लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने वाले बिल को लेकर सिविल सोसायटी में मतभेद है.
नई दिल्ली. हाल ही में केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से 21 साल करने का बिल पेश किया गया. हालांकि विपक्ष के विरोध के बाद इस अधिनियम को लोकसभा की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया. अब इसे लेकर कई गैर सामाजिक संगठन भी अपनी राय रख रहे हैं. इस बारे में घरेलू हिंसा को लेकर लंबे समय से काम कर रहे एनजीओ ब्रेकथ्रू के सीनियर मैनेजर-मीडिया एडवोकेसी विनीत त्रिपाठी कहते हैं कि इस बिल के पीछे सरकार ने अपनी मंशा बताई कि इससे लैंगिक समानता आएगी और लड़कियों को भी विवाह जैसे फैसले लेने में बराबरी का हक मिलेगा लेकिन इसको लेकर विपक्ष के साथ ही सिविल सोसाइटी में विरोध और मतभेद हैं.
त्रिपाठी कहते हैं कि सरकार का कहना है कि जया जेटली के अध्यक्षता में बनी टास्क फोर्स ने सिविल सोसाइटी, लड़के-लड़कियों सहित इससे जुड़े सभी स्टेक होल्डर से बातचीत और उनके सुझावों के आधार पर ही यह बिल लाई है. 2020 में इस टास्क फोर्स का गठन मातृत्व की आयु से संबंधित मामलों, मातृ मृत्यु दर को कम करने, पोषण के स्तर में सुधार और संबंधित मुद्दों की जांच पर उचित सुझाव देने के लिए किया गया था. ऐसे में इस बिल के विरोध में एक तर्क यह भी है कि मातृ मृत्यु दर की मुख्य वजह एनीमिया है और शिशु मृत्यु दर का मुख्य कारण कुपोषण है, इसके कारणों में शादी की उम्र शामिल नहीं है.
वे कहते हैं कि इस बहस के बीच लड़कियों से जुड़े कई और पहलू भी हैं जिनपर ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है. अक्सर देखा गया है कि बाल विवाह कानून का सबसे अधिक दुरूपयोग वहां हुआ है जहां भी लड़की ने अपनी इच्छा से शादी करनी चाही है, परिजनों ने इसको टूल के रूप में उपयोग किया है. इसके साथ ही अगर हम भारत में कम उम्र में विवाह की बात करें तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के ताजा आंकड़े बताते है कि अभी भी 23.3 फीसदी लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है जो चिंतनीय है. इसकी मूल वजहों की बात करें तो कम उम्र में शादी के प्रमुख कारणों में गरीबी, अशिक्षा, लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल का न होना, स्कूल व कॉलेज घर के पास न होना है. प्रस्तावित बिल में इन बातों का जिक्र नहीं दिखता है ऐसे में ये भी होनी चाहिए.
25.2 फीसदी लड़कियां छोड़ देती हैं स्कूल
त्रिपाठी कहते हैं कि साल 2019 में ‘चाइल्ड राइट्स ऐंड यू’ (क्राई) की रिपोर्ट ‘ऐजुकेटिंग द गर्ल चाइल्ड’ के मुताबिक स्कूल छोड़ने वाली कुल लड़कियों में से 25.2 फीसदी लड़कियां स्कूल दूर होने की वजह से स्कूल छोड़ देती हैं. किसी अनहोनी होने का भय लड़कियों के स्कूल तक पहुंचने की हिम्मत और जरूरत पर भारी पड़ता है. वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों के ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर रोज महिलाओं से दुष्कर्म के 77 मामले दर्ज किए गए हैं.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के मुताबिक 15-49 आयु वर्ग में महिलाओं की साक्षरता दर 71.5 फीसदी है. इसी आयु वर्ग में महिलाओं में 10 या उससे अधिक वर्षों तक स्कूल जाने की दर 41 फीसदी है. जबकि इंटरनेट यूज करने वाली महिलाओं की संख्या सिर्फ 33.3 फीसदी है. वहीं एनीमिक महिलाओं के संख्या पिछले आंकड़ों की तुलना में 4 फीसदी बढ़कर अब 57 फीसदी हो गई है. ऐसे में साफ है कि बाल विवाह का मामला सिर्फ मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में गिरावट लाने के साथ-साथ पोषण के स्तर तक सीमित नहीं है सरकार और सिविल सोसाइटी को इससे आगे सोचने की आवश्यकता है.
लड़कियों की शिक्षा सबसे जरूरी
वे कहते हैं कि सरकार को खास तौर से उन परिवारों को विशेष सहायता देने की जरूरत है जो गरीबी की वजह से लड़कियों को नहीं पढ़ा पा रहे हैं, साथ ही इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है कि लड़कियां पढ़ाई बीच में न छोड़ें. देखा गया है कि लड़कियों के ड्रापआउट के प्रमुख कारणों में स्कूल कॉलेज का घर से दूर होना और उनके लिए सुरक्षित माहौल का न होना है. अभिभावकों को यह डर रहता है कि उनकी लड़की के साथ रास्ते या स्कूल/कॉलेज में कुछ अनहोनी न हो जाए, इसकी वजह से वह लड़कियों को नहीं पढ़ाना चाहते. ऐसे में जरूरत है कि लड़कियों की पढ़ाई के लिए मूलभूत सुविधाओं के साथ सुरक्षित माहौल भी दिया जाए.
बेहतर शिक्षा लड़कियों में निर्णय लेने की क्षमता को भी बढ़ाती है, उनकी आंकक्षाओं के साथ पढ़ाई और रोजगार को जोड़कर भी हम उनमें कम उम्र में शादी की संभावना को समाप्त कर सकते हैं. इसके लिए शिक्षा के अधिकार का दायरा बढ़ाकर इसमें उच्च शिक्षा को भी शामिल किया जाना चाहिए, साथ ही ऐसे मानदंडों को बदलने की जरूरत है जो लड़कियों के इच्छाओं को प्राथमिकता न देकर सिर्फ शादी पर जोर देते हैं, लड़कियों के भविष्य और आकांक्षाओं पर निवेश करने की आवश्यकता है. इन उपायों के माध्यम से हम ऐसा माहौल बना सकते हैं जो लड़कियों को शादी की सही उम्र चुनने से लेकर अपनी आकांक्षाओं के मामले में भी खुद निर्णय लेने में उनकी मदद करेगा तब शायद हम उस लैंगिक समानता की तरफ बढ़ सकेंगे जिसकी अभी हम कल्पना करते हैं.
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Tags: Child marriage, Child marriage in India, Marriage
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