छात्रों को शारीरिक दंड देना कानून की दृष्टि से जुर्म है.
नोएडा. शिक्षक द्वारा की गई निर्मम पिटाई से छात्र-छात्राओं की मौत के कई मामले सामने आ रहे हैं. हाल में ही उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर में थाना बादलपुर क्षेत्र के बंबावड़ गांव में स्थित एक पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले पांचवीं कक्षा के छात्र की स्कूल टीचर ने कथित तौर पर पिटाई कर दी थी. इसके बाद इलाज के दौरान छात्र की मौत हो गई थी. इससे पहले भी ऐसी कई खबरें सामने आती रही हैं. लेकिन, क्या आपको पता है कि भारत में बच्चों की पिटाई को लेकर कई कानून भी है और शारीरिक दंड दिए जाने को लेकर पूरी तरह से रोक है?
दरअसल, विकृत मानसिकता के शिक्षक ही बच्चों की पिटाई करते हैं. नियम तो यह है कि स्कूल में बच्चों को शारीरिक दंड की जगह मनोचिकित्सक तरीके से सजा दी जा सकती है. स्कूल में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सीबीएसई के भी नियम हैं. इनका उल्लंघन होने पर स्कूल की मान्यता रद्द हो सकती है. नियम के तहत स्कूल में काम करनेवाले स्टाफ का स्थानीय पुलिस से सत्यापन होना चाहिए था. सेफ्टी ऑडिट करनी चाहिए.
बच्चों की पिटाई के मामलों में कमी लाने के लिए केंद्र सरकार ने किशोर न्याय अधिनियम 2015 यानि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट लागू किया है. लेकिन इसके अलावा भी देश में कई कानून और गाइडलाइनंस हैं जो बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 में के प्रावधानों को जानें.
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