पहले कांता कर्दम, अब बेबी रानी मौर्य...क्या ये है जाटव वोटरों को खुश करने का बीजेपी प्लान?

बेबी रानी मौर्य एवं कांता कर्दम: पश्चिमी यूपी की दो जाटव महिलाओं को आगे बढ़ाकर दलितों को क्या संदेश दे रही बीजेपी?
जाटव समाज से आने वाली बेबी रानी मौर्य और कांता कर्दम को आगे बढ़ाने के पीछे बीजेपी की क्या रणनीति है? क्या इन महिलाओं को आगे बढ़ाकर बीजेपी तोड़ पाएगी मायावती का किला?
- News18Hindi
- Last Updated: August 22, 2018, 12:28 PM IST
बीजेपी ने पहले मेरठ की रहने वाली कांता कर्दम को राज्यसभा भेजा और अब आगरा की रहने वाली बेबीरानी मौर्य को उत्तराखंड का राज्यपाल बना दिया. खास बात ये है कि महिला होने के साथ-साथ दोनों जाटव बिरादरी से आती हैं. मायावती भी जाटव बिरादरी से हैं. सपा-बसपा गठबंधन से चिंतित बीजेपी अब गैर जाटव दलितों के साथ-साथ जाटवों में भी पैठ बनाने की कोशिश में जुट गई है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि पश्चिमी यूपी की दो जाटव महिलाओं को जवज्जो देकर बीजेपी क्या मायावती का किला भेद पाएगी? क्या इस दांव से उसे 2019 के लोकसभा चुनाव में फायदा मिलेगा?
उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी कुल जनसंख्या का लगभग 21 प्रतिशत है. उनमें लगभग 66 उप-जातियां हैं जो सामाजिक तौर पर बंटी हुई हैं. यूपी की दलित जनसंख्या में जाटव 52 से 55 प्रतिशत बताए गए हैं. जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सा मायावती को मिलता रहा है. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के मुताबिक पूरे देश की बात करें तो दलितों की 1263 उपजातियां हैं. माना जाता है कि यूपी में बीएसपी के उदय के बाद जाटव वोटों पर कोई भी पार्टी सेंध नहीं लगा पाई. बीजेपी ने गैर जाटव वोट जरूर हासिल किए थे.
क्या दलितों को लुभा पाएगी बीजेपी? (File photo)
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति गैर जाटव दलितों में सेंध लगाने की थी. इसमें वो काफी हद तक कामयाब भी रही थी. चुनावी विश्लेषक भी यह मानते रहे हैं कि जाटव वोटरों पर मायावती की पकड़ काफी मजबूत है. हमने पिछले दिनों सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक प्रोफेसर एके वर्मा से दलित वोटरों को लेकर बातचीत की थी. तब वर्मा ने कहा "बीजेपी में दलितों ने अपनी जगह बना ली है. जहां तक मायावती की बात है तो उनसे जाटव तो खुश हैं लेकिन गैर जाटव दलित संतुष्ट नहीं हैं.”ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने मायावती के कोर वोटबैंक में तोड़फोड़ करने की रणनीति बनाई है. माना जा रहा है कि जाटव वोट पर मायावती की पकड़ कमजोर करने के लिए ही बीजेपी ने कांता कर्दम और बेबीरानी मौर्य को आगे किया है. हालांकि, देखना ये होगा कि क्या जाटव वोटों में सेंध लगाने का प्रयोग सफल होगा?
क्या दलितों की नाराजगी से चिंतित है बीजेपी! (File PHOTO)
बेबी रानी मौर्य आगरा की रहने वाली हैं. वह ताज नगरी की मेयर रह चुकी हैं. वो भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा की कोषाध्यक्ष रह चुकी हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बेबी रानी को राज्यपाल बनाने के पीछे न सिर्फ जाटव वोटरों को संदेश देना है बल्कि आगरा क्षेत्र में अपनी पैठ मजबूत बनाए रखने की रणनीति भी है. आगरा में करीब 22 फीसदी दलित आबादी है. इससे सटे अलीगढ़ में 21 और फिरोजाबाद में 19 फीसदी दलित हैं. दलित बहुल क्षेत्र के कारण बसपा प्रमुख मायावती आगरा से चुनावी शंखनाद करती रही हैं.
बात करें कांता कर्दम की तो वह मेरठ की रहने वाली हैं. निकाय चुनाव में पार्टी ने कर्दम को मेरठ से मेयर पद का चुनाव लड़ाया था, लेकिन वह हार गई थीं. फिर भी जातीय समीकरण को देखते हुए उन्हें राज्यसभा भेजा गया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़ते जातीय संघर्ष के बीच बीजेपी की यह कवायद महत्वपूर्ण मानी गई. कर्दम के जरिए मेरठ से लेकर सहारनपुर तक के दलितों को साधने की कोशिश हो रही है.
दलितों में मायावती की पकड़ सबसे मजबूत मानी जाती है!
राजनीतिक विश्लेषक आलोक भदौरिया कहते हैं “ दोनों जाटव महिलाओं को आगे बढ़ाना सोशल इंजीनियरिंग की दिशा में एक मजबूत कदम है. यह 2019 की चुनावी 'व्यूह रचना' है. इससे कितना फायदा मिलेगा यह कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना तय है कि जाटव वोटरों को बीजेपी संदेश देने में कामयाब रहेगी कि वो उनके लिए काम कर रही है. बीजेपी अपने इस कदम से दलितों की नाराजगी भी दूर करने की कोशिश करेगी.”
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उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी कुल जनसंख्या का लगभग 21 प्रतिशत है. उनमें लगभग 66 उप-जातियां हैं जो सामाजिक तौर पर बंटी हुई हैं. यूपी की दलित जनसंख्या में जाटव 52 से 55 प्रतिशत बताए गए हैं. जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सा मायावती को मिलता रहा है. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के मुताबिक पूरे देश की बात करें तो दलितों की 1263 उपजातियां हैं. माना जाता है कि यूपी में बीएसपी के उदय के बाद जाटव वोटों पर कोई भी पार्टी सेंध नहीं लगा पाई. बीजेपी ने गैर जाटव वोट जरूर हासिल किए थे.

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति गैर जाटव दलितों में सेंध लगाने की थी. इसमें वो काफी हद तक कामयाब भी रही थी. चुनावी विश्लेषक भी यह मानते रहे हैं कि जाटव वोटरों पर मायावती की पकड़ काफी मजबूत है. हमने पिछले दिनों सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक प्रोफेसर एके वर्मा से दलित वोटरों को लेकर बातचीत की थी. तब वर्मा ने कहा "बीजेपी में दलितों ने अपनी जगह बना ली है. जहां तक मायावती की बात है तो उनसे जाटव तो खुश हैं लेकिन गैर जाटव दलित संतुष्ट नहीं हैं.”ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने मायावती के कोर वोटबैंक में तोड़फोड़ करने की रणनीति बनाई है. माना जा रहा है कि जाटव वोट पर मायावती की पकड़ कमजोर करने के लिए ही बीजेपी ने कांता कर्दम और बेबीरानी मौर्य को आगे किया है. हालांकि, देखना ये होगा कि क्या जाटव वोटों में सेंध लगाने का प्रयोग सफल होगा?

बेबी रानी मौर्य आगरा की रहने वाली हैं. वह ताज नगरी की मेयर रह चुकी हैं. वो भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा की कोषाध्यक्ष रह चुकी हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बेबी रानी को राज्यपाल बनाने के पीछे न सिर्फ जाटव वोटरों को संदेश देना है बल्कि आगरा क्षेत्र में अपनी पैठ मजबूत बनाए रखने की रणनीति भी है. आगरा में करीब 22 फीसदी दलित आबादी है. इससे सटे अलीगढ़ में 21 और फिरोजाबाद में 19 फीसदी दलित हैं. दलित बहुल क्षेत्र के कारण बसपा प्रमुख मायावती आगरा से चुनावी शंखनाद करती रही हैं.
बात करें कांता कर्दम की तो वह मेरठ की रहने वाली हैं. निकाय चुनाव में पार्टी ने कर्दम को मेरठ से मेयर पद का चुनाव लड़ाया था, लेकिन वह हार गई थीं. फिर भी जातीय समीकरण को देखते हुए उन्हें राज्यसभा भेजा गया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़ते जातीय संघर्ष के बीच बीजेपी की यह कवायद महत्वपूर्ण मानी गई. कर्दम के जरिए मेरठ से लेकर सहारनपुर तक के दलितों को साधने की कोशिश हो रही है.

राजनीतिक विश्लेषक आलोक भदौरिया कहते हैं “ दोनों जाटव महिलाओं को आगे बढ़ाना सोशल इंजीनियरिंग की दिशा में एक मजबूत कदम है. यह 2019 की चुनावी 'व्यूह रचना' है. इससे कितना फायदा मिलेगा यह कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना तय है कि जाटव वोटरों को बीजेपी संदेश देने में कामयाब रहेगी कि वो उनके लिए काम कर रही है. बीजेपी अपने इस कदम से दलितों की नाराजगी भी दूर करने की कोशिश करेगी.”
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