन्होंने यह भी कहा है कि दंगाइयों के पोस्टर हटाने के हाइकोर्ट के आदेश को सही परिपेक्ष्य में समझने की ज़रूरत है. गौरतलब रहे कि 9 मार्च को हाईकोर्ट ने लखनऊ के पुलिस कमिश्नर और डीएम को यह पोस्टर हटाने के आदेश दिए थे.

पोस्टर पर कोर्ट ने यह दिया था आदेश9 मार्च सोमवार को सीएए हिंसा में शामिल आरोपियों के पोस्टर लगाने के लिए खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई थी. सुनवाई करने वालों में चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ थी. पूरे मामले को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर में फोटो लगाना जायज नहीं है. यह निजता के अधिकार का हनन है. बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए किसी की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना गलत है." इसके साथ ही अदालत ने सरकार को 16 मार्च को पोस्टर हटा दिए गए हैं यह हलफनामा दाखिल करने का निर्देश भी दिया है.
हाईकोर्ट ने खुद ही लिया था मामले का संज्ञान
लखनऊ में इस तरह के पोस्टर लगने के बाद हाईकोर्ट ने खुद ही इस मामले का संज्ञान लिया था. सरकार की ओर से यह पोस्टर लगाए गए थे. पोस्टर में आरोपियों के फोटो लगाने के साथ ही उनके पिता का नाम और उनके घर का पता भी दिया गया है. वहीं यह भी कहा गया है कि हिंसा में हुए नुकसान की भरपाई भी इन्हीं लोगों से की जाएगी. इस पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि ऐसा कौन-सा कानून है, जिससे सरकार को सार्वजनिक स्थानों पर फोटो चस्पा करने का अधिकार मिल जाता है. वहीं महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का कहना था कि सड़क के किनारे उन लोगों के पोस्टर व होर्डिंग लगाए गए हैं, जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है. इन लोगों ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है. पूरी प्रक्रिया कानून के मुताबिक अपनाई गई है.
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दंगाइयों की पहचान उजागर करने की लड़ाई हम आगे तक जारी रखेंगे. उन्होंने यह भी कहा है कि दंगाइयों के पोस्टर हटाने के हाइकोर्ट के आदेश को सही परिपेक्ष्य में समझने की ज़रूरत है. गौरतलब रहे कि 9 मार्च को हाईकोर्ट ने लखनऊ के पुलिस कमिश्नर और डीएम को यह पोस्टर हटाने के आदेश दिए थे.

पोस्टर पर कोर्ट ने यह दिया था आदेश9 मार्च सोमवार को सीएए हिंसा में शामिल आरोपियों के पोस्टर लगाने के लिए खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई थी. सुनवाई करने वालों में चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ थी. पूरे मामले को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर में फोटो लगाना जायज नहीं है. यह निजता के अधिकार का हनन है. बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए किसी की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना गलत है." इसके साथ ही अदालत ने सरकार को 16 मार्च को पोस्टर हटा दिए गए हैं यह हलफनामा दाखिल करने का निर्देश भी दिया है.
हाईकोर्ट ने खुद ही लिया था मामले का संज्ञान
लखनऊ में इस तरह के पोस्टर लगने के बाद हाईकोर्ट ने खुद ही इस मामले का संज्ञान लिया था. सरकार की ओर से यह पोस्टर लगाए गए थे. पोस्टर में आरोपियों के फोटो लगाने के साथ ही उनके पिता का नाम और उनके घर का पता भी दिया गया है. वहीं यह भी कहा गया है कि हिंसा में हुए नुकसान की भरपाई भी इन्हीं लोगों से की जाएगी. इस पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि ऐसा कौन-सा कानून है, जिससे सरकार को सार्वजनिक स्थानों पर फोटो चस्पा करने का अधिकार मिल जाता है. वहीं महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का कहना था कि सड़क के किनारे उन लोगों के पोस्टर व होर्डिंग लगाए गए हैं, जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है. इन लोगों ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है. पूरी प्रक्रिया कानून के मुताबिक अपनाई गई है.
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